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Thursday 25 April 2013 01:22:59 AM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस-2013 समारोह का शुभारंभ किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा है कि पंचायती राज के जरिए लोकतंत्र और शासन भारत के हर चौपाल हर चबूतरे हर आंगन और हर दालान तक पहुंच पाया है। उन्होंने कहा कि स्थानीय निर्वाचित सदस्यों में यह क्षमता होनी चाहिए कि वह स्थानीय लोगों की जरूरतों को समझ सकें और उन्हें पूरा करने की भरपूर कोशिश करें, इसीलिए पंचायती राज मंत्रालय पंचायतों के निर्वाचित प्रतिनिधियों और उनके स्टाफ की क्षमताएं बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है। उन्होंने कहा कि यह बात सही है कि देश की आजादी के शुरुआती सालों में सेंट्रलाइज्ड प्लानिंग ने राष्ट्र निर्माण में एक बहुत अहम भूमिका निभाई थी, लेकिन भारत जैसे बड़े और विविध देश में सही मायनों में इनक्लूसिव विकास हासिल करने के लिए डिसेंट्रलाइजेशन बहुत ज़रूरी है, तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नैतिक साहस और आदर्शवादी सोच की वजह से बुनियादी स्तर पर लोकतंत्र स्थापित करने की दिशा में हम आगे बढ़ सके।
अप्रैल 1993 में 73वें संशोधन ने लोकल सेल्फ-गवर्नेंस संस्थाओं को लोकतांत्रिक व्यवस्था और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रियाओं में पूरी तरह से शामिल किया। इस संशोधन का असर बहुत से क्षेत्रों में महसूस किया जा रहा है। मिसाल के तौर पर आर्टिकल 243 ई में चुनाव से संबंधित संवैधानिक प्रावधान अब जस्टिसिएबल है और वक्त पर चुनाव कराने में इससे मदद मिलती है। इसी प्रकार पंचायतों में सीटों और अध्यक्ष के पद पर आरक्षण के लिए आर्टिकल 243 डी में प्रावधान किए गए हैं, इसके नतीजे में समाज के सदियों से पिछड़े तबकों जैसे महिलाएं अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां लोकल बॉडीज में नेतृत्व वाले पद हासिल कर पाए हैं। कई राज्यों ने अपनी लोकल बॉडीज में अन्य पिछड़े वर्गों और महिलाओं के आरक्षण के लिए कानून बनाए हैं। पंद्रह राज्यों ने पंचायतों में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण देने के लिए भी कानून बनाए हैं, जो महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से हकदार बनाने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम हो सकता है।
उन्होंने कहा कि दुनियाभर के रिसर्चर्स ने यह पाया है कि भारत में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े तबकों को विकास प्रक्रिया में शामिल करने के लिए जो कार्रवाई की गई है, उसके अच्छे नतीजे सामने आए हैं। पंचायतों के कामों में लोगों की भागीदारी बढ़ी है, लोगों की आशाओं के अनुसार खर्च संबंधी फैसले भी लिए गए हैं और लोग राजनैतिक रूप से ज्यादा जागरूक हुए हैं। संविधान के आर्टिकल 243 जी के तहत पंचायतों को ज़िम्मेदारियां और शक्तियां सौंपने के लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। कोई राज्य सरकार किस हद तक यह काम करती है यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह डिसेंट्रलाइज्ड शासन को पब्लिक सर्विसेज डिलीवरी के लिए कितना उपयोगी मानती है। केंद्र सरकार फंड्स फंक्शंस और फंक्शनरीज को पंचायतों को सौंपने में अच्छा काम करने वाले राज्यों को पुरस्कार देकर उनके प्रयासों का सम्मान करती है। पंचायतों को भी इस बात के लिए पुरस्कार दिए जाते हैं कि उन्होंने लोकल एडमिनिस्ट्रेशन और पब्लिक सर्विसेज डिलीवरी को बेहतर बनाने की दिशा में क्या पहल की है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्ष 2011-12 के दौरान 170 पंचायतों को उनके अच्छे प्रदर्शन और खास तौर पर स्थानीय लोगों को फायदा पहुंचाने के नए नए कामों के लिए सम्मानित किया गया। हम ऐसी ही 193 पंचायतों के कार्यों को सम्मानित करेंगे, हालांकि लोकल गवर्नमेंट्स विकास प्रक्रिया में अहम भूमिका निभा सकती हैं, फिर भी उनकी सफलता अक्सर बाहरी वजहों पर निर्भर करती है, हमेशा यह ख्याल रखना होगा कि पंचायती राज का मकसद डिसेंट्रलाजेशन है, जिसमें लोगों को खुद शासन की व्यवस्था चलाने का असली हक मिल पाए। हमें यह कोशिश करनी है कि यह केवल एक नारा बनकर न रह जाए, बल्कि हमारे अपने जीवनकाल में एक हकीकत बने, इसके लिए हमें सही मायनों में शक्तियां और जिम्मेदारियां निर्वाचित प्रतिनिधियों को देनी होंगी। अक्सर यह शिकायतें मिलती हैं कि केंद्र और राज्यों की नौकरशाही अभी भी अपने अधिकार कम होते नहीं देखना चाहती या अपने अधिकारों को लोकल बॉडीज के साथ पूरी तरह बांटना नहीं चाहती, इस सोच को बदलने की और बहुत जल्द बदलने की ज़रूरत है।
उन्होंने कहा कि 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत केंद्र सरकार पंचायतों को मजबूत बनाने के लिए राजीव गांधी पंचायत सशक्तीकरण अभियान लागू कर रही है। पंचायतों को मजबूत बनाने की राज्य सरकारों की कोशिशों में मदद करने के लिए हमने 12वीं योजना में पहले से कहीं ज्यादा राशि मुक़र्रर की है। इस मकसद के लिए बजटीय सहायता करीब 10 गुना बढ़ाकर 11वीं पंचवर्षीय योजना के 668 करोड़ रुपए की तुलना में 6437 करोड़ रुपए कर दी गई है। राज्य सरकारें इस राशि का पूरा इस्तेमाल लोकल सेल्फ-गवर्नमेंट की संस्थाओं को मज़बूत करने में करेंगी। केंद्र सरकार इस काम में राज्य सरकारों को हर मुमकिन मदद देगी, ताकि हमारी विकास प्रक्रिया ज़्यादा इंक्लूसिव और सस्टेनेबल बन सके। पंचायत राज संस्थाओं को असल तौर पर शक्तियां और जिम्मेदारियां देने के लिए हमें अभी बहुत काम करना बाकी है, अब तक जो कामयाबियां इस काम में हमने हासिल की हैं, उन्हें तेज़ी से आगे बढ़ाने की ज़रूरत है, ताकि पंचायतें लोकतांत्रिक और विकास प्रक्रियाओं में एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकें।
मनमोहन सिंह ने कहा कि आजादी के बाद पंचायतों की भूमिका को नई दिशा देने की कई कोशिशें की गईं, इसके लिए कई समितियां गठित की गईं, जिनमें बलवंत राय मेहता समिति, अशोक मेहता समिति और दंतवाला समिति शामिल थीं। इन सभी समितियों ने पंचायतों को ज़्यादा अधिकार तथा वित्तीय शक्तियां देने की सिफारिशें कीं, लेकिन इन तमाम कोशिशों के बावजूद पंचायतों को असली तौर पर प्रभावी शक्तियां पूरी तरह हासिल नहीं हो सकीं। ज्यादातर मामलों में समय पर चुनाव नहीं कराए गए। विकास कार्यों को लागू करने की जिम्मेदारी ज़्यादातर स्थानों पर अधिकारियों के पास ही रही। कुल मिलाकर हमारी शासन व्यवस्था अपनी शक्तियों को दूसरों के साथ बांटना नहीं चाहती थी।
भारतीय संविधान में किए गए 73वें संशोधन को लागू होने के दो दशक पूरे हो रहे हैं। इस संशोधन से पंचायत संस्थाओं को लोकल सेल्फ-गवर्नेंस इकाइयों के रूप में एक नई पहचान मिली है। लोकल सेल्फ-गवर्नेंस की कल्पना कम से कम 19वीं शताब्दी के आखिरी भाग से देश में राजनैतिक विचारों का अहम हिस्सा रही है। आजादी की लड़ाई से संबंधित राजनैतिक विचारधारा में इस पर खास ज़ोर दिया गया था।