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Saturday 14 August 2021 03:03:24 PM
नई दिल्ली। भारत की चार और आर्द्रभूमियों यानी वेटलैंड्स यानी राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य विशेषकर जलप्रवाही पशु पक्षियों के प्राकृतिक आवास को रामसर स्थलों के रूपमें मान्यता मिल गई है। ये स्थल हैं-गुजरात के थोल और वाधवाना और हरियाणा के सुल्तानपुर और भिंडावास। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने एक ट्वीट संदेश में इसकी जानकारी देते हुए प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पर्यावरण केलिए विशेष चिंता है कि भारत को अपनी आर्द्रभूमियों की देखभाल कैसे करनी है की कार्य प्रणाली में समग्र रूपसे सुधार आया है, इसके साथ ही भारत में रामसर स्थलों की संख्या 46 हो गई है और इन स्थलों से आच्छादित सतह क्षेत्र अब 1,083,322 हेक्टेयर हो गया है। जहां एक ओरहरियाणा को अपनी पहली रामसर साइट मिली है, वहीं गुजरात कोउस नलसरोवर के बाद तीन और स्थल मिल गए हैं, जिसे 2012 में अंतर्राष्ट्रीय आर्द्रस्थल घोषित किया गया था।
रामसर सूची का उद्देश्य आर्द्रभूमि के एक ऐसे अंतर्राष्ट्रीय तंत्र को विकसित करना और सुरक्षित बनाए रखना है, जो वैश्विक जैविक विविधता को संरक्षित करने और सुरक्षित रखने के साथ ही मानव जीवन की अपने इको-सिस्टम के घटकों, प्रक्रियाओं और लाभों के रखरखाव के माध्यम से सहेजे रखने के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। आर्द्रभूमियों से भोजन, पानी, रेशा (फाइबर), भूजल का पुनर्भरण, जल शोधन, बाढ़ नियंत्रण, भूमि के कटाव का नियंत्रण और जलवायु विनियमन जैसे महत्वपूर्ण संसाधनों और इको-सिस्टम सेवाओं की एक विस्तृत श्रृंखला प्राप्त होती हैं। वस्तुतः ये क्षेत्र पानी का एक प्रमुख स्रोत हैं और मीठे पानी की मुख्य आपूर्ति आर्द्रभूमि की ऐसी उन श्रृंखलाओं से आती है, जो वर्षा को सोखने और भूजल को फिरसे उसी स्तर पर लाने में मदद करती है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय इन स्थलों (साइटों) का बुद्धिमत्ता से उपयोग सुनिश्चित किए जानेकेलिए राज्यों के आर्द्रभूमि प्राधिकरणों के साथ मिलकर काम करेगा।
भिंडावास वन्यजीव अभयारण्य, हरियाणा की सबसे बड़ी ऐसी आर्द्रभूमि है, जो मानव निर्मित होने के साथ ही मीठे पानी वाली आर्द्रभूमि है। करीब 250 से अधिक पक्षी प्रजातियां पूरे वर्ष इस अभयारण्य का उपयोग अपने विश्राम एवं प्रजनन स्थल के रूपमें करती हैं। यह साइट मिस्र के लुप्तप्राय गिद्ध, स्टेपी ईगल, पलास के मछली (फिश) ईगल और ब्लैक-बेलिड टर्न सहित विश्वस्तर पर दस से अधिक खतरे में आ चुकी प्रजातियों को शरण देती है। हरियाणा का सुल्तानपुर राष्ट्रीय उद्यान मिलने वाले पक्षियों, शीतकालीन प्रवासी और स्थानीय प्रवासी जलपक्षियों की 220 से अधिक प्रजातियों की उनके अपने जीवनचक्र के महत्वपूर्ण चरणों में आश्रय देकर सम्भरण करता है, इनमें से दस से प्रजातियां अधिक विश्वस्तर पर खतरे में आ चुकी हैं, जिनमें अत्यधिक संकट में लुप्तप्राय होने की कगार पर आ चुके मिलनसार टिटहरी (लैपविंग) और लुप्तप्राय मिस्र के गिद्ध, सेकर फाल्कन, पलास की मछली (फिश) ईगल और ब्लैक-बेलिड टर्न शामिल हैं।
गुजरात की थोल झील वन्यजीव अभयारण्य पक्षियों के मध्य एशियाई उड़ान मार्ग पर है और यहां 320 से अधिक पक्षी प्रजातियां पाई जा सकती हैं। यह आर्द्रभूमि 30 से अधिक संकटग्रस्त जलपक्षी प्रजातियों की शरण स्थली भी है जैसेकि अत्यधिक संकट में आ चुके लुप्तप्राय सफेद-पंख वाले गिद्ध और मिलनसार टिटहरी (लैपविंग) और संकटग्रस्त सारस बगुले (क्रेन), बत्तखें (कॉमन पोचार्ड) और हल्के सफ़ेद हंस (लेसर व्हाइट-फ्रंटेड गूज़)। गुजरात में वाधवाना आर्द्रभूमि अपने पक्षी जीवन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रवासी जलपक्षियों को सर्दियों में रहने केलिए उचित स्थान प्रदान करती है, इनमें 80 से अधिक ऐसी प्रजातियां हैं, जो मध्य एशियाई उड़ान मार्ग में स्थान-स्थान पर प्रवास करती हैं। इनमें कुछ संकटग्रस्त या संकट के समीप आ चुकी प्रजातियां शामिल हैं जैसे-लुप्तप्राय पलास की मछली-ईगल, दुर्बल संकटग्रस्त सामान्य बत्तखें (कॉमन पोचार्ड) और आसन्न संकट वाले डालमेटियन पेलिकन, भूरे सर वाली (ग्रे-हेडेड) फिश-ईगल और फेरुगिनस डक।