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Thursday 2 September 2021 02:04:55 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉंफ्रेंस के जरिए श्रील अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद की 125वीं जयंती पर एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया और कहा है कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाए जाने के बीच यह अवसर आया है, इसी भाव को पूरी दुनिया में श्रील प्रभुपाद स्वामी के लाखों करोड़ों अनुयाई और लाखों करोड़ों कृष्णभक्त अनुभव कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि सभी जानते हैं कि प्रभुपाद स्वामी एक अलौकिक कृष्णभक्त तो थे ही, साथ ही वे एक महान भारतभक्त भी थे, उन्होंने देश की स्वतंत्रता केलिए संघर्ष किया था, उन्होंने असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कॉटिश कॉलेज से अपना डिप्लोमा तक लेने से मना कर दिया था। प्रधानमंत्री ने उनके योग का भी उल्लेख किया और कहा कि योग के हमारे ज्ञान का पूरे विश्व में प्रसार हुआ है और भारत की सस्टेनेबल लाइफस्टाइल, आयुर्वेद जैसा विज्ञान दुनियाभर में फैल गया है और हमारा यह संकल्प है कि इसका लाभ पूरे विश्व को मिलना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जब भी हम किसी देश में जाते हैं और जब वहां मिलने वाले लोग ‘हरे कृष्णा’ कहते हैं तो हमें काफी अपनापन और गर्व महसूस होता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें यह एहसास तब भी होगा और मेक इन इंडिया उत्पादों केलिए भी यही अपनापन मिलेगा। उन्होंने कहा कि हम इस संबंध में इस्कॉन से काफी कुछ सीख सकते हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के समय में भक्ति ने ही भारत की भावना को जीवित रखा था, विद्वान यह आकलन करते हैं कि यदि भक्तिकाल में कोई सामाजिक क्रांति नहीं हुई होती तो भारत कहां होता और किस स्वरूप में होता, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि भक्ति ने आस्था, सामाजिक क्रम और अधिकारों के भेदभाव को खत्म करके जीव को ईश्वर के साथ जोड़ दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि मुश्किल दौर में भी चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने समाज को भक्ति भावना के साथ बांधा और ‘आत्मविश्वास पर विश्वास’ का मंत्र दिया। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समय अगर स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषी आगे आए, जिन्होंने वेद-वेदांत को पश्चिम तक पहुंचाया, वहीं विश्व को भक्तियोग देने की ज़िम्मेदारी श्रील स्वामी प्रभुपाद और इस्कॉन ने निभाई, उन्होंने भक्ति वेदांत को दुनिया की चेतना से जोड़ने का काम किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज दुनियाभर में सैकड़ों इस्कॉन मंदिर हैं और कई गुरुकुल भारतीय संस्कृति को जीवंत रखे हुए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस्कॉन ने दुनिया को बताया कि भारत केलिए आस्था का मतलब-उमंग, उत्साह, उल्लास और मानवता पर विश्वास है। उन्होंने कच्छ के भूकंप, उत्तराखंड हादसे, ओडिशा और बंगाल में आए चक्रवात के दौरान इस्कॉन के सेवाकार्यों पर प्रकाश डाला एवं कोरोना महामारी में भी इस्कॉन के प्रयासों की सराहना की। स्वामी प्रभुपाद की 125वीं जयंती का यह कार्यक्रम संस्कृति मंत्रालय और इस्कॉन ने संयुक्त रूपसे आयोजित किया था। इस अवसर पर केंद्रीय संस्कृति, पर्यटन और पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास (डोनर) मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा कि स्वामी प्रभुपाद भारत के सांस्कृतिक राजदूतों मेंसे एक थे, जिन्होंने कृणवंतो विश्वमार्यम् यानी संसार के सारे मनुष्यों को श्रेष्ठ बनाना के उद्देश्य से मानवजाति के सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान का मार्ग प्रशस्त किया। जी किशन रेड्डी ने कहा कि भारत महापुरुषों की भूमि है, जिन्होंने दूसरों की सेवामें अपना जीवन लगा दिया और अनगिनत लोगों को जीवन का सही मार्ग दिखाया। उन्होंने कहा कि श्रील प्रभुपाद का जीवन अपने आपमें समर्पण भाव एवं अदम्य साहस की गाथा है।
जी किशन रेड्डी ने कहा कि श्रील स्वामी प्रभुपाद और उनके अनुयायियों के अथक प्रयासों से ही आज रूस, अर्जेंटीना, घाना जैसे देशों के हजारों मूल निवासियों को साड़ी एवं धोती में घूमते, संस्कृत मंत्रों का जाप करते, श्रीमद्भागवद गीता और वेद-पुराणों का अध्ययन करते, मृदंगा एवं खोल जैसे वाद्ययंत्रों को बजाते हुए देखा जा सकता है, यह वास्तव में भारत की विरासत के सांस्कृतिक राजदूत के रूपमें श्रील प्रभुपाद की सूत्रपात की गई एक सांस्कृतिक क्रांति है। उन्होंने कहा कि भारत की आध्यात्मिक संस्कृति का पुनरुत्थान करने के प्रयोजन से श्रील प्रभुपाद ने अपने जीवनकाल में भारत में 8 केंद्र स्थापित किए, जिनकी संख्या आज बढ़कर 330 हो गई है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि आज इस्कॉन का भोजन वितरण दुनियाभर में प्रसिद्ध है, कोविड महामारी के दौरान मुझे दिल्ली के द्वारका मेगा किचन में जाने का अवसर मिला, जहां मैंने देखा कि किस तरह से हर दिन 4 लाख लोगों केलिए भोजन पकाया जा रहा है और व्यवस्थित रूपसे वितरित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि यह खुशी की बात है कि इस्कॉन और इससे जुड़ी इकाइयों ने महामारी के दौरान सरकार के साथ मिलकर पूरे भारत में अपने 72 रसोईघरों के माध्यम से 25 करोड़ से भी अधिक प्लेट भोजन परोसा है, इस्कॉन का ‘जीवन केलिए भोजन कार्यक्रम’ दुनिया का सबसे बड़ा शाकाहारी भोजन राहत कार्यक्रम है।
संस्कृति मंत्री ने कहा कि श्रील प्रभुपाद के योग और भारतीय जीवनशैली में कई देशों में अत्यधिक रुचि है, यही कारण है कि हर साल हजारों अंतर्राष्ट्रीय पर्यटक और भक्त वृंदावन, पुरी, मायापुर जैसे पवित्र स्थलों की यात्रा करते हैं, लेकिन मेरे विचार में प्रभुपाद की सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि वे भारत की प्राचीन सभ्यता के एक अनुकरणीय राजदूत थे। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि उन्होंने उन्हीं पारंपरिक मूल्यों को अथक रूपसे आगे बढ़ाया, जिनका व्यापक प्रचार-प्रसार आप और उनके अनुयायी कल्याण कार्यक्रमों के जरिए कर रहे हैं। गौरतलब है कि अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद (1 सितंबर 1896-14 नवम्बर 1977) को स्वामी श्रील भक्तिवेदांत प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है। वे सनातन हिंदू धर्म के एक प्रसिद्ध गौड़ीय वैष्णव गुरु तथा धर्मप्रचारक थे। विश्व के करोड़ों लोग जो सनातन धर्म के अनुयायी बने हैं और जिनकी आज भगवान श्रीकृष्ण और श्रीमद्भागवत गीता में जो आस्था है, उसका श्रेय अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद को जाता है। उन्होंने वेदांत श्रीकृष्ण भक्ति और इससे संबंधित क्षेत्रों पर शुद्ध कृष्ण भक्ति के प्रवर्तक ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय संप्रदाय के पूर्वाचार्यों की टीकाओं के प्रचार-प्रसार और श्रीकृष्ण भावना को पश्चिमी जगत में पहुंचाने का काम किया।
अभयचरणारविंद भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद का नाम अभयचरण डे था और इनका जन्म कोलकाता में बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। कोलकाता में वर्ष 1922 में अपने गुरुदेव भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर से मिलने के बाद उन्होंने श्रीमद्भागवद गीता पर एक टिप्पणी लिखी। उन्होंने गौड़ीय मठ के कार्य में सहयोग दिया तथा 1944 में बिना किसी की सहायता के अंग्रेजी में संपादन, टंकण और प्रूफ रीडिंग का काम भी स्वयं किया। उन्होंने निःशुल्क प्रतियां बेचकर भी इसके प्रकाशन को जारी रखा। स्वामी प्रभुपाद को 1947 में गौड़ीय वैष्णव समाज ने इन्हें भक्तिवेदांत की उपाधि से सम्मानित किया, क्योंकि उन्होंने सहज भक्ति से वेदांत को सरलता से हृदयंगम करने का एक परंपरागत मार्ग पुनः प्रतिस्थापित किया, जो कभी भुलाया जा चुका था। वर्ष 1959 में सन्यास ग्रहण के बाद उन्होंने वृंदावन में श्रीमद्भागवत पुराण का अनेक खंडों में अंग्रेजी में अनुवाद किया। आरंभिक तीन खंड प्रकाशित करने के बाद वे 70 वर्ष की आयु में 1965 में अपने गुरुदेव का अनुष्ठान संपन्न करने बिना धन या किसी सहायता के अमेरिका निकल गए और वहां 1966 में अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ की स्थापना की।
स्वामी प्रभुपाद ने वर्ष 1968 में प्रयोग के तौर पर वर्जीनिया (अमेरिका) की पहाड़ियों में नव-वृंदावन की स्थापना की। दो हज़ार एकड़ के इस समृद्ध कृषि क्षेत्र से प्रभावित होकर उनके शिष्यों ने अन्य जगहों पर भी ऐसे समुदायों की स्थापना की। टेक्सस के डैलस में 1972 में गुरुकुल की स्थापना करके प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा की वैदिक प्रणाली का सूत्रपात किया। वर्ष 1966 से 1977 तक उन्होंने विश्वभर का 14 बार भ्रमण किया तथा अनेक विद्वानों से कृष्णभक्ति के विषय में वार्तालाप करके उन्हें यह समझाया कि कैसे कृष्णभावना ही जीव की वास्तविक भावना है। उन्होंने विश्व की सबसे बड़ी आध्यात्मिक पुस्तकों की प्रकाशन संस्था भक्तिवेदांत बुक ट्रस्ट की स्थापना की। कृष्णभावना के वैज्ञानिक आधार को स्थापित करने के लिए उन्होंने भक्तिवेदांत इंस्टिट्यूट की भी स्थापना की। स्वामी प्रभुपाद भक्ति सिद्धांत ठाकुर सरस्वती के शिष्य थे, जिन्होंने उनको अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से वैदिक ज्ञान के प्रसार के लिए प्रेरित और उत्साहित किया। उन्होंने इस्कॉन की स्थापना की और स्वयं ही कई वैष्णव धार्मिक ग्रंथों का प्रकाशन एवं संपादन किया।