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Friday 3 September 2021 02:08:01 PM
नई दिल्ली। भारत सरकार चिकित्सा प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए हितधारकों के साथ मिलकर काम करेगी। यह बात केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ जितेंद्र सिंह ने सीआईआई के 13वें सनराइज मेडिकल डिवाइस सेक्टर इन इंडिया ग्लोबल मेडटेक शिखर सम्मेलन में कही है। उन्होंने कहा कि इससे स्वदेशी प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देने में मदद मिलेगी और यह आत्मनिर्भर भारत के संकल्प के अनुरूप है। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत के स्वास्थ्य उद्योग ने आजादी के 70 वर्ष के दौरान कई क्षेत्रों में प्रगति की है और इस क्षेत्र को भारत में तेजी से उभरते क्षेत्र के रूपमें मान्यता प्राप्त है। उन्होंने कहा कि हम चिकित्सा क्षेत्र में दुनिया के अग्रणी देशों में से हैं और कभी-कभी नई तकनीकों को हम पश्चिम देशों से पहले अपने यहां अपना लेते हैं। इसके बावजूद आज भी अधिकांश चिकित्सा प्रौद्योगिकियां स्वदेशी नहीं हैं और हम अभी भी 85% आयातित प्रौद्योगिकियों पर निर्भर हैं।
डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र को कभी भी प्राथमिकता नहीं दी गई और न ही सामाजिक और न ही सांस्कृतिक। उन्होंने कहा कि आर्थिक बाधाओं के अलावा विरासत के मुद्दे भी इसके पीछे के कारण रहे हैं। डॉ जितेंद्र सिंह ने कहा कि वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने वाले प्रधानमंत्री हैं नरेंद्र मोदी जिनके नेतृत्व में सब कुछ बदल गया है, जैसा कि इस साल 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में घोषित उनके राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन से स्पष्ट है। राज्यमंत्री ने कहा कि पिछले सात वर्ष में व्यापार में आसानी और मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने के लिए कई पहलें की गई हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन नियमों को हटाने की स्वतंत्रता दी है जो स्वदेशी उद्योग के विकास में बाधा बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले उद्यमी निवेश करने के लिए इच्छुक नहीं होते थे, क्योंकि उन्हें स्वीकृति लेने के लिए 70 छोटे-बड़े विभागों से मंजूरी लेनी होती थी।
राज्यमंत्री ने कहा कि कोविड-19 ने स्वदेशी तकनीकों को एक झटके में बड़ा प्लेयर बना दिया है, जैसे-सीएसआईआर को वेंटिलेटर निर्माण में, डीबीटी को वैक्सीन उत्पादन में इसरो को लिक्विड ऑक्सीजन उत्पादन में बड़ा प्लेयर बना दिया है। उन्होंने कहा कि मंत्रालय या विभाग के अनुसार अनुमोदनों के बजाय हमें निजी क्षेत्र को शामिल करते हुए विषय आधारित परियोजनाओं पर बल देना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस कदम से स्वदेशी चिकित्सा प्रौद्योगिकियां आयात पर निर्भरता को कम करने में मदद करेंगी, हालांकि इसके लिए सरकार, निजी क्षेत्र, कॉर्पोरेट्स और वैज्ञानिकों, सभी को एक साथ आना होगा और अपने संसाधनों को इस्तेमाल एक साथ मिलकर करना होगा। उन्होंने कहा कि भारत का चिकित्सा प्रौद्योगिकी क्षेत्र 2020 में 11 अरब डॉलर का था, जो सीआईआई की एक रिपोर्ट के अनुसार 2025 तक बढ़कर 50 अरब डॉलर का हो जाएगा। वाणिज्य और उद्योग राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल, भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के विजय राघवन, एस अपर्णा सचिव फार्मास्युटिकल्स ने भी वेबिनार को संबोधित किया।