Saturday 11 September 2021 04:25:59 PM
दिनेश शर्मा
अफगानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार अमेरिका के हाथों ज़मीदोज़ होते-होते बच गई है। यद्यपि यह ख़तरा अभीभी नहीं टला है, क्योंकि अमेरिका के 9/11 के गुनाहगार और अमेरिका के मोस्ट वांटेड आतंकवादी तालिबान सरकार में मंत्री ही नहीं बनाए गए हैं, बल्कि उन्हें तालिबान ने अफगानिस्तान के गृह और रक्षा विभाग जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण विभाग दिए हैं। इससे तालिबान पर अमेरिका का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया है, भलेही ये कहा जा रहा हो या यह सत्य हो कि अमेरिका ने ही तो अफगानिस्तान में तालिबान का मार्ग प्रशस्त किया है! इसपर भी नीम चढ़ी बात यह हुई कि तालिबान ने अफगानिस्तान सरकार के शपथ ग्रहण की 9/11 तारीख रखदी, जिसदिन अलकायदा और उसके सहयोगी आतंकवादी समूहों ने अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से हवाई जहाजों को टकराकर करीब तीन हजार निर्दोष अमरीकियों को मौत के घाट उतार दिया था। वर्ल्ड ट्रेड सेंटर अमेरिका के सम्मान का भी प्रतीक था, जिसके बाद जो हुआ वह पूरी दुनिया जानती है। अमेरिका और उसका प्रत्येक नागरिक 9/11 को इस्लामिक आतंकवादियों से गुस्से में और शोकमग्न रहता है और तालिबान ने इसी दिन अपनी सरकार का शपथ ग्रहण रखकर अमेरिका के जले पर नमक छिड़क दिया। कहते हैं कि अमेरिका इस शपथ ग्रहण पर ही बमबारी करने वाला था, जिसका एहसास होते ही यह शपथ ग्रहण बिना देरी किए रद्द कर दिया गया।
दुनिया जानती है कि अमरीका ही विश्व की महाशक्ति है, जो कहीं भी जाकर कोई भी सैनिक कार्रवाई या कुछ भी कर देने की क्षमता रखता है। जहां तक दुनिया की बाकी महाशक्तियों का सवाल है तो वे भी दुनिया के देशों में अमेरिका से बड़ी महाशक्ति स्वीकार नहीं हुईं। अमेरिका ने जहां भी आर्थिक या सैनिक ऑपरेशन किए हैं, वह किसी अन्य महाशक्ति से पूछकर नहीं किए। संयुक्तराष्ट्र हो या सुरक्षा परिषद, विश्व बैंक हो या कोई भी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान, सब जगह अमेरिका का सिक्का चलता है। यह केवल कहने की बात है कि अमेरिका यहां फेल हो गया है, वहां फेल हो गया है। अमेरिका ने सदैव दुश्मन के घर में घुसकर सैनिक ऑपरेशन किए हैं। वह पाकिस्तान में घुसकर अलकायदा आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मारकर उसकी लाश अपने साथ ले गया और पाकिस्तान की सेना कुछ नहीं कर पाई। अमेरिका के बीस साल अफगानिस्तान में रहते तालिबान या अलकायदा वहां घुस नहीं पाया, छिपा रहा या दूर रहा। अफगानिस्तान छोड़ने में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की जल्दबाजी या गलती और अफगानिस्तान सेना के तालिबान लड़ाकों के सामने आत्मसमर्पण कर देने से ही तालिबान अफगानिस्तान में घुस पाया और जबतक अमेरिका अफगानिस्तान में बना रहा, तबतक तालिबानी होश में रहे, यह भी तब जब इसके पीछे अमेरिका और तालिबान का दोहा समझौता रहा है। अमेरिका के अफगानिस्तान से जाने के बाद ही अमेरिका विरोधी आतंकवादी गुट पाकिस्तान के सहयोग से तालिबान से गठजोड़ बना पाए, लेकिन जैसे ही तालिबान ने इन आतंकवादी समूहों के साथ सरकार बनाई और शपथ ग्रहण की तिथि 9/11 तय की, अमेरिका की भृकुटी तन गईं और अमेरिकी हमलों की एक ही धमकी से 9/11 को तालिबान सरकार का शपथ ग्रहण काफूर हो गया।
तालिबान के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद की यह जानकारी देते हुए ज़ुबान लड़खड़ा रही थी कि 9/11 को तालिबान सरकार का शपथ ग्रहण समारोह रद्द कर दिया गया है। तालिबान का प्रवक्ता इससे ज्यादा कुछ नहीं बोला, जिससे समझा जाता है कि अमेरिका की एक ही 'डोज़' तालिबान और पाकिस्तान के पसीने छुड़ा गई है। सवाल है कि अमेरिका क्या यह बर्दाश्त कर पाता कि जिस 9/11 तारीख को अमेरिका में उसके वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर अलकायदा और उसके सहयोगी आतंकवादियों ने हमले किए, जिनमें तीन हजार निर्दोष अमेरीकियों की जानें गईं, उस तारीख को तालिबान उन मंत्रियों का शपथ ग्रहण रखे, जिनको वह इस हमले के गुनाह में बीस साल से ढूंढ रहा है, जिन्होंने नाटो व अमेरिकी सेनाओं पर हमले किए हैं। इस तरह क्या तालिबान का 'यार' पाकिस्तान भी सुरक्षित रह पाएगा? मीडिया स्रोतों से जानकारी आ रही हैं कि दो दिन पूर्व सीआईए के चीफ पाकिस्तान पहुंचे और उन्होंने पाकिस्तान को धमकी दी कि वह भी तालिबान सरकार के 9/11 को शपथ ग्रहण का अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे। इस धमकी ने न केवल पाकिस्तान के होश उड़ा दिए, अपितु तालिबान सरकार और उसके आतंकवादी गुटों में दहशत कायम करदी कि कहीं अमेरिका तालिबान के शपथ ग्रहण समारोह पर ही भयानक बमबारी न करदे, जो वह कर सकता है, जिससे तालिबानियों के सारे सपने हमेशा को चकनाचूर हो सकते हैं, जिसमें न बांस रहेगा न बांसुरी। कहते हैं कि पाकिस्तान ने तालिबान को 'समझाकर' इस शपथ ग्रहण को तत्काल रद्द करा दिया और अपने को फिलहाल एक भयानक मुसीबत से बचा लिया।
तालिबान सरकार के 9/11 को शपथ ग्रहण रद्द करने का एक कारण यह भी समझा जा रहा है कि रूस ने इस शपथ ग्रहण में आने से इनकार कर दिया था, जिसके पीछे शपथ ग्रहण की तारीख भी मानी जाती है। ईरान भी इसी कारण शपथ ग्रहण में आने से कतरा रहा था, क्योंकि वह अमेरिका से फालतू के टकराव से दूर रहना चाहता है और वैसे भी 9/11 तारीख अमेरिका के लिए बहुत शोकपूर्ण और संवेदनात्मक है। भारत इस समारोह में आमंत्रित नहीं था। चीन तालिबान सरकार के साथ आ ही चुका है, उसपर कोई फर्क नहीं पड़ना था। चीन ने अफगानिस्तान की बड़ी आर्थिक सहायता का ऐलान किया हुआ है, क्योंकि वह किसी भी कीमत पर अफगानिस्तान में अपना सैनिक अड्डा चाहता है, लेकिन तालिबान क्या इसके बावजूद अफगानिस्तान में स्थिरता ला पाएगा, फिलहाल इसका उत्तर ना में है। जानकार कहते हैं कि पाकिस्तान की भी दिलचस्पी तालिबान के हितों में नहीं है, बल्कि वह चाहता है कि तालिबान और उसके आतंकवादी समूह कश्मीर में उसकी मदद के लिए उतरें और खूनखराबे से कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा कराएं। अपने इस उद्देश्य के लिए वह अमेरिका केलिए कुछ भी करने को तैयार है, इसीलिए अफगानिस्तान में तालिबान सरकार के 9/11 को शपथ ग्रहण रद्द करने के पीछे पाकिस्तानहै। उसने तालिबान को इस तारीख को शपथ ग्रहण का अंजाम समझाया।
अफगानिस्तान में तालिबान की अंतरिम सरकार में अमेरिका के मोस्ट वांटेड जलालुद्दीन हक्कानी के पुत्र सिराजुद्दीन हक्कानी को गृहमंत्री बनाया गया है, जोकि अमेरिका का पचास करोड़ डॉलर का ईनामी मोस्ट वांटेड है। इस सरकार में और भी कई ईनामी आतंकवादी मंत्री बनाए गए हैं। यह कहना भी अतिश्योक्ति न होगा कि तालिबान सरकार में अपवाद को छोड़कर कोई ऐसा मंत्री नहीं है, जो मानवता के प्रति गुनाहगार न हो। तालिबान अलकायदा और हक्कानी नेटवर्क की इस अंतरिम सरकार में इस्लामिक शरिया कानून के नाम पर नरसंहार, महिलाओं और बच्चियों के साथ रेप एवं अत्याचार, लोगों के घरों में लूट हत्या और आगजनी को अंजाम देने वालों की भरमार है। तालिबान अलकायदा और हक्कानी नेटवर्क को पाकिस्तान और चीन सरकार का भरपूर समर्थन माना जाता है और यह सिद्ध भी हो गया है। भारत ने अफगानिस्तान में खरबों रुपयों के लोककल्याण के कार्यों में निवेश किया हुआ है, जो पाकिस्तान और चीन को बहुत खटकता आ रहा है। पाकिस्तानटर्की और चीन नहीं चाहते हैं कि अफगानिस्तान और उसके नए निजाम से भारत का आगे कोई भी वास्ता रहे। अफगानिस्तान में तख्ता पटल के बाद तालिबान से भारत विरोधी आईएसआई, अलकायदा, हक्कानी नेटवर्क, जैश-ए-मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन जैसे आतंकवादी समूहों का गठजोड़ बना है और तालिबान छद्मपूर्वक भारत से संबंध रखने की नौटंकी कर रहा है, उससे न केवल भारत बल्कि भारत के मित्र देश भी सर्तकता बरत रहे हैं। देखिए आगे-आगे होता है क्या!