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Monday 22 November 2021 04:07:20 PM
पणजी। प्रख्यात गीतकार और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने उन महत्वाकांक्षी कलाकारों से कहा हैकि जो सिनेमा के माध्यम से दुनिया को बदलना चाहते हैं, उनको जो पसंद है उसे पूरी तरह से करने के बजाय प्रेरित करना चुनें। प्रसून जोशी ने कहाकि मुझे जो पसंद है, उसे लिखने और लोगों को प्रेरित करने वाली चीज़ लिखने केबीच एक विकल्प के रूपमें, मैं निस्संदेह बाद वाले को चुनूंगा, यह आत्मकेंद्रित होने के बजाय समाजकेंद्रित होने केबारे में है। प्रसून जोशी ने यह बात गोवा में भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के 52वें संस्करण से अलग फिल्म निर्माण पर मास्टर क्लास सत्र में कही। फिल्म निर्माण की अपनी शैली के बारे में प्रसून जोशी ने इसे एक ऐसे दर्शक के रूपमें चित्रित किया, जो एक निश्चित लाभ की दृष्टि से चीजों को देखता है और किसी के शिल्प केलिए प्रामाणिक रहता है।
प्रसून जोशी ने आज़ादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूपमें 75 क्रिएटिव माइंड्स ऑफ़ टुमारो प्रतियोगिता के माध्यम से उभरते कलाकारों को सम्मानित करने और उनका मार्गदर्शन करने केलिए फिल्मोत्सव की सराहना की। प्रसून जोशी ने कहाकि फिल्मों में विविधता को प्रतिबिंबित करने केलिए फिल्म निर्माताओं केबीच विविधता बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने सभीसे अपनी मातृभाषा के अलावा कम से कम एक भारतीय भाषा सीखने की भी अपील की। प्रसून जोशी को 2021 के इंडियन फिल्म पर्सनैलिटी ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। महोत्सव के उद्घाटन समारोह में हेमामालिनी को पुरस्कार प्रदान किया गया, जबकि प्रसून जोशी 28 नवंबर को समापन समारोह में पुरस्कार ग्रहण करेंगे। प्रसून जोशी ने इस धारणा को दूर करने की आवश्यकता की बात कहीकि फिल्म क्षेत्र में सफलता अवसर की अनिश्चितता पर निर्भर करती है।
प्रसून जोशी ने कहाकि फिल्म निर्माण में संभावना कारक को कम किया जाना चाहिए, यह तब होगा जब हम डिफॉल्ट से नहीं, बल्कि डिजाइन के हिसाब से फिल्में बनाना शुरू करेंगे। उन्होंने कहाकि फिल्म निर्माण एक गंभीर व्यवसाय है, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों को व्यवसाय प्रदान करने की क्षमता है, इसलिए हमें फिल्म निर्माण की छवि को जुए के समान मिटाने का प्रयास करना चाहिए। प्रसून जोशी ने फिल्म निर्माण के व्यावहारिक और कलात्मक दोनों पहलुओं पर समान रूपसे ध्यान देने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने प्रसिद्ध संगीत निर्देशक एआर रहमान के उस कथन को उद्धृत किया, जिसमें उनका कहना थाकि कला के साथ-साथ संगीत उद्योग की तकनीक केसाथ समान रूपसे परिचित है। प्रसून जोशी ने कहाकि समाज के सकारात्मक पहलुओं को भी सामने लाना आवश्यक है। उन्होंने कहाकि मान्यताओं और परंपराओं की नकाशी करना सुंदरता है, समाज की सकारात्मक चीजों को चित्रित करने की भी आवश्यकता है।
प्रसून जोशी ने एक ऐसी माँ का उदाहरण दिया, जो अपनी कई तृष्णा और चाहत का त्याग करती है, जिससे उसकी आत्मअभिव्यक्ति सीमित हो जाती है, ताकि उसकी संतान किसी भी बीमारी से पीड़ित न हो। उन्होंने कहाकि यह कहना कि केवल वही फिल्में सफल होती हैं, जो लोकप्रिय मान्यताओं को चुनौती देती हैं, सच्चाई को और अधिक सरल बनाती है। प्रसून जोशी ने कहाकि शब्द संस्कृति को समाहित करते हैं, फिलोसोफी केलिए इस्तेमाल किया जाने वाला दर्शन शब्द पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि इसमें प्रत्यक्ष सत्य शामिल है, जो फिलोसोफी से गायब हो सकता है। उन्होंने कहाकि बोर्ड विचार-विमर्श से विवादों को हल करने में विश्वास करता है, हमारी शुरूआती धारणा यह हैकि कोई भी सच्चा फिल्म निर्माता नहीं चाहताकि उसकी फिल्में किसी को नुकसान पहुंचाएं, हम निर्णय लेने की कोशिश नहीं करते हैं, हम मानते हैंकि फिल्म प्रमाणनकर्ता भी फिल्म के सहनिर्माता हैं, क्योंकि वे समाज की आवाजों को शामिल करने की कोशिश कर रहे हैं।