स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Tuesday 23 November 2021 01:25:09 PM
पणजी। सत्यजीत रे का मानना थाकि सिनेमा की अपनी एक भाषा होनी चाहिए, स्व-अध्ययन के माध्यम से उन्होंने फिल्म निर्माण की अपनी शैली बनाई। सत्यजीत रे की फिल्में देखना सभी फिल्मप्रेमियों, छात्रों और फिल्म निर्माताओं केलिए जरूरी है, उनकी फिल्में भौगोलिक और भाषाई सीमाओं के बावजूद सभीसे जुड़ती हैं। भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान के निर्देशन और पटकथा लेखन विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर गंगामुखी ने 52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में 'डायरेक्टोरियल प्रैक्टिसेज ऑन सत्यजीत रे' विषय पर मास्टर क्लास में ये विचार साझा किए। उन्होंने कहाकि सत्यजीत रे की फिल्में बनने के दशकों बाद आज भी अनूठी हैं, वह बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के फिल्म निर्माण में आए, लेकिन हमेशा फिल्म निर्माताओं को अपने कार्यों से प्रेरित करते रहे।
प्रोफेसर गंगामुखी ने फिल्म निर्माण में सत्यजीत रे की महारत केबारे में गहराई से बात की। उन्होंने द अपू ट्रिलॉजी में प्रयुक्त रे की अद्भुत शैली की भी चर्चा की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डालाकि सत्यजीत रे ने हर भावना को कम या बिना संवाद के व्यक्त किया है, उन्होंने फिल्म निर्माण को एक अनूठी भाषा दी है। गंगामुखी ने कहाकि फिल्म के शीर्षक केसाथ ही सत्यजीत रे की कहानी का मर्म उनके शीर्षक में भी झलकता है, शीर्षक एक हस्तनिर्मित कागज पर दिखाई देता है, लेखन लगभग धुंधला होता है, लेकिन सुलेख बहुत सुंदर होता है, इस तरह फिल्म खुद की घोषणा करती है, जो इस बात का प्रतीक हैकि हम इस कठोर दुनिया में एक खूबसूरत कहानी देखने जा रहे हैं। उन्होंने कहाकि पाथेर पांचाली के आरंभिक दृश्य को बहुत खूबसूरती से दिखाया गया है, पहले फ्रेम में केवल उनकी आँखों को दिखाया गया है, यह सूक्ष्म रूपसे दर्शकों को याद दिलाता हैकि वह है जो बाहर की दुनिया को देखना पसंद करता है, पूरे चरित्र को सिर्फ एक शॉट में चित्रित किया गया है।
सत्यजीत रे के पात्रों को ज्यादातर दरवाजे व खिड़कियों के माध्यम से दिखाया जाता है, केवल यह दिखाने केलिए कि पात्र एक ही समय में हैं भी और नहीं भी। गरीबी हमारे साथ क्या करती है? यह हमारे आत्मसम्मान के साथ क्या करती है? एक इंसान समाज में आर्थिक खाई का शिकार कैसे हो सकता है? एक फिल्म निर्माता इन सबको कैमरे पर कैसे दिखा सकता है? इनका जिक्र करते हुए गंगामुखी ने व्याख्या कीकि सत्यजीत रे ने गरीबी को बहुत ही सूक्ष्मता से पर्दे पर सिर्फ एक संवाद केसाथ चित्रित किया, जहां एक पात्र पूछता हैकि क्या आप गाय को नहीं खिला रहे हैं? वे केवल आधा बर्तन दूध ही दे रही है। उन्होंने कहाकि सत्यजीत रे एक ऐसा दृश्य बनाने में माहिर थे, जहां कुछ भी सीधे नहीं दिखाया जाता है, लेकिन फिरभी दर्शक इसके पीछे की भावना को समझ पाते हैं। गंगामुखी ने बतायाकि फिल्म निर्माण में इस्तेमाल की जानेवाली सभी रूढ़ियों को तोड़ने के सत्यजीत रे के साहसिक फैसलों ने उनकी फिल्म को अनुठा बना दिया। उन्होंने कहाकि एक फिल्म निर्माता के रूपमें उन्होंने ऐसे फैसले लिए जो पहले नहीं लिए गए थे। भारत सरकार महान फिल्मकार सत्यजीत रे को श्रद्धांजलि देते हुए भारत और विदेशों में सालभर चलने वाले जन्म शताब्दी समारोह का आयोजन कर रही है।
सिनेमा की दुनिया में सत्यजीत रे एक ऐसी किरण थे, जो आज भी लाखों लोगों के जेहन और सिनेमा से संबंधित करोड़ों विचारों को रोशन करते हैं। भारत की आजादी के 75वें वर्ष और इस महान फिल्म निर्माता की 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में निर्णय लिया गया हैकि आईएफएफआई के लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार को अबसे सत्यजीत रे लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार कहा जाएगा। गोवा में 52वें आईएफएफआई के उद्घाटन समारोह में हॉलीवुड फिल्म निर्माता मार्टिन स्कॉर्सेस और हंगेरियन फिल्म निर्माता इस्तवान स्जाबो को सत्यजीत रे लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। सत्यजीत रे को आधुनिक सिनेमा के अग्रदूतों में से एक माना जाता है और उन्हें दुनियाभर के सिनेप्रेमियों में सम्मान की नज़र से देखा जाता है। द अपू ट्रिलॉजी और द म्यूजिकरूम जैसी उनकी कृतियों ने उन्हें भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमर कर दिया और वे आज भी कालजयी बनी हुई हैं।