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Saturday 27 November 2021 04:04:00 PM
पणजी। ईरानी निर्देशक सेतारेह एस्कंदरी की बलूची फिल्म 'द सन ऑफ दैट मून' सिने प्रेमियों केलिए एक डूब जानेवाला अनुभव है, जिसमें बीबन के किरदार की कोलाहल भरी भीतरी दुनिया और वो रूढ़िवादी समाज नज़र आता है, जिस समाज केलिए अपने बचपन के प्यार की चाह वर्जित है। बलूची भाषा में 'खुर्शीद-ए आन माह' नामसे मशहूर इस फिल्म का 52वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में वर्ल्ड प्रीमियर हुआ। सिस्तान और बलूचिस्तान के दक्षिण-पूर्वी ईरानी प्रांतों पर आधारित इस फ़िल्म को इफ्फी महोत्सव के विश्व पैनोरमा खंड में सिनेमा प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत किया गया। बीबन के किरदार के जरिए फ़िल्म की निर्देशक बाहरी दुनिया के लोगों को ईरान की महिलाओं के आम जीवन और यहां के लोगों की कम ज्ञात संस्कृति को दिखाना चाहती हैं।
फिल्म में एक विधवा महिला किसी पीड़ा की वजह से मौन सी हो जाती है और आगे न बोलने का फैसला लेती है, फिर जब उसके जीवन में बचपन के दोस्त का प्रवेश होता है तो उससे उसके घायल दिल में प्यार की लौ फिर जल उठती है। फ़िल्म की निर्देशक ने कहाकि मौजूदा सामाजिक एवं सांस्कृतिक लोकाचार और परंपरा के डर से बीबन का प्यार मौन में ही परवान चढ़ता और गिरता है, एक विधवा होने के कारण प्रचलित सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानदंडों और प्रथाओं के अनुसार बीबन अपने बचपन के प्यार केसाथ नहीं रह सकती। उनका कहना हैकि यह फ़िल्म बलूचिस्तान क्षेत्र की महिलाओं की सच्ची कहानी को चित्रित करती है, जो मीडिया में ठीक से नहीं दिखाई देती है। उन्होंने उम्मीद जताई हैकि उनकी यह फ़िल्म इन महिलाओं को आजादी और अधिकार दिलाएगी। सेतारेह एस्कंदरी ने प्रेम और मौन के दुखद रूपसे भुला दिए गए जीवन तत्वों को याद करने की कालातीत ज़रूरत पर बात की। उन्होंने कहाकि जिस दुनिया में हम रहते हैं वह हिंसा और नफरत से भरी है, हम सब मौन और प्यार को भूल चुके हैं।
निर्देशक सेतारेह एस्कंदरी ने कहाकि वे इस फ़िल्म के जरिए प्यार की ताकत का प्रदर्शन करना चाहती हैं और महिलाओं के अधिकारों एवं आज़ादी को प्रोजेक्ट करना चाहती हैं। निर्देशक ने कहाकि इस कहानी का ताल्लुक भारत से भी है, क्योंकि भारत में भी विधवा हिंदू महिलाएं कठोर जीवनशैली का पालन करती हैं। उन्होंने कहाकि मैं भारत में अपनी फ़िल्म का वर्ल्ड प्रीमियर करके बहुत खुश हूं, भारत-ईरान की जीवनशैली और संस्कृति में काफी समानताएं हैं और यकीन हैकि यहां के लोग इस फ़िल्म को पसंद करेंगे। उन्होंने याद कियाकि इफ्फी में स्क्रीनिंग के दौरान उन्होंने देखाकि बहुत से लोग, विशेष रूपसे महिलाएं काफी भावुक हो गई थीं। फ़िल्म के शीर्षक पर निर्देशक ने कहाकि ईरान की संस्कृति में सूरज को पुरुष और चांद को महिला के रूपमें दर्शाया गया है, जोकि रोशनी और अंधेरे का भी प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसाकि ये फ़िल्म एक पुरुष की तुलना में एक महिला के जीवन में मौजूद अंधेरे को दिखाती है तो वहीं से शीर्षक आता है।
इफ्फी के दर्शकों को बहुत खुशी हुई जब निर्देशक ने कहाकि ईरान के लोग भारतीय सिनेमा को खासा पसंद करते हैं। उन्होंने बतायाकि हमारे यहां ज्यादातर लोगों ने फ़िल्म शोले देखी है और वे अमिताभ बच्चन को पसंद करते हैं। उन्होंने कहाकि लैजेंड सत्यजीत रे हमेशा उनके लिए एक आदर्श रहे हैं और वे उनकी फ़िल्मों से प्रेरणा लेती हैं। ईरान के खुरासान में जन्मी सेतारेह एस्कंदरी एक प्रतिभावान अभिनेत्री हैं, जिन्हें थिएटर, टीवी और फ़िल्मों में अपने काम केलिए अत्यधिक सम्मान और प्रशंसाएं मिली हैं। ईरानी थिएटर के बड़े-बड़े अदाकारों केसाथ एस्कंदरी ने काम किया है, खासकर 'दे ट्रूप' में अली रफ़ी केसाथ और वे रंगमंच व टीवी नाटकों के निर्देशक के रूपमें भी सक्रिय हैं। द सन ऑफ दैट मून उनकी पहली फीचर फ़िल्म है।