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Wednesday 1 December 2021 01:13:03 PM
नई दिल्ली। अबसे पश्मीना का कपड़ा वाराणसी में बुना जाएगा। लेह-लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में उत्पन्न दुनियाभर में मशहूर पश्मीना ऊन के उत्पाद अब वाराणसी में भी बनाए जाएंगे। खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने एक अग्रणी पहल करते हुए वाराणसी और गाजीपुर जिलों के 4 खादी संस्थानों को कच्ची पश्मीना ऊन के प्रसंस्करण तथा इसे आगे ऊनी कपड़े में बुनने केलिए चुना है। विरासत में प्राप्त पश्मीना बुनाई शिल्प को जम्मू-कश्मीर के बाहर पेश करने और इस अनूठी कला से शेष भारत के कारीगरों को परिचित कराने का यह पहला प्रयास है। वाराणसी में पश्मीना बुनाई अगले साल जनवरी से शुरू होगी। वाराणसी के सेवापुरी आश्रम के 20 खादी कारीगरों को पश्मीना बुनाई में 30 दिन का प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिसके लिए इन संस्थानों ने पश्चिम बंगाल के 2 मास्टर प्रशिक्षकों को राजी कराया गया है।
वाराणसी मंडल के इन चारों खादी संस्थानों ने दिल्ली में कच्ची पश्मीना ऊन का प्रसंस्करण शुरू कर दिया है। दिल्ली में प्रसंस्कृत लगभग 200 किलोग्राम पश्मीना ऊन दिसंबर के पहले सप्ताह तक लेह में कारीगरों को आपूर्ति की जाएगी। लेह के ये कारीगर दिसंबर के अंततक ऊन कातेंगे, जिसे बुनाई केलिए वाराणसी लाया जाएगा। पश्चिम बंगाल से आनेवाले कारीगरों को मलमल बनाने में अत्यधिक प्रशिक्षण प्राप्त है, जिसमें अति सूक्ष्म बुनाई शामिल होती है, जो पश्मीना की बुनाई के समान होती है। वाराणसी में पश्मीना उत्पादन करने वाली 4 खादी संस्थाएं हैं-कृषक ग्रामोद्योग विकास संस्थान वाराणसी, महादेव खादी ग्रामोद्योग संस्थान गाजीपुर, खादी कंबल उद्योग संस्थान गाजीपुर और ग्राम सेवा आश्रम गाजीपुर। केवीआईसी से मान्यता प्राप्त इन खादी संस्थानों ने लेह-लद्दाख से कच्ची पश्मीना ऊन की खरीद शुरू कर दी है, इसे 15 नवंबर को प्रसंस्करण केलिए दिल्ली लाया गया है, जिसे रेशे निकालने केलिए ले जाया जाएगा। कताई केलिए लेह में खादी कारीगरों को खुले हुए धागों के रेशे वापस भेजे जाएंगे, जिन्हें केवीआईसी ने 100 नए मॉडल चरखे प्रदान किए हैं।
लद्दाख के उपराज्यपाल आरके माथुर केसाथ केवीआईसी के अध्यक्ष विनय कुमार सक्सेना ने यह निर्णय हालही में एक बैठक में किया, जहां उपराज्यपाल ने बतायाकि लेह-लद्दाख में प्रतिवर्ष लगभग 50 मीट्रिक टन कच्ची पश्मीना का उत्पादन किया जाता है, इसमें से सफाई और प्रसंस्करण केबाद पश्मीना ऊन उत्पादों के उत्पादन केलिए वास्तव में केवल 15 मीट्रिक टन ऊन का उत्पादन किया जाता है। लेह-लद्दाख में कुछ छोटी इकाइयों द्वारा पश्मीना उत्पादों के निर्माण केलिए केवल 15 मीट्रिक टन डीहेयर्ड पश्मीना ऊन का उपयोग किया जाता है, जोकि केवल 500 किलोग्राम मात्रा यानी 0.5 मीट्रिक टन है, जिससे लद्दाख में रोज़गार का नुकसान हो रहा है। वाराणसी के इन खादी संस्थानों ने हाल हीमें लेह से 500 किलोग्राम कच्ची पश्मीना ऊन खरीदी है, जिसे प्रसंस्करण यानी डीहेयरिंग और रेशे में बदलने केलिए दिल्ली लाया गया है। केवीआईसी के अध्यक्ष ने कहाकि इस कदम से न केवल लद्दाख में बिना बालों वाली पश्मीना ऊन की पूरी गुणवत्ता का उपयोग सुनिश्चित होगा, बल्कि स्थानीय कारीगरों केलिए रोज़गार के नए अवसर भी खुलेंगे और वाराणसी में वास्तविक तथा सस्ती पश्मीना ऊन उत्पादों की उपलब्धता भी होगी।
केवीआईसी इन खादी संस्थानों को ऑनलाइन मार्केटिंग सहायता प्रदान करेगा। यह एक पथप्रदर्शक पहल होगी, क्योंकि पश्मीना का उत्पादन पहलीबार जम्मू-कश्मीर और लेह-लद्दाख क्षेत्र के बाहर किया जाएगा। दिल्ली में कच्चे पश्मीना ऊन का प्रसंस्करण 20 नवंबर को केवीआईसी अध्यक्ष ने शुरू किया था। संसाधित पश्मीना ऊन की लेह-लद्दाख के कारीगरों को वापस आपूर्ति की जाएगी। दिल्ली में पश्मीना रॉ वूल प्रोसेसिंग सेंटर लेह-लद्दाख में कारीगरों को पश्मीना रेशे की सालभर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा, जहां अत्यधिक ठंड केकारण सभी गतिविधियां छह महीने केलिए निलंबित रहती हैं। ऑल चांग थांग पश्मीना ग्रोअर्स मार्केटिंग कोऑपरेटिव सोसाइटी लेह, जहां से खादी संस्थान कच्ची पश्मीना ऊन खरीद रहे हैं ने भी इस कदम का यह कहते हुए स्वागत किया हैकि इससे लेह-लद्दाख के स्थानीय कारीगरों को मदद मिलेगी। सोसाइटी सचिव थिनले ने कहाकि हमने केवीआईसी को 500 किलोग्राम कच्चे ऊन की आपूर्ति की है और भविष्य में कच्चे ऊन की मांग को पूरा किया जाएगा, क्योंकि इससे लेह-लद्दाख में खादी कारीगरों को पर्याप्त काम मिलेगा और स्थानीय पश्मीना उद्योग मजबूत होगा।
केवीआईसी ने एक महीने के प्रशिक्षण केबाद लेह-लद्दाख के 4 गांव में स्थानीय कारीगरों को पश्मीना ऊन की कताई गतिविधियों को शुरू करने केलिए 8 तकली वाले 100 नए मॉडल चरखे प्रदान किए हैं। ये गांव लिकिर, सास्पोल, शक्ति और लेह शहर हैं। वाराणसी संभाग के इन 4 संस्थानों ने कारीगरों को गोद लिया है और विशेष मामले के रूपमें 20 रुपये प्रति लच्छा कताई शुल्क देने का फैसला किया है। लेह-लद्दाख में पारंपरिक चरखे पर काम करनेवाले कारीगर प्रतिदिन केवल 2-3 लच्छा पश्मीना ऊन का उत्पादन कर सकते हैं और प्रतिदिन 100 रुपये से कम कमाते हैं, लेकिन अब केवीआईसी के तकली वाले नए मॉडल चरखे पर कारीगर प्रतिदिन 15 लच्छों तक का उत्पादन करेंगे और प्रतिदिन 300 रुपये तक कमाएंगे। लेह में खादी कारीगरों का कहना हैकि केवीआईसी की यह पहल लेह-लद्दाख में हमारे लिए पूरे साल काम सुनिश्चित करेगी, जिसके परिणामस्वरूप हमें अधिक मजदूरी मिलेगी और हमारी वित्तीय स्थिरता कायम होगी। केवीआईसी ने लेह में 25 उच्च गुणवत्ता वाले 48 इंच चौड़ाई के करघे भी प्रदान किए हैं, जो न केवल कारीगरों की बुनाई में लगने वाली मेहनत को कम करेंगे, बल्कि सभी आकार के कपड़ों का उत्पादन भी करेंगे, काम बढ़ते ही केवीआईसी और भी चरखे लगाएगा।