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Sunday 5 December 2021 03:30:26 PM
नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों से अनुसंधान और विकास में अधिक निवेश करने एवं नए उत्पादों व तकनीकों का निर्माण करने केसाथ ही देश की सुरक्षा और प्रगति में योगदान करने का आह्वान किया है। नई दिल्ली में हाइब्रिड मोड में रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग और सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स के संयुक्त तत्वावधान में एमएसएमई संगोष्ठी में उद्घाटन भाषण देते हुए राजनाथ सिंह ने एमएसएमई और एसआईडीएम से जर्मनी के मिटेएलस्टैंड, जिसे पूरी दुनिया ने धातु उपकरणों के निर्माण केलिए मान्यता दी है, उसीकी तरह भारत में भी औद्योगिक स्तंभ बनाने का आग्रह किया है। राजनाथ सिंह ने कहाकि लगातार बदलते सुरक्षा परिदृश्य को देखते हुए सरकार रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रही है, साथही यहभी कहाकि इस क्षेत्र में एमएसएमई की पूरी क्षमता को निखारने केलिए आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने विश्वास जताया कि भारतीय निर्माता और उनसे जुड़े एमएसएमई देश की रक्षा जरूरतों और वैश्विक आवश्यकता को पूरा करने में प्रमुख भूमिका निभाएंगे।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहाकि मेक इन इंडिया पहल के प्रमुख उद्देश्यों मेंसे एक एमएसएमई को रक्षा आपूर्ति श्रृंखला में लाना है, जिससे रक्षा में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और रक्षा निर्यात बाजार में योगदान करना है। उन्होंने कहाकि राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास में प्रमुख उद्योग टैंक, पनडुब्बियां, विमानों और हेलीकाप्टरों के निर्माण से बड़ी भूमिका निभाते हैं, लेकिन इन बड़े प्लेटफॉर्मों के पीछे छोटे उद्योग होते हैं। उन्होंने कहाकि एमएसएमई न केवल उप प्रणालियों और घटक स्तरपर गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्माण करके बड़ी संस्थाओं का समर्थन कर रहे हैं, बल्कि लोगों केलिए प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोज़गार भी पैदा कर रहे हैं। उन्होंने यह कहते हुए सरकार का पूरा समर्थन कियाकि बड़े उद्योग और एमएसएमई एक-दूसरे के पूरक हैं, साथमें देश की सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं। राजनाथ सिंह ने एमएसएमई को उद्योग की रीढ़ बताया, जो न केवल आर्थिक गतिविधियों केलिए, बल्कि सामाजिक विकास केलिए भी समान रूपसे जिम्मेदार है।
रक्षामंत्री ने कहाकि आज देश में एमएसएमई की बड़ी संख्या है, जो अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से हमारे सकल घरेलू उत्पाद में 29 प्रतिशत का योगदान करते हैं, कृषि क्षेत्र केबाद यह लगभग 100 मिलियन लोगों को रोजगार देने वाला सबसे बड़ा स्रोत है, एमएसएमई बड़े उद्यमों में अन्वेन्मेषकों और मध्यस्थों को शामिल करने के लिए भी काम करते हैं। उन्होंने कहाकि वे बड़ी औद्योगिक संस्थाओं के उद्देश्यों को पूरा करने में महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर मूल्य और आपूर्ति श्रृंखला के जरिए मदद करते हैं। रक्षामंत्री ने उल्लेख कियाकि बड़ी संस्थाओं की तुलना में एमएसएमई द्वारा धन का केंद्रीकरण कम है और इसका वितरण फैला हुआ है, जो आर्थिक असमानता को कम करने में मदद करता है। उन्होंने कहाकि एमएसएमई निश्चित रूपसे देश के युवाओं को आर्थिक रूपसे सशक्त बनाने और उनके सपनों को पूरा करने में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। राजनाथ सिंह ने कहाकि हम बैंकिंग और पूंजी बाजार से संबंधित नीतियां लाएं, ताकि एमएसएमई को आसानी और सस्ती दरों पर अधिकतम पूंजी मिल सके।
रक्षामंत्री ने कहाकि हम एमएसएमई की निश्चित लागत को कम करने केलिए मूल्यश्रृंखला एकीकरण और सामान्य सुविधाओं की स्थापना, औद्योगिक पार्कों और दो रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना की नीति लेकर आए। उन्होंने मेक इन इंडिया केतहत कुछ पहलुओं को सूचीबद्ध किया, विशेष रूपसे जिनका उद्देश्य सार्वजनिक और निजी क्षेत्र में एमएसएमई की क्षमताओं का उपयोग करके देश में रक्षा और एयरोस्पेस उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को बढ़ावा देना है। उन्होंने कहाकि हमारे पास हवाई क्षेत्र और रक्षा का अनुमानित 85,000 करोड़ रुपये का उद्योग है, इसमें निजी क्षेत्र का योगदान बढ़कर 18,000 करोड़ रुपये हो गया है। उन्होंने कहाकि हमारी दृष्टि भारत को वैश्विक रक्षा उत्पादन केंद्र बनाने की है। राजनाथ सिंह ने कहाकि रक्षा उत्कृष्टता केलिए नवाचार आईडीईएक्स और तकनीकी विकास फंड टीडीएफ के तहत परियोजनाएं मुख्य रूपसे स्टार्टअप्स और एमएसएमई केलिए आरक्षित हैं।
रक्षामंत्री ने कहाकि ये योजनाएं रक्षा तकनीकी विकास और उपयोगकर्ता सेवाओं द्वारा सहायता प्रदान करने केलिए वित्तीय सहायता प्रदान करती हैं, इस प्रकार एमएसएमई, स्टार्टअप और व्यक्तिगत अन्वेषकों को आवश्यक प्रोत्साहन देती हैं। उन्होंने कहाकि समस्याओं के अभिनव समाधान केलिए उन्हें आर्थिक अनुदान केसाथ वित्तपोषित किया जा रहा है, ताकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स और रोबोटिक्स जैसी नई तकनीकों का उपयोग किया जा सके। रक्षामंत्री ने रक्षा मंत्रालय द्वारा 2021-22 से 2025-26 तक अगले पांच वर्ष केलिए लगभग 500 करोड़ रुपये के बजटीय सहयोग केसाथ आईडीईएक्स केंद्रीय कार्यक्षेत्र की योजना को मंजूरी देने का भी उल्लेख किया। यह योजना रक्षा नवाचार संगठन डीआईओ के माध्यम से लगभग 300 स्टार्टअप एमएसएमई व्यक्तिगत अन्वेषकों और लगभग 20 भागीदारों को वित्तीय सहायता प्रदान करेगी। उन्होंने कहाकि मंत्रालय ने नई रक्षा तकनीकों के विकास को बढ़ावा देने और देश में बढ़ते स्टार्टअप आधार को समर्थन करने केलिए 2021-22 के दौरान आईडीईएक्स स्टार्टअप्स से खरीद केलिए 1,000 करोड़ रुपये निर्धारित किए हैं। उन्होंने इस तथ्य की सराहना कीकि वर्तमान में टीडीएफ के तहत 30 से अधिक परियोजनाएं प्रगति पर हैं और 150 करोड़ रुपये से अधिक का उपयोग किया जा चुका है।
राजनाथ सिंह ने डीआरडीओ की डेयर टू ड्रीम नवाचार प्रतियोगिता केबारे में बात की, जो भारत के राष्ट्रपति रहे प्रख्यात वैज्ञानिक डॉ एपीजे अब्दुल कलाम को समर्पित है। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि भारतीय उद्योग न केवल भारतीय सशस्त्र बलों केलिए, बल्कि वैश्विक बाजार केलिए भी एक अत्याधुनिक तकनीकी देने वाला बन जाएगा। निर्यात को बढ़ावा देने पर सरकार के दावों को दोहराते हुए राजनाथ सिंह ने उम्मीद जताईकि भारत जल्द ही शुद्ध आयातक से विशुद्ध निर्यातक बन जाएगा, सरकार का लक्ष्य 2024-25 तक 35,000 करोड़ रुपये के निर्यात लक्ष्य को हासिल करना है। भारत वर्तमान में लगभग 70 देशों को रक्षा उपकरणों का निर्यात कर रहा है। उन्होंने कहाकि स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत रक्षा निर्यात में शीर्ष 25 देशों की सूची में है। रक्षामंत्री ने मेक इन इंडिया और मेक फॉर द वर्ल्ड के सरकार के संकल्प को दोहराया। उन्होंने कहाकि इन सभी उपायों के परिणामस्वरूप स्वदेशी रक्षा उद्योग को दिए जानेवाले अनुबंधों की संख्या में वृद्धि हुई है।
रक्षामंत्री ने कहाकि सरकार के सुधारों के कारण पिछले सात साल में देश का रक्षा निर्यात 38,000 करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया है, 12,000 एमएसएमई रक्षा क्षेत्र में शामिल हुए, जिससे अनुसंधान एवं विकास, स्टार्टअप, नवाचार और रोज़गार अवसरों में वृद्धि हुई है। उन्होंने कहाकि इन नीतियों के कारण अब एसआईडीएम के 500 से अधिक सदस्य हैं। रक्षामंत्री ने रक्षा निर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने केलिए सरकार केसाथ सक्रिय रूपसे काम करने केलिए एसआईडीएम की सराहना की। उन्होंने कहाकि एसआईडीएम में बढ़ोतरी और लगातार बढ़ रही पहुंच भारतीय रक्षा उद्योग के विकास को दर्शाती है। उन्होंने आशा व्यक्त कीकि यह संगोष्ठी विकास के नए अवसर प्रदान करेगी। एसआईडीएम अध्यक्ष जयंत पाटिल ने एमएसएमई का समर्थन करने और विकास को सुविधाजनक बनाने केलिए एसआईडीएम की प्रतिबद्धता की पुष्टि की। उन्होंने रक्षा मंत्रालय केसाथ सक्रिय रूपसे काम कर एमएसएमई केलिए नए अवसरों की पहचान और इस क्षेत्र केसाथ अधिक समग्रता केसाथ काम जारी रखने की आशा जताई।
एमएसएमई संगोष्ठी का मुख्य उद्देश्य रक्षाक्षेत्र में मेक इन इंडिया कार्यक्रम के बारे में प्रासंगिक जानकारी प्रदान करके भारतभर में टियर 2 और टियर 3 शहरों में गैर रक्षा क्षेत्र एमएसएमई की क्षमता को बढ़ावा देना, देश में रक्षा उत्पादन के विकास को एक नई गति देना, अपनी घरेलू जरूरतों और मित्र देशों को निर्यात करना, गैर रक्षा क्षेत्रों में सक्रिय भारतीय एमएसएमई को रक्षा क्षेत्र में उनके प्रवेश केलिए जानकारी प्रदान करन के साथही सक्षम उद्यमियों को कम पूंजी या पूंजी गहन परियोजनाओं के लिए विशेष रूपसे स्थापित विभिन्न वित्त पोषण तंत्रों से परिचित कराने और भारतीय रक्षा क्षेत्र में संभावित बाजार और व्यापार के अवसरों के बारे में सूचित करने को लेकर था। भारत में कई हजार एमएसएमई विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे हैं, आमतौर पर विभिन्न सरकारी प्रतिष्ठानों और बड़े निजी क्षेत्र के ओईएम केसाथ नजदीकी साझेदार के रूपमें जुड़े हुए हैं। संगोष्ठी में रक्षा मंत्रालय और एसआईडीएम के वरिष्ठ अधिकारी और उद्योग के प्रतिनिधि मौजूद रहे।