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Friday 17 December 2021 01:06:29 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडु ने 2025 तक 'टीबी मुक्त भारत' अभियान में लोगों को प्रमुख भागीदार बनाने का आह्वान किया है। उन्होंने कहाकि लोगों तक यह संदेश पहुंचना चाहिए कि टीबी निश्चित रूपसे रोकथाम योग्य और इलाज योग्य है। उन्होंने कहाकि टीबी को पूरी तरह खत्म करने केलिए समाज का जुड़ाव किसीभी अन्य बीमारी के मुकाबले कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह देखते हुएकि समाज के कमजोर वर्गों पर तपेदिक का प्रभाव कहीं ज्यादा पड़ता है, उन्होंने टीबी उन्मूलन केलिए बड़े पैमाने पर संसाधनों का इस्तेमाल करने और अलग-अलग क्षेत्रों से आगे आने का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने कहाकि टीबी को पूरी तरह खत्म करने के लक्ष्य को तभी हासिल किया जा सकता है, जब इसे जन आंदोलन का रूप दिया जाए और सभी स्तरों पर जनप्रतिनिधियों से जन आंदोलन में लोगों को शामिल करने केलिए आगे आने का आह्वान किया जाए। उन्होंने कहाकि 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने केलिए टीम इंडिया की भावना को अपनाकर बहुआयामी प्रयास की जरूरत है।
टीबी के खिलाफ लड़ाई जीतने वाली महिलाओं पर राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि टीबी उन्मूलन पर सरकार की गंभीरता साफ दिखती है, क्योंकि यह इस वर्ष टीबी से संबंधित दूसरा सम्मेलन था। सम्मेलन में न केवल सांसद, बल्कि अन्य जनप्रतिनिधि, टीबी उन्मूलन केलिए काम करनेवाले संगठन, टीबी से मुक्त होने वाली महिलाएं, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आदि शामिल थे। उपराष्ट्रपति ने टीबी से मुक्त होनेवाली महिलाओं के साहस की प्रशंसा की, जिनमें से कुछ ने अपने अनुभव सुनाए। वेंकैया नायडु ने कहाकि टीबी के प्रति लैंगिक संवेदनशील दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहाकि महिलाओं को स्वास्थ्य, कल्याण और पोषण में प्राथमिकता न मिलने से वो इस बीमारी का ज्यादा शिकार बनती हैं। उन्होंने कहाकि यदि टीबी पाया जाता है तो परित्याग और हिंसा के दुख को देखते हुए यह आश्चर्य की बात नहीं हैकि महिलाओं में टीबी के बड़ी संख्या में मामले दर्ज नहीं किए जाते, इसलिए इलाज भी नहीं हो पाता।
उपराष्ट्रपति ने स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के माध्यम से बीमारी केबारे में बेहतर और व्यवस्थित परामर्श, निश्चय पोषण योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से बेहतर पोषण सहायता और टीबी से पीड़ित बच्चों, गर्भवती और प्रसवोत्तर महिलाओं पर विशेष ध्यान देने जैसे उपायों से इसका मुकाबला करने का आह्वान किया। उन्होंने राज्यों से डोर-टू-डोर स्क्रीनिंग करने केलिए सक्रिय कदम उठाने को कहा, खासकर उन महिलाओं केलिए जो अपने बल पर स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली से संपर्क करने केलिए तैयार नहीं हैं। वेंकैया नायडु ने लोगों की पोषण स्थिति में सुधार, बेहतर संपर्क जांच, बीमारी पर होने वाले खर्च को कम करने, सबसे कमजोर वर्गों को सुरक्षित रखने, पर्वतीय और दूरदराज के क्षेत्रों में टीबी का शीघ्र पता लगाने को कहा। टीबी के बारे में सामाजिक धारणा को बदलने की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए वेंकैया नायडु ने कहाकि बीमारी के शारीरिक प्रभाव के अलावा लोगों के जीवन पर बहुत अधिक आर्थिक और सामाजिक दबाव पड़ता है, टीबी रोगियों को बड़े पैमाने पर परिवारों, नियोक्ताओं और समाज की अनावश्यक गलत सोच का सामना करना पड़ता है, यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और इसे रोका जाना चाहिए।
वेंकैया नायडू ने कहाकि बीमारी को लेकर समाज का व्यवहार बीमारी की प्रारंभिक अवस्था में जांच को और भी मुश्किल बना देता है, यह दर्शाता हैकि 2020 में अनुमानित 26 लाख के मुकाबले टीबी के केवल 18 लाख नए मामले सामने आए। उन्होंने सुझाव दियाकि टीबी का पक्ष रखनेवाले कार्यक्रमों को महामारी के कारण फेफड़ों के स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती जागरुकता का फायदा बीमारी के बारे में जानकारी फैलाने में करना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने निर्वाचित प्रतिनिधियों, सांसदों, विधायकों और ग्राम प्रधानों से भी आग्रह कियाकि वे जिला और तहसील स्तरपर नियमित समीक्षा करें, जन संवाद में सक्रिय भूमिका निभाते हुए टीबी के खिलाफ जन जागरुकता अभियान में उत्प्रेरक बनें। उपराष्ट्रपति ने महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालयों के एकसाथ आने और महिलाओं पर टीबी के प्रभाव को कम करने केलिए नई रणनीति विकसित करने के तरीके पर गंभीर चर्चा करने की सराहना की। सम्मेलन में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, रसायन और उर्वरक मंत्री डॉ मनसुख मंडाविया, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, राज्यमंत्री डॉ भारती प्रवीण पवार, राज्यमंत्री डॉ मुंजपरा महेंद्रभाई, सचिव स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय राजेश भूषण, सचिव महिला एवं बाल विभाग इंदीवर पांडे उपस्थित थे।