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Thursday 30 December 2021 03:18:26 PM
चंडीगढ़। वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया हैकि वायु प्रदूषण के चलते पराग कणों की सघनता पर असर पड़ा है और अलग-अलग प्रकार के पराग कणों पर मौसम में होनेवाले परिवर्तन का भिन्न-भिन्न प्रभाव देखने को मिल है। पराग हवा में घुले रहते हैं और हवा के उस हिस्से में मिल जाते हैं, जिसे हम सांस के जरिए लेते हैं, यह सांस के जरिए मानव शरीर में पहुंचते हैं और ऊपरी श्वसन तंत्र में जाकर तनाव पैदा कर देते हैं। इन पराग कणों के करण ऊपरी श्वसन तंत्र में नाक से लेकर फेफड़ों तक तरह-तरह की एलर्जी हो जाती है, जिससे अस्थमा, मौसमी समस्याएं और श्वास संबंधी समस्याएं पैदा हो जाती हैं। अलग-अलग मौसम संबंधी या पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण वायुजनित पराग एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होते हैं। गौरतलब हैकि चंडीगढ़ को देश के सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र के रूपमें चिह्नित किया गया है, विशेष रूपसे अक्टूबर और नवंबर महीने के दौरान गंगा के मैदानी भागों में वायु प्रदूषण अपने चरम पर पहुंच जाता है।
हाल के अध्ययनों में इस बात के प्रमाण मिले हैंकि शहरी क्षेत्रों में हवा में घुले पराग एलर्जी संबंधी बीमारियों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पराग, जलवायु परिवर्तन और वायु प्रदूषकों केसाथ प्रकृति में सहअस्तित्व में रहते हैं, अलग-अलग प्रकार के पराग पारस्परिक संपर्क में आकार मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालने की क्षमता वाले होते हैं। इस विषय पर पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च चंडीगढ़ के प्रोफेसर रवींद्र खैवाल, पर्यावरण अध्ययन विभाग की अध्यक्ष डॉ सुमन मोर और पीएचडी रिसर्च स्कॉलर अक्षी गोयल ने चंडीगढ़ शहर के वायुजनित पराग पर मौसम और वायु प्रदूषकों के प्रभाव का अध्ययन किया है। समूह ने हवा में बनने वाले पराग पर तापमान, वर्षा, सापेक्षिक आर्द्रता, हवा की गति, हवा की दिशा और आस-पास मौजूद वायु प्रदूषक कणों विशेष रूपसे पार्टीकुलेट मैटर और नाइट्रोजन ऑक्साइड के संबंधों का पता लगाया है।
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग ने इस अध्ययन केलिए वित्तीय मदद उपलब्ध कराई है और यह भारत में अपनी तरह का पहला अध्ययन है, जिसमें वायुजनित पराग पर मौसम संबंधी बदलावों तथा प्रदूषण के प्रभाव को समझने का प्रयास किया गया है। इस अध्ययन को एल्सेवियर की पत्रिका साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में हाल हीमें प्रकाशित भी किया जा चुका है। अध्ययन से पता चलता हैकि मौसम की स्थिति और वायु प्रदूषकों का प्रभाव अलग-अलग प्रकार के पराग पर अलग-अलग होता है। अधिकांश प्रकार के पराग वसंत और शरद ऋतु में बनते हैं, जब फूलों के खिलने का मौसम होता है। वायुजनित पराग सबसे अधिक मात्रा में उसी समय बनते हैं, जब मौसम की अनुकूल स्थिति होती है जैसे मध्यम तापमान, कम आर्द्रता और कम वर्षा। यह भी देखा गया हैकि मध्यम तापमान की स्थिति पुष्पन, पुष्पक्रम, परिपक्वता, पराग विमोचन और प्रकीर्णन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसके विपरीत अधिक वर्षा और उच्च सापेक्ष आर्द्रता के दौरान वातावरण से पराग कण साफ हो जाते हैं।
वायुजनित पराग कणों का वायु प्रदूषकों केसाथ जटिल और अस्पष्ट संबंध पाया गया है। वैज्ञानिक प्रदूषण कणों और पराग कणों के पारस्परिक संबंधों को और स्पष्ट करने केलिए दीर्घकालिक डेटा सेट तैयार करने तथा उसकी जांच करने की योजना बना रहे हैं। प्रोफेसर रवींद्र खैवाल ने भविष्य में बदलती जलवायु के संदर्भ में प्रकाश डालाकि शहरी क्षेत्रों में पौधों के जैविक और फेनोलॉजिकल मापदंडों को जलवायु परिवर्तन महत्वपूर्ण रूपसे प्रभावित करेगा। अध्ययन के निष्कर्ष उपयोगी हैं और इससे इस परिकल्पना को बल मिलता हैकि वायु प्रदूषक पराग की स्थिति को प्रभावित करते हैं तथा भविष्य में ऐसे विस्तृत अध्ययनों की मदद से इसके बारे में स्थितियां और स्पष्ट हो सकेंगी। अध्ययन के निष्कर्ष वायुजनित पराग, वायु प्रदूषकों और जलवायु कारणों के पारस्परिक संबंधों को समझने में सहायक होंगे, जिससे गंगा के मैदानी क्षेत्र में परागण के दुष्प्रभावों को कम करने केलिए नीतियां तैयार करने में सहायता मिल सकेगी।