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Tuesday 1 February 2022 01:38:42 PM
बेंगलुरू। कर्नाटक में बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा के होयसल मंदिरों को वर्ष 2022-2023 केलिए विश्व धरोहर के रूपमें विचार करने केलिए भारत के नामांकन के रूपमें शामिल किया गया है। होयसल के ये पवित्र स्मारक 15 अप्रैल 2014 से संयुक्तराष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन यानी यूनेस्को की संभावित सूची में हैं और मानव रचनात्मक प्रतिभा के उच्चतम बिंदुओं मेंसे एक का प्रतिनिधित्व करने केसाथ ही भारत की समृद्ध ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत की गवाही भी देते हैं। अब पहला कदम विश्व धरोहर केंद्र में आवश्यक प्रपत्रों को जमा करना है, जो उसकी तकनीकी जांच करेगा। यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी शर्मा ने 31 जनवरी 2022 को औपचारिक रूपसे यूनेस्को विश्व धरोहर के निदेशक लाज़ारे एलौंडौ को नामांकन प्रस्तुत कर दिया है।
यूनेस्को एकबार प्रपत्र जमा हो जाने के बाद मार्च की शुरुआत में वापस सम्पर्क करेगा, उसके बाद सितंबर या अक्टूबर 2022 में स्थानीय मूल्यांकन होगा और जुलाई या अगस्त 2023 में डोजियर पर विचार किया जाएगा। केंद्रीय पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास, संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी ने कहा हैकि होयसला मंदिरों के पवित्र स्मारकों को विश्व विरासत सूची में शिलालेखन केलिए शामिल किया जाना भारत केलिए एक महान क्षण है। उन्होंने कहाकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार विकास और विरासत दोनों केलिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहाकि विरासत की रक्षा करने के हमारे प्रयास इस बात से स्पष्ट होते हैंकि सरकार हमारी मूर्त और अमूर्त विरासत दोनों को अंकित करने और भारत से चुराई गई या छीन ली गई सांस्कृतिक विरासत को वापस लाने केलिए काम कर रही है। ये तीनों होयसल मंदिर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के संरक्षित स्मारक हैं, इसलिए इनका संरक्षण और रखरखाव एएसआई करेगा।
राज्य सरकार इन तीन स्मारकों के आसपास राज्य संरक्षित स्मारकों के संरक्षण को सुनिश्चित करेगी, जिससे कि यह सभी स्मारक एक ही स्थान की दृश्य अखंडता से जुड़ जाएंगे। राज्य सरकार का जिला मास्टर प्लान भी सभी स्मारकों के बफर को शामिल करेगा और एक एकीकृत प्रबंधन योजना का निर्माण करेगा। राज्य सरकार विशेष रूपसे निर्दिष्ट संपत्ति के आसपास यातायात प्रबंधन के मुद्दों को भी देखेगी। बारहवीं-तेरहवीं शताब्दी में निर्मित और यहां बेलूर, हलेबिड और सोमनाथपुरा के तीन घटकों द्वारा प्रतिनिधित्व किया गया होयसल का पवित्र समूह, होयसला के कलाकारों और वास्तुकारों की उस रचनात्मकता और कौशल को प्रमाणित करता है, जिसके अंतर्गत तबसे अबतक इस तरह की उत्कृष्ट कृतियों का निर्माण पहले कभी नहीं देखा गया।
होयसल वास्तुकारों ने अपने कौशल की वृद्धि केलिए भारत के विभिन्न क्षेत्रों से अर्जित मंदिर वास्तुकला के अपने गहन ज्ञान का इस्तेमाल किया। होयसल मंदिरों में एक मूलभूत द्रविड़ आकारिकी प्रयुक्त की गई है, किंतु यहां मध्य भारत में व्यापक रूपसे उपयोग की जाने वाली भूमिजा पद्यति, उत्तरी और पश्चिमी भारत की नागर परंपरा और कल्याणी चालुक्यों से समर्थित कर्नाटक द्रविड़ पद्यति के सुस्पष्ट एवं सुद्रढ़ प्रभाव भो दृष्टिगोचर हैं, इसलिए होयसल के वास्तुविदों ने अन्य मंदिर प्रकारों में विद्यमान निर्मितियों केबारे में सोचा, उन्हें उदारता से अपनाकर और उसमें यथोचित संशोधन करने केबाद उन्होंने इन विधाओं को अपने स्वयं के विशेष नवाचारों केसाथ मिश्रित किया। इस सबकी परिणिति एक पूर्णरूपेण अभिनव 'होयसल मंदिर' शैली का अभ्युदय होना ही था।