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Saturday 04 May 2013 09:19:20 AM
नई दिल्ली। एशियाई विकास बैंक की 46वीं एजीएम के शुभारंभ सत्र में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एडीबी का अध्यक्ष चुने जाने पर राष्ट्रपति नकाओ को बधाई दी और कहा कि एडीबी के पूर्व अध्यक्ष हारुहिको कुरोदा ने पिछले आठ वर्षों में एडीबी का मार्गदर्शन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि शताब्दियों तक निष्क्रिय और वंचित रहने के बाद, एशिया वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बार फिर अपना मुख्य स्थान हासिल कर रहा है। लगभग आधी सदी से, एडीबी सामान्य रूप से एशिया प्रशांत क्षेत्र और खासतौर से इस आकर्षक सफर में विकासशील सदस्य देशों का विश्वसनीय भागीदार रहा है।
मनमोहन सिंह ने कहा कि इक्कीसवीं सदी को उचित ही एशिया की सदी कहा जाता है, उचित परिदृश्य में इसे उस स्थान के पुनरुत्थान की प्रक्रिया के रूप में देखा जाना चाहिए, जो स्थान वैश्विक परिदृश्य में उसे करीब 250 वर्ष पहले हासिल था, एशियाई अर्थव्यवस्थाओं का तेजी से आधुनिकीकरण और विस्तार दुनिया के आर्थिक इतिहास में सर्वाधिक नाटकीय घटनाक्रम में से एक के रूप में माना जाता है, इस प्रक्रिया ने मानवता के इतिहास में फंसे अधिसंख्य गरीबों को भी गरीबी से बाहर निकाला है, यदि विकास की वर्तमान गति जारी रहे तो दुनिया की अर्थव्यवस्था में एशिया की हिस्सेदारी 2050 तक दुगुनी हो जाएगी, वर्ष 2013 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अग्रिम अनुमान के अनुसार विकसित अर्थव्यवस्था सिर्फ 1.2 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी, जबकि विकासशील एशिया में वृद्धि दर इससे पांच गुणा तेज यानी 7.1 प्रतिशत रहने का अनुमान है। एशिया क्षेत्र के वैश्विक अर्थव्यवस्था को मंदी की प्रक्रिया से उबारने और स्थिरता की राह पर लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की आशा है।
उन्होंने कहा कि दुनिया ऐसी दिशा में बढ़ रही है, जहां खपत और निवेश उभरते बाज़ारों, खासतौर से एशिया का रुख कर रहे हैं, इससे अनेक अवसर और चुनौतियां पैदा हो रही हैं, उनमें ये सब शामिल हैं-विकास के विविध मॉडलों को जगह देना, यह सुनिश्चित करना कि वृद्धि समावेशी हो और एशियाई देशों को अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में महत्व प्रदान करना, जो उनके लोगों की महत्वाकांक्षाओं और जरूरतों के अनुरूप हो, इस चुनौती से निपटने तथा सरकार के साथ काम करने में एडीबी का विशिष्ट स्थान है कि विश्व ज्यादा समावेशी, निष्पक्ष और स्थिर हो जाए। अनेक देशों में गरीबी में महत्वपूर्ण कमी आई है, लेकिन असमानता कम नहीं हुई है और अत्यधिक कुपोषण सहित कुछ सामाजिक सूचकों में महत्वपूर्ण सुधार नहीं हुआ है, यह सही समय है जब एशियाई अर्थव्यवस्थाओं को ऐसे क्षेत्रों में संसाधनों के निवेश के जरिए साझा चुनौतियों से निपटने के प्रयास तेज करने चाहिएं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक अरब 70 करोड़ लोग अब भी 2 डॉलर प्रति दिन से कम पर जीवन बिता रहे हैं, इसलिए गरीबी उन्मूलन एशिया में तात्कालिक लक्ष्य होना चाहिए, साथ ही, गरीबी के अलावा दीर्घावधि दृष्टिकोण भी अपनाना चाहिए, जो साझा समृद्धि पर बल देता हो, उच्च आर्थिक वृद्धि भी आवश्यक है, तीव्र वृद्धि के लाभ अनिवार्य रूप से आम आदमी के जीवन में बेहतरी के लिए होने चाहिएं, बढ़ती श्रम शक्ति के लिए नए उत्पादक रोजगार अवसर पैदा करना लोगों को सशक्त बनाने का सर्वाधिक शक्तिशाली माध्यम है, इसे हकीकत में बदलने के लिए प्रभावशाली संस्थाओं और कारगर नीतियों की जरूरत होगी। स्वास्थ्य, प्राथमिक और उच्च शिक्षा, कौशल विकास के साथ औद्योगिक क्षेत्र लाभदायक रोजगार उपलब्ध करा सकते हैं, इसलिए ऐसे क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश बहुत महत्वपूर्ण है। कृषि में अतिरिक्त श्रमिकों को काम देने की सीमित क्षमता है इसलिए खेती से बाहर के क्षेत्रों में उच्च उत्पादकता वाले रोजगार सृजित करने की जरूरत है, इससे आर्थिक वृद्धि का आधार विस्तृत होगा और श्रम बाजार गतिशील होगा।
मनमोहन सिंह ने कहा कि एडीबी को वैश्विक बचत को एशिया प्रशांत में ढांचागत परियोजनाओं में निवेश करने के रास्ते तलाश करने की पहल करनी चाहिए, एडीबी की अच्छी रेटिंग और तकनीकी विशेषज्ञता उचित साधनों के जरिए घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में संसाधन बढ़ाने के लिए तालमेल कर सकती है, विभिन्न देशों में पूलिंग निवेश से जोखिम कम हो सकते हैं, इसे एडीबी से ऋण में वृद्धि होने से और भी कम किया जा सकता है। सीमा-पार बुनियादी ढांचे के निर्माण, स्वच्छ वायु और ऊर्जा जैसे क्षेत्रीय सामान में व्यापार और निवेश की बाधाएं दूर करने, ऊर्जा दक्षता, जल संसाधनों के प्रबंध, संचारी रोगों का नियंत्रण और प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंध के महत्व की अनदेखी नहीं की जा सकती।
उन्होंने कहा कि भारत इस बात पर दृढ़ विश्वास करता है कि क्षेत्रीय एकीकरण से बहुत फायदा है तथा इसे बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, हम पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के साथ प्रगाढ़ सहयोग के लिए प्रतिबद्ध हैं, आज एशिया बदलाव की राह पर खड़ा है, यदि उचित नीतियों और रणनीतिक दृष्टिकोण के जरिए हमारी अर्थव्यवस्थाओं की संभावनाओं का पूरा दोहन किया जाए तो एशिया निश्चित रूप से दुनिया के मामलों और वैश्विक बेहतरी में ज्यादा बड़ी भूमिका निभाएगा । प्रत्येक एशियाई देश को यह नेक लक्ष्य हासिल करने में योगदान के रास्ते और माध्यम तलाशने चाहिएं।