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Monday 21 February 2022 12:51:50 PM
पुरी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा हैकि हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में विभिन्न धार्मिक परंपराएं और प्रथाएं प्रचलित हैं, लेकिन एक ही आस्था है और वह है पूरी मानवता को एक परिवार मानकर सभी के कल्याण केलिए कार्य करना है। उन्होंने पुरी में गौड़ीय मठ के संस्थापक आचार्य श्रीमद भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी प्रभुपाद की 150वीं जयंती पर तीन साल तक चलने वाले समारोह का उद्घाटन किया। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहाकि ईश्वर की आराधना उनके सभी रूपों में की जाती है, लेकिन भारत में भक्तिभाव से ईश्वर की आराधना करने की विशिष्ट परंपरा रही है, यहां कई महान संतों ने नि:स्वार्थ आराधना की है, ऐसे महान संतों में श्रीचैतन्य महाप्रभु का विशेष स्थान है, उनकी असाधारण भक्ति से प्रेरित होकर बड़ी संख्या में लोगों ने भक्ति मार्ग को चुना है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि देश के अनेक क्षेत्रों में महान विभूतियों ने भक्ति-मार्ग का प्रचार-प्रसार किया, असम में शंकरदेव से लेकर गुजरात में नरसी मेहता तक तथा उत्तर में श्रीगुरु नानकदेवजी से लेकर दक्षिण में मेलपत्तूर नारायण भट्ट-तिरि तक, कोई भी क्षेत्र भक्ति की इस धारा से अछूता नहीं रहा एवं गौड़ देश में श्रीचैतन्य महाप्रभु से लेकर महाराष्ट्र में संत तुकाराम, संत एकनाथ और संत ज्ञानेश्वर तक महान संतों ने भारत को भक्ति भावना से एकाकार किया। उन्होंने कहाकि श्रीचैतन्य महाप्रभु का कहना थाकि मनुष्य को घास से भी खुद को छोटा समझकर नम्रभाव से ईश्वर का स्मरण करना चाहिए, उसको एक पेड़ से भी अधिक सहिष्णु होना चाहिए, उसे अहंकार की भावना से रहित होना चाहिए और दूसरों को सम्मान देना चाहिए एवं मनुष्य को सदैव ईश्वर का स्मरण करते रहना चाहिए। राष्ट्रपति ने कहाकि यह भावना भक्ति मार्ग के सभी अनुयायियों में पाई जाती है, ईश्वर केप्रति निरंतर प्रेम और समाज को समानता के सूत्र से जोड़ने का श्रीचैतन्य महाप्रभु का अभियान उन्हें भारतीय संस्कृति और इतिहास में एक अद्वितीय प्रतिष्ठा प्रदान करता है।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि भक्ति मार्ग के संत उस समय के धर्म, जाति, लिंग और अनुष्ठानों के आधार पर प्रचलित भेदभाव से ऊपर थे, इस कारण सभी वर्ग के लोग न केवल उनसे प्रेरित हुए, बल्कि इस मार्ग को अपनाया भी। राष्ट्रपति ने कहाकि श्रीगुरु नानकदेवजी ने भक्ति मार्ग पर चलते हुए समतामूलक समाज के निर्माण का प्रयास किया। राष्ट्रपति ने कहाकि ईश्वर केप्रति संपूर्ण समर्पण के भक्तिमार्ग की विशेषता न केवल जीवन के आध्यात्मिक क्षेत्र, बल्कि हर एक व्यक्ति की जीवनशैली में भी देखने को मिलती है। रामनाथ कोविंद ने कहाकि हमारी संस्कृति में जरूरतमंदों की सेवा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है, हमारे डॉक्टर, नर्स और स्वास्थ्यकर्मियों ने कोविड महामारी के दौरान सेवाभाव की इस भावना का प्रदर्शन किया, उनमें कई कोरोना वायरस से संक्रमित थे, लेकिन इतनी विषम परिस्थितियों में भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और लोगों के इलाज में जुटे रहे, हमारे कई कोरोना वॉरियर्स ने अपने जीवन का बलिदान दिया, लेकिन उनके सहकर्मियों का समर्पण अटूट बना रहा, ऐसे योद्धाओं का पूरा देश सदैव ऋणी रहेगा। राष्ट्रपति ने कहाकि श्रीचैतन्य महाप्रभु के अलावा भक्ति आंदोलन की अन्य महान विभूतियों ने भी हमारी सांस्कृतिक विविधता में एकता को मजबूत किया है।
राष्ट्रपति ने कहाकि भक्ति समुदाय के संत एक-दूसरे का विरोध नहीं करते थे, बल्कि एक-दूसरे की रचनाओं से प्रेरित होते थे, इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह हैकि श्रीगुरु ग्रंथसाहिब में संत कबीर और संत रविदास सहित अनेक विभिन्न संप्रदायों के संतों की वाणी का समावेश किया गया है, जहाँ अद्वैत, विशिष्टा-द्वैत और द्वैत की स्थापना की जा रही थी, वहीं सहजता और सहिष्णुता की धारा भी प्रवाहित हो रही थी। उन्होंने भारत के पूर्वी क्षेत्र की उन महान आध्यात्मिक विभूतियों का उल्लेख किया, जिन्होंने विश्वपटल पर भारत को महत्वपूर्ण स्थान दिलाया। रामनाथ कोविंद ने कहाकि मध्यकाल में जब भक्ति आंदोलन अपनीचरम पर था, तब भारत के पूर्वी क्षेत्र को गौड़ नाम से जाना जाता था, संभवतः इसीलिए श्रीसरस्वती प्रभुपादजी ने विश्व-वैष्णव-राजसभा को गौड़ीय मठ का नाम दिया था, उनके प्रयासों से देश के विभिन्न शहरों में गौड़ीय मठ की स्थापना हो सकी और चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा के अनुसार वे मानवजाति के नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान केलिए प्रासंगिक शिक्षाओं का प्रसार करते रहे हैं। रामनाथ कोविंद ने कहाकि 1893 में जब हमारा देश उपनिवेशवाद के बंधनों में जकड़ा हुआ था, उस समय स्वामी विवेकानंद ने भारतीय आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गौरव का उदाहरण संपूर्ण विश्व के सामने शिकागो धर्म सम्मलेन में प्रस्तुत किया था।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि स्वामी विवेकानंद ने विश्व समुदाय को भारत का आध्यात्मिक संदेश देते हुए कहा थाकि जिस तरह अलग-अलग जगहों से निकलने वाली नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिल जाती हैं, ठीक उसी तरह मनुष्य अपनी इच्छा से मार्ग चुनता है, ये रास्ते देखने में भले ही अलग-अलग लगे, लेकिन सभी आखिर में ईश्वर तक ही पहुंचते हैं। उन्होंने कहाकि भारत की इस आध्यात्मिक एकता के सिद्धांत का प्रचार रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद ने किया था, जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी अपनाया था। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त कियाकि गौड़ीय मिशन मानव कल्याण के अपने उद्देश्य को सर्वोपरि रखते हुए श्रीचैतन्य महाप्रभु के संदेश को विश्व में फैलाने के अपने संकल्प में जरूर सफल होगा। राष्ट्रपति ने कहाकि भक्ति की यह धारा देश से बाहर विदेशों में भी प्रवाहित हो रही है, यह कहा जा सकता हैकि श्रीचैतन्य महाप्रभु ने भक्ति के जिस महान वटवृक्ष को विकसित किया, उसकी विभिन्न शाखाएं-प्रशाखाएं देश-विदेश में पुष्पित पल्लवित होती रही हैं, इसी परंपरा में इस्कॉन के संस्थापक स्वामी भक्ति वेदांत प्रभुपाद भी आते हैं, जिन्होंने पश्चिमी देशों विशेषकर अमेरिका में श्रीचैतन्य महाप्रभु के भक्ति संदेश को पहुंचाया।