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Tuesday 19 April 2022 03:20:33 PM
नई दिल्ली। केंद्रीय संस्कृति मंत्री जी किशन रेड्डी ने विश्व धरोहर दिवस पर नई दिल्ली के पुरानाकिला में आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूपमें दिल्ली की बावलियों पर 'ऐब्सेंट अपीयरेंस-ए शिफ्टिंग स्कोर ऑफ वाटर बॉडीज़' विषय पर फोटो प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। गौरतलब हैकि विश्व धरोहर दिवस को स्मारकों और स्थलों केलिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस के रूपमें भी जाना जाता है और इसका उद्देश्य सांस्कृतिक विरासत की विविधता के बारेमें जागरुकता बढ़ाना है। विश्व धरोहर दिवस 2022 का विषय 'धरोहर और जलवायु' है। जी किशन रेड्डी ने इस अवसर पर कहाकि प्रकृति की पूजा करना हमारी परंपराओं और देश की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, आज हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, क्योंकि पूरी दुनिया की नज़र भारत की ओर है, जो जलवायु परिवर्तन और सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित करने से संबंधित समस्याओं को हल करने के तरीके दे सकता है।
संस्कृति मंत्री ने कहाकि भारत यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति का सदस्य है, भारत में 40 विश्व धरोहर स्थल हैं, जिनमें से 32 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक स्थल और एक मिश्रित श्रेणी के हैं, इनमें से 24 स्मारक और पुरातात्विक स्थल भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से संरक्षित हैं। उन्होंने कहाकि 2021 की विश्व धरोहर सूची में काकतीय शैली से 13वीं शताब्दी में निर्मित सुंदर वास्तुशिल्पीय चमत्कार रामप्पा मंदिर और प्राचीन हड़प्पा शहर धोलावीरा शामिल किए गए, इसके अलावा 49 स्थलों को संभावित सूची में शामिल किया गया है। संस्कृति मंत्री ने भारत से चुराकर विदेशों तक ले जाई गईं धरोहरों जैसे मूर्तियों को वापस लाने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों और नेतृत्व के बारेमें भी बताया। उन्होंने कहाकि आज दुनिया के विभिन्न हिस्सों से लगभग 228 धरोहर वस्तुएं भारत को वापस कर दी गई हैं, वर्ष 2014 से पहले ऐसी सिर्फ 13 वस्तुएं को वापस किया गया था। उन्होंने कहाकि हमारे पूर्वजों ने हमें महान धरोहर दी हैं, जो दुनिया की सबसे पुरानी विरासतों मेसे एक हैं। संस्कृति मंत्री ने कहाकि आज जब हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो यह हमारी जिम्मेदारी हैकि हम इन धरोहरों को अपनी आनेवाली पीढ़ी तक पहुंचाएं।
किशन रेड्डी ने कहाकि नरेंद्र मोदी सरकार कई पहल कर रही है और जलवायु को बचाने की दिशा में काम कर रही है, हम अक्षय ऊर्जा, हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों, जैविक खेती के इस्तेमाल की तरफ बढ़ रहे हैं और कई पहलों जैसे स्वच्छ भारत अभियान, जल जीवन मिशन पर काम कर रहे हैं, जिसका उद्देश्य सतत विकास और हमारे नागरिकों के जीवन केलिए बेहतर स्थितियों को बढ़ावा देना है। कार्यक्रम में संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल भी उपस्थित थे। उन्होंने कहाकि एएसआई ने उत्खनन के क्षेत्रमें शानदार काम किया है और इस तरह के अच्छे काम को जारी रखने की आवश्यकता पर भी प्रकाश डाला है। उन्होंने कहाकि माँ अन्नपूर्णा की मूर्ति को वापस लाना एएसआई की बड़ी उपलब्धि है। उल्लेखनीय हैकि मानव सभ्यता की शुरुआत केबाद से कृषि, दैनिक उपभोग और अन्य विधि-विधानों केलिए पानी का उपयोग एक सामान्य प्रथा है। पानी की कमी से लेकर पानी की उपलब्धता तक जलवायु परिस्थितियों के अनुसार सभ्यताओं ने पानी के उपयोग और भंडारण में विभिन्न तकनीकों को अपनाया था, बावली या सीढ़ीदार कुओं की सुविधा ऐसीही एक तकनीक है।
बावलियों का उद्देश्य केवल पानी की खपत तकही सीमित नहीं था, बल्कि पर्यावरणीय परिस्थितियों को जोड़ते हुए बावली ने जल देवता केसाथ विश्वास का गहरा संबंध स्थापित किया, जिससे संरचनाओं को एक धार्मिक पहचान मिली। बावली या बावड़ी संस्कृत शब्द वापी वापिका से उत्पन्न हुआ है। बावली आमतौरपर गुजरात, राजस्थान और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में प्रयोग किया जाता है। अहम जगहों पर बावलियों की मौजूदगी काफी हदतक उनके महत्व और उपयोगिता को दर्शाते हैं। बस्तियों के कोनों जैसे कस्बों या शहर से जुड़े गांवों पर बावली ज्यादातर धर्मनिरपेक्ष संरचनाएं हैं, जहांसे लोग पानी निकाल सकते हैं और ठंडी जगह का उपयोग कर सकते हैं। व्यापार मार्गों केपास बावड़ियों को ज्यादातर विश्राम स्थलों के रूपमें माना जाता था, जबकि टेराकोटा रिम वाली बावड़ियों को कृषि भूमि केपास देखा जाता था। विकेंद्रीकरण और कृषि गहनता के दबाव केकारण सीढ़ी दार कुओं एवं बावड़ियों की व्यवस्था ध्वस्त हो गई।
दिल्ली की बावलियों की बात करें तो जानकारी के अनुसार यहां लगभग 32 मध्यकालीन बावली हैं, जिनमें से 14 बावली या तो खत्म हो गई हैं या जमीन में दब चुकी हैं। इसके अलावा 18 बावलियों मेसे 12 बावलियों को केंद्र ने संरक्षित कर दिया है और एएसआई के संरक्षण में हैं। एक आदर्श बावली में आमतौरपर तीन तत्व होते हैं-कुआं जिसमें पानी एकत्र किया जाता है, कई मंजिलों से होते हुए भूजल तक पहुंचने केलिए सीढ़ियों की कतार और आपस में जुड़े पैवेलियन। आमतौरपर सीढ़ीदार कुएं यू-आकार के होते हैं, लेकिन वास्तुकला में हमेशा अपवाद होते हैं और एल-आकार के आयताकार या अष्टकोणीय बावली भी आम हैं। इस मौके पर संस्कृति मंत्रालय और एएसआई के अधिकारी भी मौजूद थे।