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Saturday 30 April 2022 06:05:51 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के संयुक्त सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा हैकि हमारे देश में जहां एक ओर जुडिशरी की भूमिका संविधान संरक्षक की है, वहीं लेजिस्लेचर नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करती है और मुझे विश्वास हैकि संविधान की इन दो धाराओं का ये संगम, ये संतुलन देश में प्रभावी और समयबद्ध न्याय व्यवस्था का रोडमैप तैयार करेगा। उन्होंने कहाकि आजादी के इन 75 साल में जुडिशरी और एग्जीक्यूटिव दोनों केही रोल्स और रिस्पांसिबिलिटीज को निरंतर स्पष्ट किया गया है। उन्होंने कहाकि जहां जबभी जरूरी हुआ देश को दिशा देने केलिए ये रिलेशन लगातार इवॉल्व हुआ है। सम्मेलन को संविधान की सुंदरता की जीवंत अभिव्यक्ति बताते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि वे बहुत लंबे समय से सम्मेलन में आते रहे हैं, पहले मुख्यमंत्री और अब प्रधानमंत्री के रूपमें एक तरहसे वे सम्मेलन की दृष्टि से काफी वरिष्ठ हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि 2047 में जब देश अपनी आजादी के 100 साल पूरे करेगा, तब हम देशमें कैसी न्याय व्यवस्था देखना चाहेंगे? हम किस तरह अपने जुडिशल सिस्टम को इतना समर्थ बनाएं किवो 2047 के भारत की आकांक्षाओं को पूरा कर सके, उनपर खरा उतर सके, यह प्रश्न हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। उन्होंने कहाकि अमृतकाल में हमारी दृष्टि एक ऐसी न्यायिक व्यवस्था की होनी चाहिए, जिसमें न्याय आसान, त्वरित और सभी केलिए हो। प्रधानमंत्री ने कहाकि सरकार न्याय प्रदान करने में देरी को कम करने केलिए कड़ी मेहनत कर रही है तथा न्यायिक ताकत बढ़ाने एवं न्यायिक बुनियादी ढांचे में सुधार के प्रयास जारी हैं। उन्होंने कहाकि केस प्रबंधन केलिए आईसीटी को लागू किया गया है और न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर रिक्तियों को भरने के प्रयास जारी हैं। प्रधानमंत्री ने न्यायिक कार्य के संदर्भ में शासनमें प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के अपने दृष्टिकोण को दोहराते हुए कहाकि भारत सरकार भी जुडिशल सिस्टम में टेक्नोलॉजी की संभावनाओं को डिजिटल इंडिया मिशन का एक जरूरी हिस्सा मानती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से इसे आगे बढ़ाने की अपील की। उन्होंने कहाकि उदाहरण के तौरपर ई-कोर्ट प्रोजेक्ट को आज मिशन मोड में इंप्लीमेंट किया जा रहा है, छोटे कस्बों और यहां तककि गांवों मेभी डिजिटल ट्रांजेक्शन आमबात होने लगी है। प्रधानमंत्री ने कहाकि विश्व में पिछले साल जितने डिजिटल ट्रांजेक्शन हुए, उसमें से 40 प्रतिशत डिजिटल ट्रांजेक्शन भारत में हुए हैं। प्रधानमंत्री ने कहाकि आजकल कई देशों में लॉ यूनिवर्सिटीज में ब्लॉकचेन, इलेक्ट्रॉनिक डिस्कवरी, साइबर सिक्योरिटी, रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बायोएथिक्स जैसे विषय पढ़ाए जा रहे हैं, हमारे देशमें भी लीगल एजुकेशन इन इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के मुताबिक हो, ये हमारी जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री ने कहाकि कोर्ट में स्थानीय भाषाओं को प्रोत्साहन देने की जरूरत है, इससे देश के सामान्य नागरिकों का न्याय प्रणाली में भरोसा बढ़ेगा, वो उससे जुड़ा हुआ महसूस करेंगे, इससे लोगों का न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार मजबूत होगा। उन्होंने कहाकि तकनीकी शिक्षा मेभी स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने कानूनों की पेंचीदगियों और अप्रासंगिकता के बारेमें कहाकि एक गंभीर विषय आम आदमी केलिए कानून की पेंचीदगियों काभी है, 2015 में सरकार ने करीब 1800 ऐसे कानूनों को चिन्हित किया था, जो अप्रासंगिक हो चुके थे, इनमें से जो केंद्र के कानून थे ऐसे 1450 कानूनों को खत्म किया जा चुका है। यह बताते हुएकि राज्यों की तरफसे केवल 75 कानून ही खत्म किए गए हैं प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों से आग्रह कियाकि उनके राज्य के नागरिकों के अधिकारों और उनके जीवन की आसानी केलिए निश्चित रूपसे इस दिशामें कदम उठाए जाने चाहिएं। प्रधानमंत्री ने कहाकि न्यायिक सुधार केवल एक नीतिगत मामला नहीं है, इसमें मानवीय संवेदनाएं शामिल हैं और उन्हें सभी विचार-विमर्शों के केंद्रमें रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहाकि आज देश में करीब साढ़े तीन लाख प्रिजनर्स ऐसे हैं, जो अंडर ट्रायल हैं और जेल में हैं, इनमें से अधिकांश लोग ग़रीब या सामान्य परिवारों से हैं। उन्होंने कहाकि प्रत्येक जिले में जिला न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति होती है, ताकि इन मामलों की समीक्षा की जा सके और जहांभी संभव हो ऐसे कैदियों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से मानवीय संवेदनशीलता और कानून के आधार पर इन मामलों को प्राथमिकता देने की अपील की। उन्होंने कहाकि न्यायालयों खासकर स्थानीय स्तरपर लंबित मामलों के समाधान केलिए मध्यस्थता-मेडिएशन भी एक महत्वपूर्ण जरिया है, हमारे समाज मेतो मध्यस्थता केजरिए विवादों के समाधान की हजारों साल पुरानी परंपरा है। उन्होंने कहाकि आपसी सहमति और भागीदारी अपने तरीकेसे न्याय की एक अलग मानवीय अवधारणा है। प्रधानमंत्री ने कहाकि सरकार ने संसद में मध्यस्थता विधेयक को एक अंब्रेला लेजिसलेशन के रूपमें पेश किया है। उन्होंने कहाकि हमारी समृद्ध कानूनी विशेषज्ञता केसाथ हम मध्यस्थता से समाधान के क्षेत्रमें विश्वगुरु बन सकते हैं और दुनिया के सामने एक मॉडल पेश कर सकते हैं। सम्मेलन में भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एनवी रमना, उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति यूयू ललित, केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू, प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री एवं उपराज्यपाल उपस्थित थे।