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Thursday 26 May 2022 05:18:05 PM
तिरुवनंतपुरम। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने आज तिरुवनंतपुरम में राष्ट्रीय महिला विधायक सम्मेलन-2022 का उद्घाटन किया, जिसकी मेजबानी केरल विधानसभा ने 'आज़ादी के अमृत महोत्सव' के हिस्से के रूपमें की। राष्ट्रपति ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहाकि दशकों से केरल राज्य महिलाओं की तरक्की की राह में आनेवाली बाधाओं को दूर करके शानदार उदाहरण पेश कर रहा है। उन्होंने कहाकि राज्य की आबादी की उच्चस्तरीय संवेदनशीलता के चलते राज्य ने महिलाओं को स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार के क्षेत्र में अपनी क्षमता हासिल करने में मदद करने केलिए नए रास्ते तैयार किए हैं। उन्होंने कहाकि यह वह भूमि है, जिसने भारत को सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम फातिमा बीवी दीं। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त कियाकि 'लोकतंत्र की ताकत' के अंतर्गत आयोजित यह राष्ट्रीय सम्मेलन एक बड़ी सफलता हासिल करेगा।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहाकि यह सम्मेलन भारत के लोकतंत्र की शक्ति और क्षमता को दर्शाता है, मुझे गर्व हैकि भारत की चुनी हुईं महिला प्रतिनिधियों को संबोधित कर रहा हूं। उन्होंने कहाकि हमारे स्वतंत्रता आंदोलन की गाथा में महिलाओं ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वह संदर्भ इस सम्मेलन को महत्व देता है। राष्ट्रपति ने कहाकि एक शोषक औपनिवेशिक शासन की बेड़ियों से मुक्त होने केलिए भारत के प्रयास बहुत पहले शुरू हो गए थे और 1857 इसकी शुरुआती अभिव्यक्तियों में से एक था, उन्नीसवीं सदी के मध्य मेंभी, जबकि दूसरी तरफ केवल पुरुष थे, भारतीय पक्ष में कई महिलाएं शामिल थीं, रानी लक्ष्मीबाई उनमें से सबसे उल्लेखनीय थीं, लेकिन उनके जैसे कई और भी थे, जो अन्यायपूर्ण शासन के खिलाफ बहादुरी से लड़ रहे थे। उन्होंने कहाकि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत हम एक साल से अधिक समय से स्मारक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, जिनमें लोगों की उत्साहपूर्ण भागीदारी अतीत से जुड़ने और हमारे गणतंत्र की नींव को फिरसे खोजने के उनके उत्साह को दर्शाती है। राष्ट्रपति ने प्राचीनकाल और स्वतंत्रता संग्राम से आजतक विभिन्न क्षेत्रों में महिला भागीदारी को चिन्हित करते हुए कहाकि इतिहासकारों ने नोट किया हैकि समाज के सभी वर्गों की महिलाएं अपने सीमित घरेलू स्थान से बाहर निकलीं और अद्वितीय नेतृत्व करते हुए बड़ी संख्या में सार्वजनिक आंदोलनों में शामिल हुईं।
रामनाथ कोविंद ने उल्लेख कियाकि पहली महिला सत्याग्रहियों में कस्तूरबा थीं, उनके जीवनसाथी के बड़े व्यक्तित्व को देखते हुए राष्ट्र केलिए उनके योगदान को नज़रअंदाज कर दिया जाता है, वह न केवल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पत्नी थीं, वह दक्षिण अफ्रीका में अपने दिनों सेही कई महिलाओं केलिए एक प्रेरणा थीं। राष्ट्रपति ने बतायाकि दांडी मार्च जिसने इतिहास के पाठ्यक्रम को बदल दिया, जब गांधीजी को गिरफ्तार किया गया तो उन्होंने इस अभियान का नेतृत्व सरोजिनी नायडू को सौंपने का फैसला किया, एक महान वक्ता और कवि सरोजिनी नायडू ने उदाहरण के रूपमें नेतृत्व किया और खुशी-खुशी जेल की सजा का सामना किया। राष्ट्रपति ने कहाकि और हम उनकी सहयोगी कमलादेवी चट्टोपाध्याय को कैसे भूल सकते हैं? वह चुनाव लड़ने वाली पहली महिलाओं में से थीं, इस तरह उन्होंने एक मशाल जलाई जिसे आप महिला विधायक के रूपमें आज के समय में आगे बढ़ा रही हैं। उन्होंने कहाकि जब कोई हमारे राष्ट्रीय आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी का उदाहरण देना शुरू करता है तो इतने प्रेरक नाम दिमाग में आते हैंकि उनमें से कुछ का ही उल्लेख किया जा सकता है। रामनाथ कोविंद ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के नेतृत्व में इंडियन नेशनल आर्मी में मैडम भीकाजी कामा, कैप्टन लक्ष्मी सहगल और उनके सहयोगियों के वीर बलिदानों को याद किया।
राष्ट्रपति ने कहाकि संविधान सभा में पंद्रह महिला सदस्य थीं और उनमें से तीन केरल से थीं, इस समूह में उल्लेखनीय थे-हंसाबेन जीवराज मेहता, जो एक समाज सुधारक और शिक्षाविद भी थीं, महिला सशक्तिकरण में उनका योगदान भारत की सीमाओं से परे है, हंसाबेन 1947-48 में संयुक्तराष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारत की प्रतिनिधि भी थीं, जब मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का मसौदा तैयार किया जा रहा था, यह उनके हस्तक्षेप के कारण थाकि शुरुआती लाइन को सभी पुरुषों को समान बनाया गया से सभी मनुष्यों को समान बनाया गया में बदल दिया गया था। राष्ट्रपति ने कहाकि भारत तब औपनिवेशिक युग से बाहर निकला था, फिरभी यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात हैकि यह एक भारतीय महिला थी, जिसने दुनिया को लैंगिक समानता का पहला पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहाकि सभी प्रकार की समानता केप्रति यह संवेदनशीलता स्वतंत्रता संग्राम के कारण ही प्राप्त हो सकी है, भारत ने अपने सभी वयस्क नागरिकों को, किसी भी भेद की परवाह किए बिना शुरुआत मेंही सार्वभौमिक मताधिकार प्रदान करने का एक दुर्लभ गौरव हासिल किया। उन्होंने कहाकि महिलाओं ने न केवल चुनावों में मतदान किया, बल्कि चुनाव भी लड़ा और 1952 में पहली लोकसभा के लिए 24 महिलाएं चुनी गईं, इनमें सुचेता कृपलानी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानी शामिल थीं, बमुश्किल एक दशक बाद 1963 में वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, जो उस समय भारत का सबसे बड़ा राज्य था जो अधिकांश देशों से बड़ा था।
रामनाथ कोविंद ने कहाकि दुनिया के सबसे पुराने आधुनिक लोकतंत्र संयुक्तराज्य अमेरिका में महिलाओं को वोट देने का अधिकार जीतने केलिए अपनी स्वतंत्रता केबाद एक सदी सेभी अधिक समय तक इंतजार करना पड़ा, यूनाइटेड किंगडम में लगभग उतना ही लंबा इंतजार किया गया, उसके बादभी यूरोप के कई आर्थिक रूपसे उन्नत देशों ने महिलाओं को मतदान का अधिकार देने से परहेज किया। उन्होंने कहाकि भारत में ऐसा समय कभी नहीं था, जब पुरुष मतदान कर सकते थे, लेकिन महिलाएं नहीं कर सकती थीं, संविधान निर्माताओं को लोकतंत्र और जनता के ज्ञान में गहरी आस्था थी, वे प्रत्येक नागरिक को एक नागरिक के रूपमें मानते थे, न कि एक महिला या किसी जाति या जनजाति के सदस्य के रूपमें। उन्होंने कहाकि हम इन सात दशक में और आगे बढ़े हैं, स्थानीय निकायों में महिलाओं केलिए पचास प्रतिशत आरक्षण प्रदान किया है और यदि राजनीतिक प्रक्रियाओं में उनकी बेहतर भागीदारी को सुगम बनाना किसी भी मायने में सशक्तिकरण है तो यह पूरे समाज का सशक्तिकरण है, क्योंकि येभी शासन में गुणवत्ता जोड़ते हुए महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करती हैं।
राष्ट्रपति ने कहाकि सशस्त्र बलों में महिलाओं की बढ़ी हुई भूमिका है, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और प्रबंधन के पारंपरिक पुरुष गढ़ों में उनकी संख्या बढ़ रही है, जिसे सामूहिक रूपसे 'एसटीईएमएम' के रूपमें जाना जाता है। उन्होंने कहाकि जब स्वास्थ्य कर्मियों की बात आती है तो केरल ने हमेशा अपने उचित हिस्से से अधिक योगदान दिया है और इस राज्य की महिलाओं ने इस अवधि के दौरान एक महान व्यक्तिगत जोखिम पर भी नि:स्वार्थ देखभाल का उदाहरण स्थापित किया है। उन्होंने कहाकि ऐसी उपलब्धियां उन महिलाओं केलिए स्वाभाविक होनी चाहिएं, जो आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं। रामनाथ कोविंद ने कहाकि दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ है, हमें यह स्वीकार करना होगाकि वे गहरे सामाजिक पूर्वाग्रहों से पीड़ित हैं, कार्यबल में उनका अनुपात उनकी क्षमता के करीब कहीं नहीं है, भारत में कम से कम एक महिला प्रधानमंत्री रही हैं और राष्ट्रपति भवन में मेरे शानदार पूर्ववर्तियों मेंसे एक महिला भी रही हैं, जब कई देशों में राज्य या सरकार की पहली महिला प्रमुख होना अभी बाकी है। उन्होंने कहाकि हमारे सामने चुनौती मानसिकता को बदलने की है, स्वतंत्रता आंदोलन ने भारत में लैंगिक समानता केलिए एक ठोस नींव रखी थी। उन्होंने कहाकि भारत सरकार 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' जैसी केंद्रित पहलों केसाथ इस प्रवृत्ति को गति प्रदान करने की पूरी कोशिश कर रही है। सम्मेलन में केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी उपस्थित थे।