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Friday 3 June 2022 12:59:50 PM
मुंबई। कवि, गीतकार, पटकथा और संचार विशेषज्ञ लेखक प्रसून जोशी ने कहा हैकि फिल्म बनाना हिम्मतवालों का काम नहीं होना चाहिए, बल्कि किसी ऐसे व्यक्ति का काम होना चाहिए, जिसमें प्रतिभा हो। सत्रहवें मुंबई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव की मास्टर क्लास में बोलते हुए प्रसून जोशी ने कहाकि हम विविधता केबारे में बात करते हैं, लेकिन विविधता कैसे आएगी, जब तककि फिल्म निर्माण का लोकतंत्रीकरण नहीं होता? यदि चुनिंदा लोगों का ही चुना हुआ झुंड फिल्में बनाता रहा तो हमें समान कथाओं वाली फिल्में ही मिलती रहेंगी। उन्होंने कहाकि हमें असली फिल्में तभी मिलेंगी, जब विविध पृष्ठभूमि से आनेवाले लोग फिल्में बनाना शुरू करेंगे और इसी तरह हमारा सिनेमा समृद्ध हो सकता है।
प्रसून जोशी ने कहाकि फिल्म निर्माण का केंद्रबिंदु विचार होना चाहिए, कहानी कहने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ना कि प्रक्रिया पर। उन्होंने कहाकि कहानियां कल्पना से आती हैं। 'गांधी' तथा 'गांधी माई फादर' का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहाकि कथा इस बात से आती हैकि आप उसे कैसे देखते हैं, एकही कहानी को एक नई दृष्टि से देखने पर उसे अलग तरह से कहा जा सकता है। फिल्म 'रंग दे बसंती' का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहाकि इसमें क्रांतिकारियों की विषयवस्तु को एक नए दृष्टिकोण से देखा गया। उन्होंने कहाकि यह कहानी भले ही पहले भी एक हजार बार कही जा चुकी हो, फिरभी इसे अनोखे तरीके से हजार बार फिर कहा जा सकता है, क्योंकि हर आदमी एक अनकही कहानी, अधूरा सपना, अनुभव के खजाने के अलावा कुछ नहीं है। प्रसून जोशी ने कहाकि हर कोई अपने नज़रिए से हमेशा एक सुंदर कहानी कह सकता है, इससे हम भारत के इतिहास एवं इसकी समृद्ध संस्कृति से बहुत कुछ सीख सकते हैं।
प्रसून जोशी ने कहाकि परमसत्य को समझना बहुत कठिन है, जिसे अलग-अलग लोग अलग-अलग तरह से समझते हैं, हर किसी केपास एक अद्वितीय और प्रामाणिक दृष्टिकोण होता है, आप हर जगह नहीं हो सकते हैं, इसलिए आपको अपने वास्तविक नजरिए से विषय को देखना चाहिए, इससे कहानी दिलचस्प और आकर्षक बनेगी। उन्होंने 'भाग मिल्खा भाग' के निर्माण से जुड़ी एक दिलचस्प घटना सुनाई, जब वे फिल्म केलिए धावक मिल्खा सिंह से जानकारियां ले रहे थे, तब कई सवालों के जवाब केबाद मिल्खा सिंह ने उनसे कहा थाकि आप केवल मेरे जीवन के बारेमें पूछ रहे हैं और खेल के बारे में कुछ नहीं? प्रसून जोशी ने कहाकि मिल्खा सिंह मैदान पर जीत या हार के बजाय मानवीय प्रयासों के बारेमें जानने में रुचि रखते हैं, मैं भावनाओं को पकड़ना चाहता था, तथ्य तो पहले से ही उपलब्ध थे।
सिनेप्रेमियों केसाथ बातचीत करते हुए प्रसून जोशी ने 'तारे जमीं पर' फिल्म का उदाहरण देते हुए कहाकि शब्द और रूपक हमेशा हमारी जड़ों से निकलते हैं, किसी को अपनी जड़ों और वास्तविकता से खुदको अलग नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनका हमारी लेखनशैली पर बहुत प्रभाव पड़ता है और हमें सुंदर शब्दों और रूपकों को लाने में मदद करता है। प्रसून जोशी ने युवा उम्मीदवारों को अपने स्वयं के पहले अनुभव और उनके बारे में कैसा महसूस होता हैके आधार पर कहानियां लिखना शुरू करने केलिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहाकि वे जो जानते हैं और वे जो महसूस करते हैं उसके बारेमें लिखें, आप इसके बारे में सबसे अधिक सहज होते हैं, अगला चरण दूसरों के अनुभवों से लेकर लिखना होगा। प्रसून जोशी ने हिंदी सिनेमा में अपने काम से आलोचनात्मक और लोकप्रिय प्रशंसा दोनों हासिल की है।
गौरतलब हैकि ओगिल्वी एंड माथर और मैककैन एरिकसन सहित प्रमुख विज्ञापन एजेंसियों में अपने लंबे और विपुल करियर के माध्यम से प्रसून जोशी ने शक्तिशाली और व्यापक विज्ञापन अभियानों के माध्यम से कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों केलिए सफल ब्रांड बनाए हैं। प्रसून जोशी ने एक गीतकार के रूपमें ‘तारे ज़मीं पर’ (2007) और ‘चटगांव’ (2012) फिल्मों में उन्होंने सर्वश्रेष्ठ गीत केलिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किए हैं, उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री सेभी सम्मानित किया है। अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में मास्टर क्लास सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार और लेखक अनंत विजय ने किया था।