Wednesday 22 June 2022 06:09:27 PM
दिनेश शर्मा
मुंबई। भारतीय जनता पार्टी केसाथ चुनाव लड़कर सरकार के गठन में उससे विश्वासघात करने वाली शिवसेना केसाथ यही होना था। विधानसभा में जनादेश भाजपा-शिवसेना को मिला था, नकि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को। उद्धव ठाकरे ने हिंदुत्व का परित्याग करके कांग्रेस और एनसीपी केसाथ सरकार बनाने में जो बेमेल गठबंधन किया, उससे महाराष्ट्र में हिंदुत्व की परंपरागत जड़ें हिल गईं और वहां साम्प्रदायिक और दलाल की राजनीति का नंगा नाच अपने चरम पर पहुंच गया। शिवसेना विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे की यह पीड़ा नाहक ही नहीं हैकि महाराष्ट्र की जनता का शिवसेना और भाजपा गठबंधन को सरकार बनाने केलिए जनादेश मिला था, जिसका आधार केवल हिंदुत्व था, मगर उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के कर्णधार बालासाहेब ठाकरे के हिंदुत्व को त्यागकर साम्प्रदायिक शक्तियों से हाथ मिलाया और हिंदुत्व का खुलकर अपमान किया, जो हिंदुत्व केलिए बलिदान देने वाले शिवसैनिकों केलिए अपमान है। आज उद्धव ठाकरे जब हिंदुत्व के अपमान केलिए शर्मसार हो रहे हैं तो टीवी चैनलों पर हिंदुत्व की दुहाई दे रहे हैं, मगर अब समय निकल चुका है और उन्हें हिंदुत्व से विश्वासघात का परिणाम भुगतने को तैयार रहना चाहिए।
उद्धव ठाकरे और उनकी सरकार के बुरे दिन तो उसी दिन शुरू हो गए थे, जिस दिन उन्होंने संकटमोचक हनुमान चालिसा का अपमान किया। कहते हैंकि उनको शिवसैनिकों ने भी समझायाकि वे इस मामले में या तो शांत रहें या फिर हनुमान चालिसा होने दें, लेकिन उन्होंने सत्ता के कारण कांग्रेस एनसीपी और साम्प्रदायिक शक्तियों को खुश करने केलिए हनुमान चालिसा की अवहेलना और अपमान की सारी हदें पार करदीं। उनके इस कृत्य से महाराष्ट्र में शिवसैनिकों में उद्धव ठाकरे के खिलाफ मन ही मन में उबाल आ गया और उनके ही विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे ने शिवसैनिक विधायकों केसाथ उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया और साफ-साफ कहाकि जनादेश शिवसेना और भाजपा केलिए था, कांग्रेस और एनसीपी केलिए नहीं था, जिन्होंने राज्यभर में शिवसैनिकों और हिंदुत्व के आस्थावान लोगों का जीना मुहालकर रखा है। इससे बड़ा तनावपूर्ण वातावरण और क्या हो सकता हैकि महाराष्ट्र की जनता संकटमोचक हनुमान का अपमान होते देख रही है और शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे उनके पुत्र आदित्य ठाकरे और उनके फाइव स्टार प्रवक्ता संजय राउत भारतीय जनता पार्टी का लगातार अपमान कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे को आज लग रहा हैकि उनसे जो गलती हुई है, उसके कारण शिवसैनिक उनसे गद्दारी न करें और संजय राउत जो आग उगला करते थे, उनके तेवर मुंबई की सड़कों पर धूल खा रहे हैं।
उद्धव ठाकरे की शिवसेना का किला आज जिस तरह एकनाथ शिंदे ने ढहाया है, उससे महाराष्ट्र के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह उलट-पलट गए हैं। उद्धव ठाकरे की राजनीति पर यह पूर्ण ग्रहण माना जा सकता है। वह न हिंदुत्व के रहें और न शिवसेना के रहे। अबतो यह बहस शुरू हो गई हैकि महाराष्ट्र में असली शिवसेना कौन है। महाराष्ट्र के हिंदुवादी कह रहे हैंकि कांग्रेस और एनसीपी गठबंधन केसाथ खड़ी शिवसेना तो उसी वक्त अपनी पहचान खो चुकी जब उसने इनसे मिलकर सरकार बनाई और असली शिवसेना अब सामने आई है, जिसका नेतृत्व एकनाथ शिंदे कर रहे हैं। उन्होंने उन शिवसैनिकों में जान डाल दी है, जो इस बेमेल गठबंधन के कारण घुट-घुटकर जी रहे थे। यदि आज चुनाव करा दिए जाएं तो उद्धव ठाकरे की शिवसेना का सफाया निश्चित है। एक सवाल हर आदमी की जुबान पर हैकि जो शिवसेना छोटी-छोटी बातों पर अपने तेवर दिखाने केलिए महाराष्ट्र में सड़क पर आ जाती थी, जो उद्धव ठाकरे को अपना भगवान मानती थी, उसी शिवसेना का एक भी कार्यकर्ता उद्धव ठाकरे की सरकार बचाने केलिए खामोश है। जाहिर हैकि ये शिवसैनिक केवल ऊपरीतौर पर उद्धव ठाकरे का दम भरते थे, मगर उनके मन में कांग्रेस-एनसीपी केसाथ सरकार बनाने को लेकर गुस्सा था। उनपर जो गुजरी है उद्धव ठाकरे ने वह नहीं देखा और बाप-बेटे अपने परिवार केसाथ सत्ता के नशे में खोकर केवल भारतीय जनता पार्टी को खत्म करने में लगे रहे, मगर उन्हें मालूम नहीं थाकि वह जो कर रहे हैं, वह हिंदुत्व का एक सैलाब बहा ले जाएगा और एकनाथ शिंदे उनके लिए हिंदुत्व का सैलाब ही साबित हुआ है।
उद्धव ठाकरे ने जिस प्रकार महाराष्ट्र में सत्ता केलिए हिंदुत्व को रौंदकर, शिवसेना के सामने एनसीपी और कांग्रेस एवं साम्प्रदायिक शक्तियों को मजबूत करने का काम किया, उसपर उद्धव ठाकरे सफाई दे रहे हैंकि उन्होंने हिंदुत्व नहीं छोड़ा है, जबकि शिवसेना कह रही हैकि महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस एवं साम्प्रदायिक शक्तियों ने उसको कमजोर और कदम-कदम पर अपमानित किया हुआ है, जिसके चलते महाराष्ट्र में शिवसेना का वजूद खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है, इसीलिए शिवसेना का विद्रोह उद्धव ठाकरे के खिलाफ एक भू-स्खलन की तरह बन गया है। अबतो स्थिति यहां तक पहुंच गई हैकि उद्धव ठाकरे का शिवसेना और उसके चुनाव चिन्ह पर भी अधिकार बनाए रखना संकट में आ गया है। शिवसैनिकों का रोष-आक्रोश सुनने के काबिल हैकि उद्धव ठाकरे उनसे ढाई साल में कभी नहीं मिले, क्योंकि उन्हें डर थाकि कहीं कांग्रेस और एनसीपी के नेता उनसे नाराज न हो जाएं। शिवसैनिकों का यहां तक कहना थाकि जबभी कभी उनका शिवसैनिकों से सामना हुआ तो उन्होंने उनका अपमान ही किया। उद्धव ठाकरे खुद को ईमानदार कहते हैं और सरकार के सारे संसाधन एवं सुविधाएं सरकारी आवास वर्षा में नहीं, बल्कि अपने निजी आवास मातोश्री में लगाईं और वहां से बैठकर उद्धव ठाकरे, उनकी पत्नी और उनके पुत्र आदित्य ठाकरे ने करोड़ों-अरबों की डीलें कीं। उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे का अनेक बार अपमान किया, जो आज उनके पतन का कारण बन चुका है।