Friday 24 June 2022 03:03:41 PM
दिनेश शर्मा
मुंबई। महाराष्ट्र की सत्ता केलिए शिवसेना के महाप्रभु उद्धव ठाकरे, उनके पुत्र आदित्य ठाकरे उनकी पत्नी और उनके सलाहकार संजय राउत ने जिस प्रकार कांग्रेस और एनसीपी के सामने हिंदुत्व को ज़मीदोज़ किया है, उसके परिणामस्वरूप उद्धव ठाकरे कुनबे का पतन होना ही था और कांग्रेस एवं एनसीपी यही चाहती थीकि जबतक शिवसेना का हिंदुत्व दफन नहीं होगा, तबतक ये दोनों राजनीतिक दल महाराष्ट्र में सत्ता पाने का स्वप्न भी नहीं देख सकते। एनसीपी नेता शरद पवार ने शिवसेना और भाजपा गठबंधन तुड़वाकर सत्ता में आने के अपने मंसूबे पूरे किए, जिसमें कांग्रेस भी शामिल हो गई। कांग्रेस और एनसीपी के नेता जानते हैंकि उद्धव ठाकरे सत्ता सुख का बहुत बड़ा लालची है, जो उसके लिए हिंदुत्व को ठिकाने लगा सकता है, जिस पर महाराष्ट्र के शिवसैनिकों में एक पत्ता भी नहीं हिलेगा और वही हुआ, नतीजा-महाराष्ट्र में कांग्रेस एनसीपी का शिवसेना का ऑपरेशन हिंदुत्व सफल। नौबत यहां तक आ गई हैकि उद्धव ठाकरे की सरकार तो गई, लगभग शिवसेना भी हाथ से निकल गई है। इस समय महाराष्ट्र की सारी शिवसेना में ठाकरे के विरुद्ध विद्रोह और भगदड़ का वातावरण है।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में हिंदुत्व के नाम पर भाजपा से गठबंधन करके शिवसेना ने पचपन सीटें जीती थीं। यह भाजपा और शिवसेना का स्वाभाविक गठबंधन था, लेकिन उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बनने केलिए भाजपा से सौदीबाजी पर उतर आए और उन्होंने इस परंपरागत गठजोड़ को तोड़कर और हिंदुत्व को तिलांजलि देकर केवल मुख्यमंत्री बनने केलिए कांग्रेस एनसीपी से मिलकर सरकार बनाई। उन्होंने कांग्रेस एनसीपी की हर शर्त को मंजूर किया, क्योंकि उन्हें सिर्फ मुख्यमंत्री कुर्सी और अपने कुनबे का धन साम्राज्य बढ़ाना था। उद्धव ठाकरे ढाई साल महाराष्ट्र में सरकार की मलाई खाता रहा और महाराष्ट्र को कांग्रेस एनसीपी और साम्प्रदायिक शक्तियों से लुटवाता रहा। उद्धव ठाकरे को जब उनके शिवसैनिक नेताओं ने हिंदुत्व और शिवसेना की होती दुर्दशा बतानी चाही तो उद्धव ठाकरे उनसे मिले भी तो उन्हें डांटकर भगा दिया। शिवसैनिक भटक गए और जिस मुद्दे पर शिवसेना को जनादेश मिला था, उसपर उन्हें जनता के बीच में खरीखोटी सुनने को मिली। स्थानीय प्रशासन ने भी कांग्रेस एनसीपी के लोगों को ही तरजीह दी। यही वह दर्द है, जो उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह का कारण बना है, जिसका नेतृत्व एकनाथ शिंदे कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे पर कांग्रेस की 'सीईओ' सोनिया गांधी और एनसीपी के 'सीईओ' शरद पवार का मानो ग्रहण लग गया है।
शिवसेना विधायक दल के नेता एकनाथ शिंदे यही तो कह रहे हैंकि ढाई साल में हिंदुत्व को जमीन में गाड़ देने और अपना खुदका साम्राज्य स्थापित करने एवं महाराष्ट्र में शिवसैनिकों को एनसीपी कांग्रेस और साम्प्रदायिक शक्तियों से जलील कराने शिवसेना को उसके खत्म होने, कमजोर करने के अलावा उद्धव ठाकरे ने और किया क्या है? पराजय दर पराजय का सामना करते हुए कभी धमकीभरी भाषा बोलते हुए तो कभी आत्मसमर्पण के भाव में संजय राउत बार-बार कह रहे हैंकि शिवसेना एमवीए से अलग होने को तैयार है, लेकिन एकनाथ शिंदे सामने आकर बात करें। संजय राउत के इस भुलावे को हर कोई समझ सकता है। उद्धव ठाकरे शिवसेना सहित एनसीपी नेता शरद पवार के जाल में फंसे हुए हैं, इसलिए संजय राउत की बात में कोई दम नहीं है। शरद पवार ने शिवसेना से गठबंधन करते हुए विधानसभा अध्यक्ष और विधानसभा उपाध्यक्ष के पद अपने पास रखे हुए हैं, ताकि उद्धव ठाकरे को उनकी हैसियत में रखा जा सके। कहने का मतलब यह हैकि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद पर रहकर चाहे जो करते रहें, लेकिन महाअघाड़ी की सरकार को तबतक नहीं गिरा सकते, जबतक शिवसेना ही उस गठबंधन से अलग होने का फैसला न करले।
एनसीपी नेता शरद पवार इस समय जो फ्लोर टेस्ट की बात कर रहे हैं, उसका आधार ही यह हैकि वह इस संकट का समाधान विधानसभा में साम, दाम, दंड, भेद की नीति से करेंगे और महाअघाड़ी सरकार का बहुमत सिद्ध कराने में सफल हो जाएंगे, क्योंकि विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष उनके हैं। शरद पवार भलेही राजनीति के खिलाड़ी माने जाते हैं, मगर वे इस संकट से उद्धव सरकार को बचा ले जाएंगे, यह उनकी गलतफहमी है, क्योंकि महाअघाड़ी सरकार को हटाने के और भी विकल्प मौजूद हैं एवं भारतीय जनता पार्टी की उनकी सारी रणनीतियों पर नज़र है और इसबार भाजपा ने सरकार बनाने केलिए कोई भी उतावलापन नहीं दिखाया है एवं परदे के पीछे उसकी एकनाथ शिंदे की शिवसेना से फाइनल बात चल रही है। एनसीपी और कांग्रेस केलिए यह राजनीतिक घटनाक्रम जीवन-मरण का प्रश्न बन गया है। उसके सामने 2024 में लोकसभा चुनाव है और यदि महाअघाड़ी सरकार गई तो यह उद्धव ठाकरे केलिए भी लोकसभा चुनाव अत्यंत मुश्किलभरा हो जाएगा, क्योंकि यह चुनाव भाजपा और एकनाथ शिंदे की हिंदुत्ववादी शिवसेना मिलकर लड़ेगी और जैसा देश में माहौल चल रहा है, यह गठबंधन महाराष्ट्र में स्वीप कर जाएगा। उद्धव ठाकरे के साम्राज्य का पतन भी यह देश देखेगा, जिसका आधार यह हैकि वह हिंदुत्व को अपना मुद्दा और हथियार नहीं बना सकते।
उद्धव ठाकरे की सरकार हिंदुत्व की उपेक्षा के कारण तो जा ही रही है, इसके मूल में एक और वजह है, शिवसैनिक मंत्रियों, विधायकों और शिवसैनिक कार्यकर्ताओं की उपेक्षा एवं अपमान। महाराष्ट्र में उद्धव सरकार के जो राजनीतिक और शासन के पन्ने खुल रहे हैं, उनमें हिंदुत्व कोई बड़ा मसला नहीं है, शिवसेना के विधायकों मंत्रियों और सांसदों को हिंदुत्व का बहुत बड़ा बहाना मिल गया है। विद्रोह की वास्तविकता तो उनकी उपेक्षा और उनका अपमान उद्धव ठाकरे का किसी से नहीं मिलना है। उद्धव ठाकरे को इस बात से कभी मतलब नहीं देखा गया कि कांग्रेस एनसीपी केसाथ जाने से शिवसेना के हिंदुत्व का क्या होगा, जो उसकी मूल ताकत है। जो देखा जा रहा है उद्धव ठाकरे को केवल सत्ता का साम्राज्य दिखाई पड़ता है और उसके लिए उन्होंने भाजपा को निपटाना चाहा, मगर खुदही निपट गए और उसका कारक भी शिवसेना ही बनी है। शिवसेना के विधायक मंत्री खुलेआम अपना यह दर्द बयान कर रहे हैं। वह बता रहे हैंकि किस प्रकार से उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी केलिए शिवसैनिकों को तिलतिलकर मरने और घुटने को मजबूर किया है, अगर ऐसा न होता तो उद्धव ठाकरे के खिलाफ शिवसेना में विद्रोह न होता। उद्धव ठाकरे अपने पचपन शिवसैनिकों के हितों को नहीं देख पाए और एक सिंडीकेट की तरह सरकार चलाते हुए पतन को प्राप्त हो गए हैं।