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Wednesday 6 July 2022 02:14:06 PM
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज फोन पर परमपावन बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा को उनके 87वें जन्मदिन पर बधाई और शुभकामनाएं दी हैं। उन्होंने दलाई लामा की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य केलिए भी प्रार्थना की। प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट के जरिए यह जानकारी साझा की है। परमपावन बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा के बारे में जानने को बहुत कुछ है जैसे-चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो को तिब्बती लोगों में ग्यालवा रिनपोछे के नाम से भी जाना जाता है, वे सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता और तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष हैं। इनका जन्म 6 जुलाई 1935 को उत्तरपूर्वी तिब्बत के अमदो के तक्सेर में एक छोटे से गांव में किसान परिवार में हुआ था। तेरहवें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के पुनर्जन्म के रूपमें इन्हें दो साल की उम्र में मान्यता दी गई थी।
दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है, जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं, जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा केलिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन भी कहा जाता है। हर तिब्बती का परमपावन बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा केसाथ गहरा और आत्मीय जुड़ाव है। तिब्बतियों केलिए वे समूचे तिब्बत के प्रतीक हैं। तिब्बत की मुक्ति केलिए अहिंसक संघर्ष जारी रखने हेतु परमपावन दलाई लामा को वर्ष 1989 का नोबेल शांति सम्मान भी प्रदान किया जा चुका है। उन्होंने लगातार अहिंसा की नीति का समर्थन करना जारी रखा है, यहां तककि अत्यधिक दमन की परिस्थिति में भी, शांति, अहिंसा और हर सचेतन प्राणी की खुशी केलिए काम करना परमपावन दलाई लामा के जीवन का बुनियादी सिद्धांत है। वह वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं पर भी चिंता प्रकट करते रहते हैं।
परमपावन बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने 52 से अधिक देशों का दौरा किया है और कई प्रमुख देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों और शासकों से मिले हैं। उन्होंने कई धर्म के प्रमुखों और कई प्रमुख वैज्ञानिकों से मुलाकात की है। परमपावन के शांति संदेश, अहिंसा, अंतर धार्मिक मेलमिलाप, सार्वभौमिक उत्तरदायित्व और करूणा के विचारों को मान्यता के रूपमें अबतक उनको कई मानद डॉक्टरेट, पुरस्कार, सम्मान आदि प्राप्त हुए हैं। उन्होंने 50 से अधिक पुस्तकें लिखीं हैं। वे अपने को एक साधारण बौद्धभिक्षु ही मानते हैं। दुनियाभर में अपनी यात्राओं और व्याख्यान के दौरान उनका साधारण एवं करूणामय स्वभाव उनसे मिलने वाले हर व्यक्ति को गहराई तक प्रभावित करता है। उनका संदेश है प्यार, करूणा और क्षमाशीलता। बोधिसत्व सभी संवेदनशील प्राणियों के लाभ केलिए बुद्धत्व प्राप्त करने की इच्छा से प्रेरित प्राणी हैं, जिन्होंने मानवता की मदद केलिए दुनिया में पुनर्जन्म लेने की कसम खाई है। उन्होंने 6 वर्ष की आयु में अपनी विहारीय शिक्षा प्रारंभ की, नालंदा परंपरा से व्युत्पन्न पाठ्यक्रम में पांच प्रमुख और पांच छोटे विषय शामिल थे, प्रमुख विषयों में तर्क, ललित कला, संस्कृत व्याकरण और चिकित्सा शामिल थे, लेकिन बौद्ध दर्शन पर सबसे अधिक जोर दिया।
वर्ष 1950 में तिब्बत पर चीन के आक्रमण केबाद परमपावन को पूर्ण राजनीतिक सत्ता संभालने केलिए बुलाया गया था। वर्ष 1954 में वह बीजिंग गए, जहां कई चीनी नेताओं से मिले, वर्ष 1959 में चीनी सैनिकों द्वारा ल्हासा में तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह के क्रूर दमन केबाद परम पावन को निर्वासन में भागने केलिए मजबूर होना पड़ा, तबसे वह उत्तर भारत के धर्मशाला में रह रहे हैं, जो केंद्रीय तिब्बती प्रशासन का मुख्यालय है। तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा ने संयुक्तराष्ट्र से तिब्बत मुद्दे को सुलझाने की अपील की है, संयुक्तराष्ट्र महासभा में इस संबंध में कई प्रस्ताव भी पारित किए जा चुके हैं। परमपावन ने तिब्बत की खराब होती स्थिति का शांतिपूर्ण हल तलाशने की दिशा में कदम उठाते हुए पांच सूत्रीय शांति योजना प्रस्तुत की। उन्होंने यह विचार रखाकि तिब्बत को एक अभयारण्य एशिया के हृदयस्थल में स्थित एक शांति क्षेत्र में बदला जा सकता है, जहां सभी सचेतन प्राणी शांति से रह सकें और जहां पर्यावरण की रक्षा की जाए, लेकिन चीन परमपावन दलाई लामा के रखे गए विभिन्न शांति प्रस्तावों पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया देने में नाकाम रहा है।