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Wednesday 20 July 2022 03:06:47 PM
नई दिल्ली। भारत और नामीबिया गणराज्य ने आज वन्यजीव संरक्षण एवं सतत जैव-विविधता उपयोग संबंधी एक समझौता किया है, ताकि भारत में चीते को ऐतिहासिक श्रेणी में लाया जा सके। भारत में चीता परियोजना को दोबारा शुरू करने का मुख्य उद्देश्य भारत में चीते की सामूहिक संख्या को कायम करना है, इससे चीता सर्वोच्च शिकारी जंतु के रूपमें अपनी भूमिका निभाएगा और अपने ऐतिहासिक इलाके के भीतर उसके लिए जगह का विस्तार होगा, इस तरह वैश्विक संरक्षण प्रयासों में बड़ा योगदान होगा। नामीबिया की उपराष्ट्रपति नांगलो मुंबा और केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए। समझौते केतहत वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग को प्रोत्साहित करने केलिए पारस्परिक लाभप्रद संबंधों के विकास को दिशा दी जा सकेगी। यह पारस्परिक सम्मान, संप्रभुता, समानता और भारत तथा नामीबिया के सर्वोच्च हितों के सिद्धांतों पर आधारित है।
भारत-नामीबिया में समझौते की मुख्य विशेषताओं में है-जैवविविधता संरक्षण, जिसमें चीते के संरक्षण पर जोर दिया गया है, साथही चीते को उनके पुराने इलाके में दोबारा स्थापित करना है, जहां से वे विलुप्त हो गए हैं। दोनों देशों में चीते के संरक्षण को प्रोत्साहन देने के लक्ष्य के तहत विशेषज्ञता और क्षमताओं को साझा करना तथा उनका आदान-प्रदान करना। अच्छे तौर-तरीकों को साझा करके वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव विविधता उपयोग। प्रौद्योगिकियों को अपनाने, वन्यजीव इलाकों में रहने वाले स्थानीय समुदायों केलिए आजीविका सृजन तथा जैव-विविधता के सतत प्रबंधन के मद्देनजर कारगर उपायों को साझा करने के माध्यम से वन्यजीव संरक्षण और सतत जैव-विविधता उपयोग को प्रोत्साहन। जलवायु परिवर्तन, पर्यावरण सम्बन्धी शासन-विधि, पर्यावरण सम्बन्धी दुष्प्रभाव का मूल्यांकन, प्रदूषण और अपशिष्ट प्रबंधन व आपसी हितों के अन्य क्षेत्रों में सहयोग। जहां भी प्रासंगिक हो, वहां तकनीकी विशेषज्ञता सहित वन्यजीव प्रबंधन में कर्मियों केलिए प्रशिक्षण और शिक्षा केलिए आदान-प्रदान।
राष्ट्रीय संरक्षण और लोकाचार को मद्देनज़र रखते हुए चीते का बहुत विशेष महत्व है। भारत में चीते की वापसी महत्वपूर्ण संरक्षण नतीजों में बराबर का महत्व रखती है। चीते की बहाली चीतों के मूल प्राकृतिक वास की बहाली में प्रतिमान का काम करेगी। यह उनकी जैव-विविधता केलिए महत्वपूर्ण है और इस तरह जैव-विविधता के क्षरण एवं उसमें तेजीसे होने वाले नुकसान को रोकने में मदद मिलेगी। बड़े मांसाहारी जंतुओं में चीते केसाथ मनुष्यों के हितों का टकराव बहुत कम है, क्योंकि चीता मनुष्यों केलिए खतरा नहीं है तथा वे आमतौर पर मवेशियों के बड़े रेवड़ों पर हमला नहीं करता। शिकारी पशुओं की सर्वोच्च प्रजाति में से चीते की वापसी से ऐतिहासिक विकासपरक संतुलन कायम होगा, जिसका इको-प्रणाली के विभिन्न स्तरों पर भारी प्रभाव पड़ेगा। इस तरह वन्यजीवों के प्राकृतिक वासों यानी घास के मैदान, झाड़ियों वाले मैदान और खुली वन इको-प्रणालियों की बहाली और उनका बेहतर प्रबंधन संभव होगा, साथही उन पशुओं का भी संरक्षण करके उनकी संख्या बढ़ाई जाएगी, जिनका शिकार चीता करता है। इसी तरह चीते के इलाके में रहने वाली लुप्तप्राय प्रजातियों को भी बचाया जा सकेगा। दूसरी तरफ शिकार करने वाले बड़े से लेकर छोटे जंतुओं तक के क्रम में इको-प्रणाली के निचले स्तरपर, जहां छोटे जंतुओं का शिकार किया जाता है, वहांतक विविधता को कायम रखने तथा उसे बढ़ाने में मदद मिलेगी।
भारत में चीते की संख्या को जिन सक्षम स्थानों में कायम करना है और जो इसके लिए फायदेमंद हैं, यह तय करने केलिए आईयूसीएन दिशा-निर्देशों का पालन किया गया, जिनमें जनसांख्यिकी, जेनेटिक्स, सामाजिक एवं आर्थिक टकराव और आजीविका के मद्देनज़र प्रजातियों को ध्यान में रखा गया है। इन सबके आधार पर देखा गयाकि मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान चीते केलिए सर्वाधिक उपयुक्त है, वहां प्रबंधन सम्बंधी हस्तक्षेप न्यूनतम है, क्योंकि एशियाई शेरों को दोबारा कायम करने केलिए इस संरक्षित क्षेत्र में बहुत निवेश किया गया है। चीते की मौजूदगी दक्षिणी अफ्रीका, नामीबिया, बोत्सवाना और जिम्बाब्वे में है, जहां वे प्रासंगिक पारिस्थितिकीय-जलवायु विविधता में रहते हैं। इसके मॉडल पर भारत में चीते केलिए स्थान बनाया जा रहा है। इसके तहत चीते केलिए ऐसा माहौल तैयार किया जाएगा, जो उसके अधिक से अधिक अनुकूल हो। विश्लेषण से पता चलता हैकि दक्षिणी अफ्रीका के जिस वातावरण में चीते रहते हैं, उसे देखते हुए भारत का कूनो राष्ट्रीय उद्यान उनके प्राकृतिक वास केलिए सर्वाधिक अनुकूल है।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीते को स्थापित करने की कार्ययोजना आईयूसीएन के दिशा-निर्देशों पर विकसित की गई है, इसके तहत उस स्थान में शिकार की उपलब्धता का ध्यान रखा गया है, साथही अन्य मानकों केसाथ यह भी ध्यान रखा गया हैकि चीते के प्राकृतिक वास केलिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान की क्षमता कितनी है। कूनो राष्ट्रीय उद्यान की वर्तमान क्षमता अधिकतम 21 चीतों की है। एक बड़ा इलाका बहाल हो जाने केबाद वहां 36 चीतों को रखा जा सकता है। शिकार किए जानेवाले जंतुओं की उपलब्धता बढ़ाकर कूनो वन्यजीव प्रखंड (1280 वर्ग किलोमीटर) का शेष हिस्सा भी इसमें शामिल किया जा सकता है। भारत में चीते को दोबारा स्थापित करने सम्बंधी वित्तीय और प्रशासनिक समर्थन पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, एनटीसीए के जरिए करेगा। सरकार और कॉर्पोरेट एजेंसियों की भागीदारी कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के माध्यम से होगी। राज्य और केंद्रीय स्तर पर अतिरिक्त वित्तपोषण केलिए इन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा।
भारत वन्यजीव संस्थान, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मांसाहारी जंतु, चीता विशेषज्ञ, एजेंसियां कार्यक्रम केलिए तकनीकी जानकारी प्रदान करेंगी। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, एनटीसीए, डब्ल्यूआईआई, राज्य वन विभागों के अधिकारियों को भारत में चीते को दोबारा स्थापित करने केप्रति जागरुक किया जाएगा। यह कार्य अफ्रीका के चीता संरक्षण क्षेत्रों में क्षमता निर्माण कार्यक्रमों के जरिए किया जाएगा। अफ्रीका के चीता प्रबंधनकर्ताओं और जीव विज्ञानियों को अपने भारतीय समकक्षों को प्रशिक्षित करने केलिए आमंत्रित किया जाएगा। कूनो राष्ट्रीय उद्यान प्रबंधन आवश्वक सुरक्षा और प्रबंधन की निगरानी करने केलिए जिम्मेदार होगा, जिस समय चीता शोध दल वहां शोध की देख-रेख कर रहा होगा। स्थानीय ग्रामीणों की भागीदारी को प्रोत्साहित करने केलिए विभिन्न संपर्क और जागरुकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे। सरपंच, स्थानीय नेता, अध्यापक, सामाजिक कार्यकर्ता, धार्मिक हस्तियां और गैर-सरकारी संगठन संरक्षण में हितधारक बनाए जाएंगे।
स्कूलों, कॉलेजों और गांवों में लोगों को संरक्षण तथा वन विभाग में उपलब्ध विभिन्न योजनाओं के प्रति जागरुक करने केलिए जागरुकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। स्थानीय समुदायों केलिए जनजागरुकता अभियान चलाए जा रहे हैं, जिनका स्थानीय शुभंकर चिंटू चीता है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी राज्य अधिकारियों और कूनो राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के निर्वाचन क्षेत्रों से चुनकर आए विधायकों से आग्रह किया हैकि वे चीता-मनुष्य पारस्परिक सम्बन्धों के बारेमें जानकारी का प्रसार करें। वर्ष 2020 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों के अनुरूप भारत में चीते को दोबारा स्थापित करने का कार्य पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अधीन नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी कर रही है तथा उसका मार्गदर्शन सर्वोच्च न्यायालय की नामित विशेषज्ञ समिति कर रही है।