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मैंग्रोव वनों का संरक्षण

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 16 May 2013 08:09:50 AM

नई दिल्‍ली। भारतीय प्राणि सर्वेक्षण एक दशक से भी लंबे समय से पाल्क की खाड़ी में प्रवाल-भित्ति को होने वाले गंभीर खतरों का निरंतर अध्ययन करता आया है। वर्ष 2010-11 में शुरू किए गए अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई है कि प्रवाल भित्तों की संख्या में कमी आई है।
सरकार का दावा है कि वह नियामक और संवर्धक कदमों से देश में मैंग्रोव और प्रवाल-शैलों के संरक्षण, उनको बनाए रखने और उनकी संख्या में वृद्धि के लिए तत्पर है। नियामक कदमों के तहत तटीय नियामक क्षेत्र (सीआरजेड) अधिसूचना (2011) और द्वीप संरक्षण क्षेत्र (आईपीजेड) अधिसूचना 2011 के द्वारा समुद्री तट और ज्वारीय भाटे से प्रभावित जल निकायों के किनारों पर विकासात्मक गतिविधियों का नियामन किया जाता है। पर्यावरण और वन मंत्रालय मैंग्रोव और प्रवाल शैलों के संरक्षण और प्रबंधन की केंद्र से प्रायोजित योजना के तहत उन तटीय राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जो इसका अनुरोध करते हैं।

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