आदित्य नारायण
Thursday 1 September 2022 12:24:46 PM
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की पत्रिका 'राष्ट्रधर्म' के प्रथम प्रकाशक राधेश्याम प्रसाद एक प्रसंग में लिखते हैं-'एकदिन नानाजी देशमुख मेरी दुकान पर आए और बोलेकि 'प्रेस आकर हिसाब-किताब तो देख लो।' उन दिनों राष्ट्रधर्म का प्रकाशन सदर बाजार लखनऊ से होता था। दुकान बंद करके एक रात मैं प्रेस गया। वहां देखाकि हॉल में दोनों ओर तार लगाकर कपड़े के परदों से केबिन बना दिए गए हैं, अंदर एक मेज और बरामदे में एक तख्त। गर्मियों के दिन थे। रात में काम खत्म हुआ तो दीनदयालजी ने मुझे दरी, चादर और तकिया दे दिया। मुझे उन लोगों से पूछने का भी ध्यान नहीं रहा और मै तख्त पर सो गया।
राधेश्याम प्रसाद आगे लिखते हैंकि प्रात:काल जब मेरी नींद खुली तो वहां का दृश्य देखकर मैं अचंभित रह गया और मेरी आंखों में आंसू भी आ गए। दृश्य ही कुछ ऐसा था। मैने देखाकि मेरे ही बराबर नीचे जमीन पर दीनदयालजी और अटलजी चटाई पर सो रहे हैं। तकिया के स्थान पर दोनों लोगों ने अपने सिर के नीचे एक-एक ईंट लगा रखी थी। मैं हड़बड़ा गया और इन दोनों लोगों को जगाया। मैने उनसे कहाकि 'आप लोगों ने तो बड़ा अनर्थ कर दिया है, आप ऊपर सोइए।' पंडित दीनदयाल उपाध्याय बोले-'आदत न खराब करिए।' अटलजी ने हंसते हुए कहाकि 'जमीन छोड़ दी तो पैर कहां ठहरेंगे?' गौरतलब हैकि आजादी से पहले भाऊराव देवरस और पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने लखनऊ से प्रकाशित राष्ट्रधर्म पत्रिका में अटल बिहारी वाजपेयी को संपादक बनाया था। भाऊराव देवरस के कहने पर अटल बिहारी वाजपेयी पीएचडी छोड़कर मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म का संपादन करने लगे। राष्ट्रधर्म का 31 दिसंबर 1947 को पहला अंक आया था।