Monday 26 September 2022 01:50:32 PM
के विक्रम राव
दशकों बाद हो रहा कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव बहुत रुचिकर हो गया है, वर्ना विगत में हरबार यह सिर्फ ठठोली बनकर ही रह जाता था। पुतले मंच पर तो डोर कहीं और। क्या सोनिया-कांग्रेस का 'एक व्यक्ति एक पद' वाला नियम लागू हो जाएगा? यही गौरतलब सवाल है। अर्थात यदि कांग्रेस अध्यक्ष पद के प्रत्याशी अशोकसिंह लक्षमणसिंह गहलोत नामांकन से पूर्व अथवा चुनाव केबाद राजस्थान का मुख्यमंत्री पद नहीं छोड़ें तो? कांग्रेस संविधान में ऐसा नियम शुरू से रहा, पर उसका अनुपालित नहीं हुआ, इसीलिए उदयपुर में (शुक्रवार 13 मई 2022) को हुए कांग्रेस के पांचवें चिंतन शिविर में इस नियम का कठोरता से निर्वहन करने का पुनीत संकल्प दोहराया गया है। राहुल गांधी ने भी इस कायदे पर दृढ़ता जताई है। शायद उनकी पेशबंदी इसलिए भी है, क्योंकि यदि 2024 के लोकसभा मतदान में कहीं उनका तुक्का लग गया और उस वक्त वे पार्टी मुखिया भी रहे तो कोई व्यवधान न उपजे! एक सवाल यह भी हैकि अगर उनके कांग्रेस अध्यक्ष बनने केबाद कुछ राज्यों के होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई तो क्या होगा?
यूं कांग्रेस में 'एक पद एक व्यक्ति' के सर्वाधिक ईमानदार प्रणेता, प्रवर्तक, पालनहार प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे। तब (1949) राजर्षि पुरूषोत्तमदास टंडन बनाम आचार्य जेबी कृपलानी का चुनाव कांग्रेस अध्यक्ष पद हेतु हुआ था। जवाहरलाल नेहरू ने आचार्य कृपलानी का ऐलानिया तौरपर समर्थन किया था, मगर राजर्षि टंडन विजयी हुए और सरकारी समर्थक हारे। तबभी यह नियम थाकि एक व्यक्ति दो पद पर नहीं रह सकता। जवाहरलाल नेहरू ने इस शर्त पर जोर दिया था। यह संयोग हुआ थाकि पाकिस्तान के नवनिर्वाचित वजीर-ए-आजम नवाबजादा मिया लियाकत अली खां (करनाल वाले) मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के कारण मुस्लिम लीग के सदर भी नामित हो गए। जवाहरलाल नेहरू ने उनकी भर्त्सना की थीकि एक नेता को दो पद पर (सरकार तथा पार्टी) आसीन नहीं होना चाहिए। मतलब यहीकि 'एक व्यक्ति एक पद' का सिद्धांत जवाहरलाल नेहरू केलिए पुनीत तथा अनुपालनीय था, मगर स्थिति बदली और राजर्षि टंडन ने नेहरू के विरोध के कारण त्यागपत्र दे दिया। बात 9 सितंबर 1951 की है। कांस्टीटूशन क्लब भवन में कांग्रेस की बैठक आहूत कर नेहरू ने स्वयं कांग्रेस अध्यक्ष पद संभाला लिया। लियाकत अली खां तब इस विडंबना पर केवल मुस्करा दिए।
उसी दौर में वरिष्ठ कांग्रेसियों ने त्रिपुरी में सुभाष चंद्र बोस के कांग्रेस तजने की पुरानी घटना याद की। बोस डॉ पट्टाभि सीतारामय्या को हरा चुके थे, मगर तभी कुछ अप्रत्याशित हादसे क्रमवार हुए। सब समझते थेकि जब महात्मा गांधी ने पट्टाभि सीतारमैय्या का साथ दिया है, तबवे चुनाव आसानी से जीत जाएंगे, लेकिन वास्तव में सुभाष चंद्र बोस को चुनाव में 1580 मत और सीतारमैय्या को 1377 मत मिले। गांधीजी के विरोध के बावजूद सुभाष बाबू 203 मतों से चुनाव जीत गए। चुनाव के नतीजे केसाथ बात खत्म नहीं हुई। गांधीजी ने पट्टाभि सीतारमैय्या की हार को अपनी हार बताकर अपने साथियों से कह दियाकि अगर वे सुभाष चंद्र बोस के तरीकों से सहमत नहीं हैं तो वे कांग्रेस से हट सकते हैं। इसके बाद कांग्रेस कार्यकारिणी के 14 मेसे 12 सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। डॉ पट्टाभि मेरे ताऊ थे। स्वतंत्र भारत में मध्य प्रदेश के प्रथम राज्यपाल थे। कांग्रेस का त्रिपुरी अधिवेशन बड़ा तनावपूर्ण था, क्योंकि तबतक कांग्रेस अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित होता रहा। मोतीलाल नेहरू भी (1919-20 तथा 1928-29)। उनके तुरंत बाद (1930) उनके इकलौते पुत्र जवाहरलाल नेहरू भी।
कांग्रेस के एक व्यक्ति के दो पद पर रहने का एक वृतांत याद आया। पंडित कमलापति त्रिपाठी तब रेलमंत्री थे। लखनऊ में (अगस्त 1980) में उनकी प्रेस कांफ्रेंस हो रही थी। टाइम्स आफ इंडिया के संवाददाता के रूपमें उनसे मैंने एक प्रश्न पूछा था-'पंडितजी! आपकी पार्टी के संविधान के अनुसार एक व्यक्ति एक ही पद पर रहेगा, मगर आपकी प्रधानमंत्री दो पद पर कब्जा जमाए हैं?' त्रिपाठीजी से निजी आत्मीयता भी थी, उनके पुत्र मंगलापति लखनऊ विश्वविद्यालय में मेरे क्लासमेट रहे थे। चौधरी चरण सिंह की पुत्री सरोज सिंह भी। इसके अलावा इन रेलमंत्री को आजीवन मलाल रहाकि उन्हें पता ही नहीं था कि मेरी पत्नी (रेलवे डाक्टर के सुधा राव) को मेरे जेल जाने के बाद बड़ौदा से बाहर तबादला कर दिया गया। उनके रेल राज्यमंत्री मोहम्मद शफी कुरैशी ने मेरी पत्नी को भारत-पाक सीमा पर कच्छ के गांधीधाम रेलवे अस्पताल भेज दिया था। मेरा परिवार तोड़ डाला था।
पंडित कमलापति त्रिपाठी से मेरे सवाल से साफ थाकि मेरा निशाना प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर था, जो तब कांग्रेस की भी मुखिया थीं। कमलापतिजी तब कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष थे। उनका उत्तर बड़ा सटीक था। वे बोले-'अत्यावश्यक कारणों से संविधान संशोधित किया जा सकता है विक्रम राव, मैं तुम्हारे बाप केसाथ पत्रकारिता कर चुका हूं, समझते होकि तुम मुझे फंसा लोगे?' मेरे पिता स्वाधीनता सेनानी और सांसद के रामा राव 'नेशनल हेराल्ड' के 1942 में संपादक रहे हैं। बड़े सलीके से इस कांग्रेसी पत्रकार और राजनेता ने 'एक व्यक्ति, एक पद' वाला सवाल दरकिनार कर दिया। अब इतने सिलसिलेवार उतार चढ़ाव केबाद यदि राहुल गांधी जो अभी भारत जोड़ने में व्यस्त हैं, ने 'एक व्यक्ति एक पद' वाले नियम पर अड़े रहे तो वह कितना विश्वसनीय होगा? आखिर वह हैं भी जवाहरलाल नेहरू की बेटी के पोते! इंदिरा गांधी जीवन पर्यंत दोनों पद पर जमीं रहीं, सिवाय इसके कि जबवे हटाई गईं या हारीं। कोई उनका मनोनीत कांग्रेसी अध्यक्ष रहा भी तो उसकी डोर उन्हीं की उंगलियों पर रही। कासु ब्रह्मानंद रेड्डी, देवराज अर्स इत्यादि कांग्रेस के मुखिया रहे। देवकांत बरूआ इंडिया इज इंदिरा के सूत्रधार थे। वे खदेड़े गए तो सीधे ब्रह्मपुत्र नदीतट पर स्वप्रदेश जाकर गिरे। एस निपलिगप्पा भी ऐसे ही गए। इंदिरा गांधी ने उन्हें गपोड शंख बना डाला। अतः राजसत्ता का इतनी जघन्यता से दुरुपयोग करने वाली पितामही का वंशज संविधान का पालन करेगा? आम कांग्रेसी इसी कुटिल वास्तविकता को कब समझेगा? (के विक्रम राव देश के जाने-माने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। वॉलपोस्ट से साभार)।