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Saturday 15 October 2022 05:33:27 PM
गांधीनगर/ नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज वीडियो संदेश के माध्यम से विधि मंत्रियों और विधि सचिवों के अखिल भारतीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया और कहाकि हमारे जैसे विकासशील देशमें एक स्वस्थ समाज और आत्मविश्वास से भरे समाज केलिए एक भरोसेमंद और त्वरित न्याय व्यवस्था की आवश्यकता है। उन्होंने कहाकि हर समाज में न्याय व्यवस्था और विभिन्न प्रक्रियाएं व परंपराएं समय अवधि की जरूरतों के अनुसार विकसित हो रही हैं। नरेंद्र मोदी ने कहाकि जब न्याय मिलता दिखाई देता है, तो संवैधानिक संस्थाओं केप्रति देशवासियों का भरोसा मजबूत होता है और जब न्याय मिलता है, तो आम आदमी का भरोसा बढ़ जाता है। उन्होंने कहाकि देश की कानून व्यवस्था में निरंतर सुधार केलिए इस तरह के आयोजन बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहाकि आजादी के अमृत महोत्सव के इस चरण में सरदार पटेल की प्रेरणा से हमें सही मार्गदर्शन मिलेगा और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी। उन्होंने राज्यों के विधि मंत्रियों और विधि सचिवों के स्टैच्यू ऑफ यूनिटी की भव्यता के बीच सम्मेलन पर प्रसन्नता व्यक्त की।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि भारतीय समाज की विकास यात्रा हजारों साल पुरानी है और हमने गंभीर चुनौतियों का सामना करने के बावजूद लगातार प्रगति की है। उन्होंने कहाकि हमारे समाज का सबसे बड़ा पहलू प्रगति के पथपर बढ़ते हुए आंतरिक रूपसे खुदको बेहतर बनाने की प्रवृत्ति है। निरंतर सुधार की आवश्यकता पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि प्रत्येक प्रणाली के सुचारू संचालन केलिए यह एक अनिवार्य शर्त है। उन्होंने कहाकि हमारा समाज अप्रासंगिक कानूनों और गलत रीति-रिवाजों को मिटाता रहता है, जब कोई परंपरा रूढ़िवादिता में बदल जाती है तो वह समाज पर बोझ बन जाती है। उन्होंने यह भी कहाकि देशके लोगों को सरकार का अभाव भी नहीं लगना चाहिए और देशके लोगों को सरकार का दबाव भी महसूस नहीं होना चाहिए। भारत के नागरिकों से सरकार के दबाव को दूर करने पर विशेष जोर देने पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि पिछले 8 वर्ष में भारत ने डेढ़ हजार से अधिक पुराने और अप्रासंगिक कानूनों को रद्द कर दिया है और 32 हजार से अधिक अनुपालन भी कम किए गए हैं, नवाचार और जीवन की सुगमता के मार्ग में कानूनी बाधाओं को हटा दिया गया है, इनमें से कई कानून गुलामी के समय से चले आ रहे थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि गुलामी के समय के कई पुराने कानून अभी भी राज्यों में लागू हैं। नरेंद्र मोदी ने कहाकि आजादी के अमृतकाल में गुलामी के समय से चले आ रहे कानूनों को खत्मकर नए कानून बनाने चाहिएं। उन्होंने सम्मेलन से इस तरह के कानूनों को समाप्त करने का आग्रह किया। प्रधानमंत्री ने लोगों केलिए जीवन की सुगमता और न्याय की सुगमता पर ध्यान केंद्रित करते हुए राज्यों के मौजूदा कानूनों की समीक्षा करने की ओर भी इशारा किया। प्रधानमंत्री ने कहाकि न्याय देनेमें देरी सबसे बड़ी चुनौती है और न्यायपालिका इस दिशा में पूरी गंभीरता के साथ काम कर रही है। वैकल्पिक विवाद समाधान के तंत्र पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने सुझाव दियाकि यह लंबे समय से भारत के गांवों में बेहतर रूपमें उपयोग में लाया गया है और अब इसे राज्य स्तर पर प्रचारित किया जा सकता है। उन्होंने कहाकि हमें यह समझना होगाकि इसे राज्यों में स्थानीय स्तर पर न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा कैसे बनाया जाए। उस समय को याद करते हुए जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे, प्रधानमंत्री ने कहाकि तत्कालीन सरकार ने सायंकालीन अदालतों की अवधारणा पेश की थी। उन्होंने बताया कि धाराओं के संदर्भ में जो मामले कम गंभीर थे, उन्हें सायंकालीन अदालतों ने सुलझाया, जिसके परिणामस्वरूप हाल के वर्षों में गुजरात में 9 लाख से अधिक मामलों का निपटारा होना संभव हुआ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोक अदालतों के उद्भव पर भी प्रकाश डाला, जिनके कारण विभिन्न राज्यों में लाखों मामलों का निपटारा हुआ और अदालतों का बोझ कम हुआ। उन्होंने कहाकि गांव में रहने वाले लोगों, गरीब लोगों को इससे काफी फायदा हुआ है। संसद में कानून बनाने में मंत्रियों की जिम्मेदारी पर ध्यान देते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि यदि कानून में ही भ्रम है, तो आम नागरिकों को भविष्य में इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है, चाहे इरादे कुछ भी हों। उन्होंने कहाकि न्याय पाने केलिए आम नागरिकों को बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है और एक चौकी से दूसरी चौकी तक भागना पड़ता है। उन्होंने कहाकि जब कानून की बात आम आदमी की समझ में आती है तो उसका असर कुछ और ही होता है। अन्य देशों का उदाहरण देते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि जब संसद या विधानसभा में कोई कानून बनाया जाता है, तो उसे कानून की परिभाषा के भीतर विस्तार से समझाने केलिए तैयार किया जाता है और कानून का मसौदा ऐसी भाषा में तैयार किया जाता है, जिसे सामान्य लोग आसानी से समझ सके, कानून के क्रियांवयन की समय-सीमा भी निर्धारित की जाती है और नई परिस्थितियों में कानून की फिर से समीक्षा की जाती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि न्याय में आसानी केलिए कानूनी व्यवस्था में स्थानीय भाषा एक बड़ी भूमिका निभाती है। उन्होंने कहाकि युवाओं केलिए मातृभाषा में एकेडमिक इको-सिस्टम भी बनाना होगा, कानून के पाठ्यक्रम मातृभाषा में होने चाहिएं, हमारे कानून सरल भाषा में लिखे जाने चाहिएं, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के महत्वपूर्ण मामलों के डिजिटल पुस्तकालय स्थानीय भाषा में होने चाहिएं। नरेंद्र मोदी ने कहाकि जब न्यायिक व्यवस्था समाज केसाथ-साथ विकसित होती है, तो उसमें आधुनिकता को अपनाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है, परिणामस्वरूप समाज में होने वाले परिवर्तन न्यायिक व्यवस्था के माध्यम से भी दिखाई देते हैं। न्यायिक व्यवस्था में टेक्नोलॉजी को शामिल करने की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने ई-कोर्ट और वर्चुअल सुनवाई के उद्भव और ई-फाइलिंग को बढ़ावा देनेकी ओर इशारा किया। नरेंद्र मोदी ने कहाकि देश में 5जी के आने से इन व्यवस्थाओं में और भी तेजी आएगी। उन्होंने कहाकि हर राज्य को अपने सिस्टम को अपडेट और अपग्रेड करना होगा, यही हमारी कानूनी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य भी होना चाहिए कि इसे टेक्नोलॉजी के अनुसार तैयार किया जाए। उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की संयुक्त बैठक को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि उन्होंने विचाराधीन कैदियों का मुद्दा उठाया था, उन्होंने गणमान्य व्यक्तियों से ऐसे मामलों के निपटान केलिए त्वरित सुनवाई की दिशा में काम करने का आग्रह किया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहाकि राज्य सरकारों को विचाराधीन कैदियों के संबंध में मानवीय दृष्टिकोण केसाथ काम करना चाहिए, ताकि हमारी न्यायिक व्यवस्था मानवीय आदर्शों केसाथ आगे बढ़े। नरेंद्र मोदी ने कहाकि एक समर्थ राष्ट्र और एक सामंजस्यपूर्ण समाज केलिए एक संवेदनशील न्याय व्यवस्था आवश्यक है। संविधान की सर्वोच्चता केबारे में चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहाकि संविधान से ही न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका का जन्म हुआ है। नरेंद्र मोदी ने कहाकि सरकार हो, संसद हो, हमारी अदालतें हों, तीनों एक तरह से एक ही मां की संतान हैं, इसलिए भले ही कार्य अलग-अलग हों, अगर हम संविधान की भावना को देखें, तो तर्क या प्रतिस्पर्धा की कोई गुंजाइश नहीं है, एक मां की संतान की तरह मां भारती की सेवा करनी है, तीनों को मिलकर 21वीं सदी में भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। इस अवसर पर केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रिजिजू और केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री एसपी सिंह बघेल भी उपस्थित थे।