स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Thursday 20 October 2022 03:55:52 PM
नई दिल्ली। साहित्य और संस्कृति क्षेत्रके प्रतिष्ठित संस्थान 'स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास' ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वयं प्रकाश की स्मृति में दिए जानेवाले राष्ट्रीय वार्षिक सम्मान की घोषणा कर दी है। यह सम्मान इसबार कथेतर विधाओं में रिपोर्ताज़ केलिए सुपरिचित लेखक और पत्रकार शिरीष खरे को उनकी पुस्तक 'एक देश बारह दुनिया' को दिया जा रहा है। न्यास के अध्यक्ष प्रोफेसर मोहन श्रोत्रिय ने बताया हैकि सम्मान के साहित्यजगत के प्रतिष्ठित निर्णायक मंडल ने इस पुस्तक को वर्ष 2022 केलिए चयनित करने की अनुशंसा की। तीन सदस्यीय निर्णायक मंडल में वाराणसी के जानेमाने साहित्यकार लेखक काशीनाथ सिंह, भोपाल के कवि-गद्यकार राजेश जोशी और दिल्ली के जानेमाने लेखक प्रोफेसर असग़र वजाहत शामिल हैं, जिन्होंने इसबार लेखक शिरीष खरे को इस सम्मान केलिए चयनित किया।
स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान के निर्णायक मंडल के वरिष्ठतम सदस्य काशीनाथ सिंह ने अपनी संस्तुति में कहाकि लेखक शिरीष खरे का रिपोर्ताज़ लेखन एकसाथ वैचारिक और साहित्यिक कसौटियों पर खरा उतरता है, उनकी पुस्तक 'एक देश बारह दुनिया' उस लेखन परंपरा का विकास है, जो रांगेय राघव, अमृत राय और स्वयं प्रकाश जैसे लेखकों ने निर्मित की है। उनका कहना हैकि यह सामाजिक सरोकारों वाला ऐसा समर्थ गद्य है, जो कथेतर लेखन को भी ऊंचाई देने वाला है। निर्णायक मंडल के दूसरे सदस्य राजेश जोशी ने शिरीष खरे की पुस्तक की अनुशंसा में कहा हैकि स्वयं प्रकाश अपने कहानी लेखन केसाथ कथेतर लेखन में जिन सामाजिक सरोकारों केलिए सृजनरत रहे उन्हीं सरोकारों को शिरीष खरे की इस कृति में देखना आश्वस्तिप्रद है। निर्णायक मंडल के तीसरे सदस्य प्रोफेसर असग़र वजाहत नेभी इसी प्रकार प्रेरक और गौरवांवित संस्तुति की है। प्रोफेसर मोहन श्रोत्रिय ने स्वयं प्रकाश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा हैकि वे हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्रमें मौलिक योगदान केलिए जाने जाते हैं, उन्होंने ढाईसौ के आसपास कहानियां लिखी हैं और उनके पांच उपन्यास भी हैं।
प्रोफेसर मोहन श्रोत्रिय ने बतायाकि इनके अतिरिक्त नाटक, रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध और बाल साहित्य मेभी अपने अवदान केलिए स्वयं प्रकाश को हिंदी संसार में जाना जाता है, उन्हें भारत सरकार की साहित्य अकादमी सहित देशभर के विभिन्न अकादमिक संस्थानों और संस्थाओं से अनेक प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं। प्रोफेसर मोहन श्रोत्रिय ने बतायाकि उनके लेखन पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोधकार्य हुआ है, उनके साहित्य के मूल्यांकन की दृष्टि से अनेक पत्रिकाओं ने विशेषांक प्रकाशित किए हैं। गौरतलब हैकि वे लम्बे समय तक भोपाल में निवास करते हुए वहां से निकलने वाली पत्रिकाओं 'वसुधा' तथा 'चकमक' के सम्पादन से जुड़े रहे। इंदौर में 20 जनवरी 1947 को जन्मे स्वयं प्रकाश का 7 दिसम्बर 2019 को निधन हो चुका है। प्रोफेसर मोहन श्रोत्रिय ने बतायाकि लेखक शिरीष खरे को सम्मान में ग्यारह हजार रुपये, प्रशस्तिपत्र और शॉल भेंट किया जाएगा। उल्लेखनीय हैकि वर्ष 2021 का स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान मनोज कुमार पांडेय को उनके कहानी संग्रह 'बदलता हुआ देश' केलिए दिया गया था। साहित्य और लोकतांत्रिक विचारों के प्रचार-प्रसार केलिए गठित स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास में भोपाल के कवि राजेश जोशी, जयपुर के आलोचक दुर्गाप्रसाद अग्रवाल, बनारस के कवि-आलोचक आशीष त्रिपाठी, दिल्ली के आलोचक पल्लव, मुंबई से इंजीनियर अंकिता सावंत और दिल्ली से अपूर्वा माथुर सदस्य हैं।
शिरीष खरे का जन्म 1981 में मध्यप्रदेश के जिला नरसिंहपुर के आदिवासी बहुल गांव मदनपुर में हुआ था। वर्ष 1999 में बारहवीं पास करके अपने गांव से पहलीबार भोपाल आए। वर्ष 2002 तक भोपाल में पत्रकारिता की पढ़ाई की, तबसे वे लेखन दर्शन और साहित्य केलिए देशके बारह राज्यों के भीतरी भागों गांवों की यात्राएं कर चुके हैं। दो दशक से भोपाल, दिल्ली, मुंबई, जयपुर, रायपुर और पुणे में रहते हुए गांव केंद्रित पत्रकारिता और लेखन में सक्रिय रहे हैं। सम्मान केलिए चयनित उनकी पुस्तक 'एक देश बारह दुनिया' हाशिये पर छूटे भारत की तस्वीर दर्शाती है। उनकी अन्य पुस्तकें खोजी पत्रकारिता पर 'तहकीकात' और स्कूली शिक्षा पर 'उम्मीद की पाठशाला' हैं। शिरीष खरे की प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में रहते हुए हजार से अधिक प्रकाशित रिपोर्ट हैं, चारसौ से अधिक गांवों के बारेमें लिखित सामग्री है। शिरीष खरे को भारतीय गांवों पर उत्कृष्ट रिपोर्टिंग केलिए वर्ष 2013 में 'भारतीय प्रेस परिषद' से सम्मान मिल चुका है। उन्होंने वर्ष 2009, 2013 और 2020 में 'संयुक्तराष्ट्र जनसंख्या कोष' के लैंगिक संवेदनशीलता पर न्यूज़ स्टोरीज केलिए 'लाडली मीडिया अवार्ड' और सात राष्ट्रीय स्तर के सम्मान प्राप्त किए हैं।
शिरीष खरे की 'एक देश बारह दुनिया' पुस्तक कंटेंट से समृद्धशाली है। जब मुख्यधारा की मीडिया में अदृश्य संकटग्रस्त क्षेत्रों की ज़मीनी सच्चाई वाले रिपोर्ताज लगभग गायब हो गए हैं, तब इस पुस्तक का सम्बंध एक बड़ी जनसंख्या को छूते देश के इलाकों से है, जिसमें शिरीष खरे ने विशेषकर गांवों की त्रासदी, उम्मीद और उथल-पुथल की परत-दर-परत पड़ताल की है। यह देश-देहात के मौजूदा और भावी संकटों से संबंधित नया तथा ज़रूरी दस्तावेज़ है। इक्कीसवीं सदी के मेट्रो बुलेट ट्रेन के भारतमें विभिन्न प्रदेशों के वंचितजनों की ज़िंदगियों के किस्से एक बिलकुल दूसरेही हिंदुस्तान को पेश करते हैं, जो स्थिर है, गतिहीन है और बिलकुल ठहरा हुआ सा है। यह भारत की ऐसी तस्वीर है, जो छिपाई जाती है, लेकिन जो फ्रंट पर होनी चाहिए। इसमें अदृश्य देशके लोगों की ऐसी आवाज़ें शामिल हैं, जिन्हें अक्सर अनसुना किया जाता है, लेकिन जिन्हें बड़े इत्मीनान और ध्यान से सुनने की ज़रूरत है। इनका सरोकार उन स्थानों से है, जिनके बारेमें हो सकता हैकि लोगों ने सुना भी हो, लेकिन शायद वे वहां पहुंचने से रह गए हों। इसमें उन समुदायों के किस्से हैं। दरअसल यह एक-दूसरे से बहुत दूर की दुनियाओं में रहनेवाले वंचितों के दुख, तकलीफ़, संघर्ष, प्यार, उनकी ख़ुशियों और उम्मीदों का अलग-अलग यथार्थ है, जिससे लगता हैकि क्या यह एकही देश है!
शिरीष खरे के कुल बारह रिपोर्ताज़ हैं, जो पत्रकारिता के दौरान अलग-अलग वर्ष में विभिन्न राज्यों से खोजी गईं न्यूज़ स्टोरीज़ हैं। इनमें सपाट सूचनाओं के सहारे विश्वसनीय विवरणों केसाथ गहराई में उतरने और लोगों के अनुभवों का दस्तावेज़ बनाने की कोशिश की गई है। इनमें सच्ची कहानियां हैं, यहां तककि अधिकांश पात्र और स्थानों के नामों को भी ज्यों का त्यों रखा गया है। लेखक ने साल-दर-साल इन बारह तरह की दुनियाओं को नापने केलिए यातायात के सस्ते और सार्वजनिक साधनों का सहारा लिया है। लेखक ने महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, कर्नाटक, बुंदेलखंड और राजस्थान के थार तथा कई जनजातीय अंचलों में स्थानीय लोगों केसाथ लंबा समय बिताया है, वहीं भिन्न-भिन्न बोली और भाषाएं बोलने वाले लोगों केसाथ संवाद स्थापित करके अपने आपमें एक अनूठा अनुभव अर्जित किया है। पुस्तक में हर ज़गह समकालीन भारत की बेचैनी और विकट परिस्थितियों को सामूहिक चेतना का हिस्सा नज़र आता है। यह पुस्तक हरएक दुनिया के अधिक से अधिक भीतर तक वहां की सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संकटों की परतों को खोलती हुई दिखती है।