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Monday 28 November 2022 01:34:49 PM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देशके सर्वोच्च न्यायालय के संविधान दिवस समारोह में समापन भाषण देते हुए कहा हैकि हम आज उस संविधान को अपनाने का स्मरण कर रहे हैं, जिसने न केवल दशकों से गणतंत्र की यात्रा को निर्देशित किया है, बल्कि कई अन्य देशों कोभी अपने संविधान का मसौदा तैयार करने केलिए प्रेरित किया है। राष्ट्रपति ने कहाकि संविधान सभा निर्वाचित सदस्यों से बनी थी, जो राष्ट्र के सभी क्षेत्रों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे, उनमें हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गज शामिल थे, इस प्रकार उनकी बहसें और उनके तैयार किएगए दस्तावेज़ उन मूल्यों को दर्शाते हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता केलिए संघर्ष को निर्देशित किया। उन्होंने कहाकि इस राष्ट्र के चरित्र के बारेमें उनके अपने सपने और विचार थे, लेकिन वे इसे बंधनों से मुक्त देखने की इच्छा में एकजुट थे, उन सभी ने यह सुनिश्चित करने केलिए महान बलिदान दियाकि आनेवाली पीढ़ियां एक स्वतंत्र राष्ट्र की हवा में सांस लेंगी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस तथ्य पर प्रकाश डालते हुएकि संविधान सभा के 389 सदस्यों में 15 महिलाएं भी शामिल हैं, कहाकि जब पश्चिम के कुछ प्रमुख राष्ट्र अभीभी महिलाओं के अधिकारों पर बहस कर रहे थे, भारत में महिलाएं संविधान निर्माण में भाग ले रही थीं, उनमें से एक हंसाबेन मेहता ने मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा के प्रारूपण में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, सरोजिनी नायडू, सुचेता कृपलानी, दुर्गाबाई देशमुख और अन्य महिला सदस्य पहले सेही अनुभवी प्रचारक थीं, जिन्होंने खुदको स्वतंत्रता आंदोलन केलिए समर्पित कर दिया था। राष्ट्रपति ने कहाकि आजादी केबाद से सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि हुई है, लेकिन इससे संतुष्ट होने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने कहाकि वह समझती हैंकि न्यायपालिका भी लैंगिक संतुलन बढ़ाने का प्रयास करती है। राष्ट्रपति ने कहाकि संविधान की आधारशिला इसकी प्रस्तावना में समाहित है, इसका एकमात्र ध्यान इस बातपर हैकि सामाजिक भलाई को कैसे बढ़ाया जाए, इसकी पूरी इमारत न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर टिकी है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि जब हम न्याय की बात करते हैं तो हम समझते हैंकि यह एक आदर्श है और इसे प्राप्त करना बाधाओं के बिना नहीं है, न्याय पाने की प्रक्रिया को सभी केलिए वहनीय बनाने की जिम्मेदारी हम सभीकी है। उन्होंने इस दिशामें न्यायपालिका के किएगए प्रयासों की सराहना की। राष्ट्रपति ने कहाकि पहुंच का प्रश्न अक्सर लागत के मामले से परे होता है, सर्वोच्च न्यायालय और कई अन्य न्यायालय अब कई भारतीय भाषाओं में निर्णय उपलब्ध कराते हैं, यह प्रशंसनीय भाव एक औसत नागरिक को प्रक्रिया में एक हितधारक बनाता है। उन्होंने कहाकि सुप्रीम कोर्ट और अन्य अदालतों ने अपनी कार्यवाही का सीधा प्रसारण शुरू किया है, न्याय के वितरण में नागरिकों को प्रभावी हितधारक बनाने में यह एक लंबा रास्ता तय करेगा। राष्ट्रपति ने कहाकि संविधान सुशासन केलिए एक मानचित्र की रूपरेखा तैयार करता है, इसमें सबसे महत्वपूर्ण विशेषता राज्य के तीन अंग अर्थात कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के कार्यों और शक्तियों को अलग करने का सिद्धांत है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहाकि हमारे गणतंत्र की पहचान हैकि तीनों अंग संविधान की निर्धारित सीमाओं का सम्मान करते हैं, प्रत्येक का उद्देश्य लोगों की सेवा करना है। उन्होंने कहाकि नागरिकों के हितों की सर्वोत्तम सेवा करने के उत्साह में तीन अंगों में से एक या दूसरे को आगे बढ़ने का प्रलोभन दिया जा सकता है, फिरभी हम संतोष और गर्व से कह सकते हैंकि तीनों अंग हमेशा लोगों की सेवा करने की पूरी कोशिश करते हुए सीमाओं को ध्यान में रखने का प्रयास करते हैं। राष्ट्रपति ने झारखंड के राज्यपाल के रूपमें जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या की समस्याओं को संबोधित करने के अपने अनुभव के बारेमें तत्काल टिप्पणियां कीं। उन्होंने ओडिशा में राजनीतिक कार्यकर्ता के रूपमें अपने दिनों को याद करते हुए कहाकि मुकद्मेबाजी की अत्यधिक लागत न्याय प्रदान करने में एक बड़ी बाधा थी। न्याय के त्वरित वितरण के उदाहरणों की सराहना करते हुए उन्होंने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका से लोगों की दुर्दशा को कम करने केलिए एक प्रभावी विवाद समाधान तंत्र विकसित करने का आग्रह किया।
राष्ट्रपति ने कहाकि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने श्रेष्ठ मानकों और उच्च आदर्शों के लिए प्रतिष्ठा अर्जित की है, इसने सबसे अनुकरणीय तरीके से संविधान के व्याख्याकार के रूपमें अपनी भूमिका निभाई है, न्यायालय के ऐतिहासिक निर्णयों ने हमारे देशके कानूनी और संवैधानिक ढांचे को मजबूत किया है। उन्होंने कहाकि सुप्रीम कोर्ट की बेंच और बार को उनकी कानूनी विद्वता केलिए जाना जाता है। उन्होंने कहाकि सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों ने काम किया है, जिन्होंने विश्वस्तरीय संस्थान बनाने केलिए आवश्यक बौद्धिक गहराई, जोश और जीवन शक्ति प्रदान की है। उन्होंने कहाकि संविधान दिवस संवैधानिक आदर्शों केप्रति हमारे दृढ़ पालन की पुष्टि करने का दिन है, क्योंकि ये ऐसे आदर्श हैं, जिन्होंने देश को प्रगति केपथ पर आगे बढ़ने में मदद की है। राष्ट्रपति ने समारोह के आयोजन केलिए उच्चतम न्यायालय को बधाई दी और विश्वास व्यक्त कियाकि सर्वोच्च न्यायालय हमेशा न्याय का प्रहरी बना रहेगा।