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Tuesday 28 February 2023 12:53:49 PM
बीकानेर। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु बीकानेर में 14वें राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में शामिल हुईं और महोत्सव को भी संबोधित किया। उन्होंने कहाकि यह बहुत हर्ष की बात हैकि राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव देशके अलग-अलग राज्यों से आए कलाकारों को अपनी प्रतिभाएं सबके सामने प्रस्तुत करने का सुअवसर प्रदान कर रहा है और उन्हें बताया गया हैकि एक हज़ार से भी अधिक कलाकार और कारीगर इन नौ दिन में यहां अपनी अद्भुत कलाओं का प्रदर्शन करेंगे। राष्ट्रपति ने जिक्र कियाकि अभी पिछले सप्ताह ही उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवार्ड्स में देशके वरिष्ठ कलाकारों और कलाविदों से मिलने का अवसर मिला, कला क्षेत्र के प्रतिभावान और महान विभूतियों को देखकर मन में नई ऊर्जा का संचार होता है, राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव जैसे कार्यक्रम देशकी कला और संस्कृति कोतो बढ़ावा देते ही हैं, साथही राष्ट्रीय एकता की भावना कोभी और मजबूत बनाते हैं। उन्होंने कहाकि इस तरह के सांस्कृतिक आयोजनों से देशवासियों को हमारी समृद्ध संस्कृति और विभिन्न क्षेत्रों की विशेषताओं को जानने एवं समझने का अवसर मिलता है। राष्ट्रपति ने केंद्रीय संस्कृति मंत्री, संस्कृति राज्यमंत्री और संस्कृति मंत्रालय की पूरी टीम को इस महोत्सव के आयोजन केलिए बधाई दी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि 14वें राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में आकर और कला तथा संस्कृति के राष्ट्रीय उत्सव का उद्घाटन करके बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है और उन्हें बताया गया हैकि यह उत्सव देश के विभिन्न राज्यों में आयोजित किया जा चुका है और पहलीबार इसका आयोजन राजस्थान में हो रहा है। राष्ट्रपति ने कहाकि हममें से बहुत से लोग बीकानेर को बीकानेरी खाद्य पदार्थों के कारण जानते होंगे, लेकिन इतिहास में बीकानेर के महल और किले महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं, उसके अलावा बीकानेर ऊंट से जुड़े नृत्यों और त्योहारों केलिए भी जाना जाता है। राष्ट्रपति ने कहाकि प्राचीनकाल से हमारी कलाशैली उच्चस्तर की रही है, सिंधु घाटी की सभ्यता के समय सेही नृत्य, संगीत, चित्रकारी, वास्तुकला जैसी अनेक कलाएं भारत में विकसित थीं। उन्होंने कहाकि भारतीय संस्कृति में अध्यात्म कीभी महत्वपूर्ण भूमिका है, सृष्टि की प्रत्येक रचना कला का अद्भुत उदाहरण है, नदी की लहर का मधुर संगीत हो या मयूर का मनमोहक नृत्य, कोयल का गीत हो, मां की लोरी या नन्हे से बच्चे की बाल लीला हो हमारे चारों ओर कला की सुगंध फैली हुई है।
राष्ट्रपति ने कहाकि प्रौद्योगिकी को परंपराओं केसाथ और विज्ञान को कला केसाथ जोड़ना आवश्यक है, विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद से हरक्षेत्र में नए प्रयोग हो रहे हैं, कला और संस्कृति के क्षेत्रमें भी प्रौद्योगिकी को अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहाकि हम नई प्रौद्योगिकी के जरिए अपने देशकी कला, परंपरा और संस्कृति की पहुंच का दायरा बढ़ा सकते हैं, हम सभीको भारत की बहुमूल्य एवं समृद्ध संस्कृति पर गर्व होना चाहिए, साथही हमें अपनी परंपराओं में नए विचारों और सोच को जगह देनी चाहिए, ताकि हम अपने युवाओं और आनेवाली पीढ़ियों को इन परंपराओं से जोड़ सकें। उन्होंने कहाकि यह बहुत जरूरी हैकि हमारे युवा और बच्चे इस देशकी अनमोल विरासत के महत्व को समझें। राष्ट्रपति ने कहाकि सच्चे कलाकारों का जीवन तपस्या का उदाहरण होता है, किसीभी काम को एकाग्रता और भक्ति केसाथ कैसे किया जाता है, यह सीख हम कलाकारों से ले सकते हैं, ख़ासतौर पर हमारी युवा पीढ़ी को हमारे कलाकारों से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। उन्होंने कहाकि ऐसे अधिक से अधिक कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित की जाएं, जिनके माध्यम से युवाओं और अनुभवी कलाकारों केबीच विचारों एवं प्रतिभाओं का आदान-प्रदान हो सके।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि आज के डिजिटल युग में हमें यहभी देखना होगाकि कैसे हम नई पीढ़ी को निरंतर अभ्यास और मेहनत करने की प्रेरणा दे सकें, आज के लोगों का जीवन और समय बहुत तेजगति से भाग रहा है, इसलिए अपनी कला और संस्कृति की धरोहर को आनेवाली पीढ़ियों तक पहुंचाना आसान नहीं है। राष्ट्रपति ने कहाकि हम सभी जानते हैंकि परिवर्तन जीवन का नियम है, समय केसाथ कला, परंपरा और संस्कृति में भी बदलाव आते हैं, समय केसाथ कला की शैली, जीवनशैली, वेशभूषा, खान-पान में बदलाव आना स्वाभाविक है, लेकिन कुछ बुनियादी मूल्य और सिद्धांत पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलते रहने चाहिएं, सिर्फ तभी हम भारतीयता को जीवित रख पाएंगे। उन्होंने प्रमुख हस्तियों, विद्यवानों, कला प्रेमियों और कलाकारों से ऐसे तरीके और तकनीक खोजने का आग्रह किया, जिससे आज की पीढ़ी विशेष रूपसे युवा और बच्चे कला एवं संस्कृति को समझ सकें और उसे सीख सकें।