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Thursday 25 May 2023 02:29:22 PM
रांची। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने झारखंड उच्च न्यायालय के नए भवन का उद्घाटन किया और कहाकि झारखंड उच्च न्यायालय अपने नए भवन के उद्घाटन केसाथ एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार कर रहा है। उन्होंने कहाकि अपने पहले चरण में इसे 1972 में पटना उच्च न्यायालय की सर्किट बेंच के रूपमें स्थापित किया गया था, इसकी स्थापना नवंबर 2000 में झारखंड राज्य के बिहार राज्य से अलग होने केबाद की गई थी, बमुश्किल दो दशक में यह प्रभावशाली रूपसे बढ़ा है और न्यायाधीशों की स्वीकृत शक्ति 12 से 25 तक दोगुनी से अधिक हो गई है। राष्ट्रपति ने कहाकि नए भवन की नई रूपरेखा के अनुरूप स्पष्ट रूप से न्याय को कुशलता से बांटने केलिए बड़े और अधिक आधुनिक बुनियादी ढांचे की आवश्यकता थी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि यह इमारत अपनी आधुनिक सुविधाओं और अत्याधुनिक भौतिक अवसंरचना केसाथ वास्तव में प्रभावशाली है। उन्होंने कहाकि ऊर्जा संरक्षण के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए पूरे परिसर को डिजाइन और निर्मित किया गया है, विभिन्न प्रकार के पेड़ों केसाथ वनीकरण इसे वास्तव में एक हरा-भरा परिसर बनाता है। उन्होंने विश्वास व्यक्त कियाकि झारखंड उच्च न्यायालय का नया भवन अन्य सार्वजनिक और निजी संगठनों को समान प्रकृति की अपनी परियोजनाओं में पर्यावरण को केंद्रीय मानक बनाने केलिए प्रेरित करेगा। राष्ट्रपति ने कहाकि अदालत न्याय का मंदिर होता है, लोग न्यायालयों को आस्था की नज़र से देखते हैं और कानून की भाषा भी इसी भावना को दर्शाती है, जब हम प्रार्थना जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहाकि लोगों ने खुदही अदालतों को न्याय देने और गलत को ठीक करने की शक्ति दी है, यह वास्तव में एक बहुत ही गंभीर जिम्मेदारी है।
द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि न्याय तक पहुंच के सवाल के कई पहलू हैं, पैसों का खर्च इनमें सबसे महत्वपूर्ण है, यह देखा गया हैकि मुकद्मेबाजी का खर्च अक्सर न्याय पाने के प्रयास को कई नागरिकों की पहुंच से बाहर कर देता है। उन्होंने कहाकि इसके जवाब में विभिन्न प्राधिकरणों ने नि:शुल्क कानूनी परामर्श प्रकोष्ठ खोलने सहित कई स्वागत योग्य पहलें की हैं। उन्होंने हितधारकों से अभिनव तरीके से सोचने और न्याय की पहुंच का विस्तार करने केलिए नए उपाय ढूंढने का आग्रह किया। राष्ट्रपति ने कहाकि पहुंच का एक अन्य पहलू भाषा है, चूंकि अंग्रेजी भारत में अदालतों की प्राथमिक भाषा रही है और आबादी का एक बड़ा वर्ग इस प्रक्रिया से बाहर रह गया है। द्रौपदी मुर्मु ने कहाकि न्याय की भाषा समावेशी होनी चाहिए, ताकि किसी मामले के पक्षकार और अन्य इच्छुक नागरिक व्यवस्था के प्रभावी हितधारक बन सकें। उन्होंने कहाकि समृद्ध भाषाई विविधता वाले झारखंड जैसे राज्य में यह कारक और भी प्रासंगिक हो जाता है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने विश्वास व्यक्त कियाकि न्यायिक अधिकारी अदालती प्रक्रियाओं को उन लोगों केलिए अधिक सुलभ बनाने के तरीकों पर विचार कर रहे हैं, जो अंग्रेजी के अलावा अन्य भाषाओं में अधिक सहज हैं। राष्ट्रपति ने विचाराधीन कैदियों को न्याय सुलभ कराने की आवश्यकता को दोहराया। उन्होंने कहाकि इस समस्या के पीछे एक कारण यह हैकि अदालतों पर अत्यधिक बोझ है, जो न्याय तक पहुंच को भी नुकसान पहुंचाता है, समस्या जटिल है, फिरभी तथ्य यह हैकि बड़ी संख्या में लोगों को वर्षों तक विचाराधीन कैदियों के रूपमें जेलों में रहना पड़ता है, जेलें खचाखच भरी हुई हैं, जिससे उनका जीवन और भी कठिन हो जाता है। राष्ट्रपति ने कहाकि समस्या के मूल कारण का समाधान किया जाना चाहिए, यह देखना अच्छा हैकि इस समस्या पर व्यापक रूपसे ध्यान दिया गया है, इस मुद्दे पर चर्चा हो रही है और कानूनी क्षेत्र के कुछ बेहतरीन लोग इस मामले पर विचार कर रहे हैं।
राष्ट्रपति को यह जानकर खुशी हुईकि विशेष रूपसे भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों की महिलाओं केलिए न्याय वितरण प्रणाली को अधिक सुलभ और समावेशी बनाने केलिए कई कदम उठाए गए हैं। उन्होंने अदालतों के फैसलों के कार्यांवयन से संबंधित मुद्दों को रेखांकित किया और भारत के मुख्य न्यायाधीश, केंद्रीय कानून और न्याय मंत्री, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों, न्यायाधीशों, वकीलों और अन्य हितधारकों से उन मामलों से निपटने के लिए एक प्रणाली तैयार करने का आग्रह किया, जहां फैसले लागू नहीं हो पाते हैं। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डालाकि जिन लोगों ने वर्षों से मुकद्में लड़ने में अपना समय, ऊर्जा और पैसा खर्च किया है, उन्हें सही मायने में न्याय मिलना चाहिए। राष्ट्रपति ने इससे पहले रांची में भगवान बिरसा मुंडा और लांस नायक अल्बर्ट एक्का की प्रतिमाओं पर जाकर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की। उन्होंने राजभवन रांची में झारखंड के पीवीटीजी के सदस्यों केसाथ बातचीत भी की।