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कनाडा की धरती अलगाववादियों की आदर्श!

ब्लू स्टार ऑपरेशन की बरसी पर झांकी से रिश्तों पर आंच

कनाडा में खालिस्तानियों की झांकी से भारत नाराज़

Friday 9 June 2023 07:19:33 PM

शाश्वत तिवारी

शाश्वत तिवारी

tableau of the assassination of former prime minister of india indira gandhi in canada

भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैके ने हालांकि कनाडा में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकाले जाने की घटना की निंदा की है और कहा हैकि उनके देश में नफरत और हिंसा के महिमामंडन के लिए कोई जगह नहीं है, तथापि ऐसे मामलों में ऐसे औपचारिक बयान जारी कर देना ही काफी नहीं है। कनाडा को समझना होगा कि आतंकवाद, अलगाववाद और हिंसा की आग उन देशों को भी जलाती है, जो उसे हवा देते हैं। ऐसे देशों की आतंकवाद को पनाह देने से हुई दुर्गति के अनेक उदाहरण सबके सामने हैं, पाकिस्तान तो इसका ज्वलंत उदाहरण है। इसलिए उन देशों के अनुभव से समय रहते सबक लेना चाहिए। इस झांकी ने भारत-कनाडा रिश्तों में गतिरोध लाने का काम किया है। सोशल मीडिया के इस युग में कनाडा का इस झांकी पर औपचारिक बयान उसे रिश्तों में गतिरोध का प्रभाव कम नहीं कर सकता। सवाल हैकि कनाडा सरकार ने खालिस्तानियों को यह झांकी निकालने की अनुमति कैसे दी?
कनाडा में इंदिरा गांधी की हत्या की झांकी निकाली गई है और यह आयोजन अमृतसर में पवित्र स्वर्ण मंदिर पर सशस्त्र सिख चरमपंथियों के कब्जा करने और उसकी पवित्रता नष्ट करने एवं उसमें पवित्र स्वर्ण मंदिर के प्रबंधन की पूरी तरह विफलता से विवश होकर उनसे पवित्र स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने केलिए भारत की इंदिरा गांधी सरकार द्वारा 6 जून 1984 में की गई सैन्य कार्रवाई ऑपरेशन ब्लू स्टार की 39वीं बरसी से दो दिन पहले किया गया। इस झांकी में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में की गई सैन्य कार्रवाई का बदला बताया गया है। यह गौरतलब है और पूरा विश्व समुदाय जानता हैकि पवित्र स्वर्ण मंदिर को मुक्त कराने केलिए यह सैन्य कार्रवाई जरूरी हो गई थी, क्योंकि पवित्र स्वर्ण मंदिर और उसकी पवित्रता को बचाने केलिए समझाने मनाने के सारे विकल्प प्रभावहीन हो गए थे और जब यह सैनिक कार्रवाई हुई थी, तब सेना ने किसी युद्ध में ही इस्तेमाल होने वाले आग्नेयास्त्र मोर्टार गोला-बारूद घातक हथियार पवित्र स्वर्ण मंदिर परिसर से बरामद किए थे। पवित्र स्वर्ण मंदिर परिसर में इनका क्या काम था? इस ब्लू स्टार ऑपरेशन में स्वर्ण मंदिर में उस समय का सिख अलगाववादी चरमपंथी जरनैल सिंह भिंडरावाला और उसके अनेक साथी मारे गए थे। यह प्रश्न आजभी पवित्र स्वर्ण मंदिर प्रबंधन और भारत के सिख समुदाय का पीछा करता हैकि अमृतसर के पवित्र स्वर्ण मंदिर में ये घातक हथियार कैसे पहुंचे और वहां बड़े पैमाने पर सिख अलगाववादी आतंकवादियों को संरक्षण कैसे और क्यों मिला?
कनाडा के ब्रैंपटन शहर में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सुरक्षाकर्मियों द्वारा जो सिख ही थे, की गई हत्या को महिमामंडित करते हुए उसे झांकी का रूप देकर पांच किलोमीटर लंबी परेड निकाला जाना, इस बात का सबूत हैकि वहां किस हद तक भारत विरोधी अलगाववादी खालिस्तान समर्थक तत्वों को मनमानी करने की छूट मिली हुई है। कनाडा के पास भी इस सवाल का और इस सबूत का कोई उत्तर नहीं है। यह घटना इसी 4 जून की है और इसने सबका ध्यान तब खींचा, जब इसके वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने लगे और देश में इस झांकी की आलोचना हुई। इस झांकी के आयोजनकर्ताओं ने भारत के खिलाफ जमकर ज़हर उगला और ब्लू स्टार ऑपरेशन की सिख विरोधी छवि पेश की, जबकि भारत सरकार ने सिख आतंकवादी और अलगाववादियों से पवित्र स्वर्ण मंदिर को बचाने केलिए अपने सैनिकों अफसरों और राजनेताओं के बलिदान दिए और अमृतसर में पवित्र स्वर्ण मंदिर को बचाने की कीमत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जान देकर चुकानी पड़ी। कनाडा में इस झांकी का आयोजन करने वाले संगठनों के नाम तत्काल सामने नहीं आए हैं, लेकिन इतना तो तय ही है कि इसके पीछे खालिस्तान समर्थक और भारत विरोधी अलगाववादी तत्व ही हैं, जिन्हें कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने केलिए पूरा संरक्षण प्राप्त है और कनाडा सरकार दावा करती हैकि वह अपनी धरती का किसी देश के खिलाफ इस्तेमाल नहीं होने देगी।
ब्लू स्टार ऑपरेशन की 39वीं बरसी (6 जून 1984) से दो दिन पहले कनाडा में इसके खिलाफ इस झांकी को साफतौर से देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या को अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में की गई सैन्य कार्रवाई का प्रतिशोध बताया गया है। साफ है कि ये खालिस्तानी तत्व कनाडा में एवं ये और जिस देश में भी हैं, वहां भी इस तरह की भारत विरोधी अलगाववादी गतिविधियों से उस आतंकवाद से ध्यान हटाने की कोशिश करते हैं, जिसकी वजह से भारत सरकार को ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसे कदम उठाने पड़े और जिसके चंगुल में पंजाब कई साल तक जकड़ा रहा और अभी भी इस आतंकवाद की चिंगारियां मौजूद हैं। न जाने कितने परिवार इसमें बर्बाद हो गए हैं और कितने निर्दोष लोगों को जान देनी पड़ी है। अनगिनत कुर्बानियों के बाद पंजाब जैसे-तैसे उस मुश्किल दौर से निकला, मगर आगे का समय फिर वैसे ही हालात के संकेत दे रहा है। पंजाब में अलगाववादी और सशस्त्र आतंकवादी एक बार फिर देश के अंदर और बाहर सक्रिय हो रहे हैं। हालही में पंजाब में ये सब देखा जा रहा है। एक अलगाववादी और उसके विघटनकारी सहयोगियों को पंजाब में कैसे और कितने समय तक छिपाए रखा गया, यह किसने नहीं देखा? कनाडा भारत विरोधी अलगाववादियों और अपराधियों का एक बड़ा संरक्षण केंद्र बनकर उभरा है, यद्यपि यह वहां इस तरह का कोई पहला मामला नहीं है। पिछले साल भी वहां से भारत से पंजाब को अलगकर खालिस्तान बनाए जाने के सवाल पर जनमत संग्रह करवाए जाने के सुनियोजित अभियान की ख़बरें आती रही हैं। सोशल मीडिया पर शेयर किए जा रहे ताजा वीडियो को हालांकि सबसे पहले कांग्रेस नेताओं ने मुद्दा बनाया है, लेकिन गनीमत हैकि सरकार ने भी इस पर स्टैंड लिया है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सामान्य औपचारिक बयान से कहीं आगे बढ़ते हुए कहा हैकि ऐसी घटनाएं न तो भारत-कनाडा के अच्छे रिश्तों के लिए अच्छी हैं और ना ही कनाडा के लिए अच्छी हैं। उन्होंने कहा यह समझना मुश्किल हैकि वोट बैंक पॉलिटिक्स के अलावा और क्या वजह हो सकती है इन घटनाओं के पीछे। इससे यह साफ हो जाता हैकि कनाडा में भारत विरोधी हिंसा की वकालत करने वाले अतिवादियों और अलगाववादियों पर वहां की सरकार का कोई अंकुश नहीं रह गया है। गौरतलब हैकि कनाडा में भारत का सिख समुदाय वहां की सरकारों को प्रभावित करता है और वहां की सरकार और राजनीतिक दल सिख समुदाय के रहमोकरम पर रहते हैं। यह तथ्य भी गौर करने काबिल हैकि भारत अब वह भारत नहीं है, जिसका नेतृत्व ऐसे भारत विरोधी अभियानों पर चुप्पी मार दिया करता था। भारत में कनाडा के उच्चायुक्त कैमरन मैके द्वारा इस झांकी की औपचारिक रूपसे निंदा करने से यह मामला यहीं समाप्त नहीं हो जाता है। कनाडा में भारत विरोधी गतिविधियां आम होती जा रही हैं और इनका भारत-कनाडा रिश्तों पर विपरीत असर पड़ना निश्चित रूपसे अवश्यंभावी है।  

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