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Tuesday 4 July 2023 10:51:28 AM
नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने युवाओं से भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से सीखने, खुदको समृद्ध बनाने और एक शांतिपूर्ण समाज, एक राष्ट्र और दुनिया के निर्माण में योगदान देने का आह्वान किया है। आषाढ़ पूर्णिमा, धर्म चक्र प्रवर्तन दिवस समारोह पर एक रिकॉर्डेड संदेश में राष्ट्रपति ने कहाकि भगवान बुद्ध की तीन शिक्षाओं-शील, सदाचार और प्रज्ञा का पालन करके युवा पीढ़ी खुदको सशक्त बना सकती है और समाज पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। राष्ट्रपति ने कहाकि आषाढ़ पूर्णिमा पर हम भगवान बुद्ध के धम्म से परिचित हुए, जो न केवल हमारी प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है, बल्कि हमारे दैनिक जीवन की एक अनिवार्य विशेषता भी है। उन्होंने कहाकि बुद्ध धम्म के बारेमें जानने केलिए हमें सारनाथ की पवित्र भूमि पर शाक्यमुनि के दिए गए प्रथम उपदेश को पढ़ना और समझना चाहिए।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने याद कियाकि आषाढ़ पूर्णिमा पर भगवान बुद्ध ने अपने पहले उपदेश के माध्यम से धम्म के मध्य मार्ग के बीज बोए थे, यह महत्वपूर्ण हैकि इस शुभ दिन पर हम भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को अपने व्यवहार और विचार में आत्मसात करें। यह समारोह भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने नई दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय में आयोजित किया था। संस्कृति और विदेश राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने इस अवसर पर एक सामान्य व्यक्ति की बोधिसत्व के स्तर को प्राप्त करने की यात्रा का वर्णन किया। उन्होंने कहाकि यद्यपि हम सभी अपने मूल्यों से जुड़े हुए हैं, फिरभी हम अपने कार्यों केलिए स्वयं जिम्मेदार हैं, सही कार्य हमारा भाग्य बदल सकते हैं। उन्होंने बतायाकि अपने दैनिक जीवन में सरल और टिकाऊ तरीके से जीना, चेतना के सिद्धांतों का पालन करना और कार्य, भाषण, आचरण में सावधानी केसाथ और सही आजीविका का चुनाव करते हुए हम पहले सेही धम्म के सही रास्ते पर हैं।
संस्कृति राज्यमंत्री मीनाक्षी लेखी ने कहाकि यह कोविड ही था, जिसने हमें हमारे जीवन का मूल्य और भौतिक अस्तित्व केप्रति वैराग्य की भावना दिखाई, एक तरह से यह चेतना के उच्च स्तर को प्राप्त करने का मार्ग था। उन्होंने कहाकि चूंकि इस ग्रह पर हमारे पास बहुत कम समय है, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी चेतना के अनुसार सही काम करना चाहिए, जो बदले में समुदाय को मजबूत बनाएगा। समारोह में राजनयिक समुदाय के सदस्यों, बौद्ध संघों के कुलपतियों, प्रख्यात गुरुओं, विद्वानों, भिक्षुओं और ननों ने भी भाग लिया। परमपावन 12वें शैमगोन केंटिंग ताई सितुपा ने आषाढ़ पूर्णिमा के महत्व पर अपने धम्म व्याख्यान में कहाकि हम बुद्ध की पहली शिक्षाओं का जश्न मनाते हैं, उन्होंने हमें गहनतम सामान्य ज्ञान सिखाया, पीड़ा वह वस्तु है, जिससे हमें उबरना है, यह महत्वपूर्ण है इससे पहलेकि हम दुखों पर काबू पाएं, शांति सद्भाव और करुणा का अनुसरण करें, बुद्ध के शब्दों का अनुभव और एहसास करें।
आषाढ़ पूर्णिमा पर मीनाक्षी लेखी की उपस्थिति में लुंबिनी के मठ क्षेत्र में भारत के बौद्ध केंद्र के निर्माण केलिए संपर्क पुरस्कार प्रदान किया गया। भारत-नेपाल संयुक्त उद्यम कंपनी को 'अनुबंध' का प्रमाणपत्र अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ ने मेसर्स एसीसी-गोरखा को नेपाल में भगवान बुद्ध की जन्मस्थली लुंबिनी के मठ क्षेत्र में भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र के निर्माण केलिए सौंपा। गौरतलब हैकि लुंबिनी डेवलपमेंट ट्रस्ट और आईबीसी केबीच एक समझौते केबाद 25 मार्च 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा केसाथ शिलान्यास समारोह किया था और 16 मई 2022 को साइट पर आईआईसीबीसीएच की आधारशिला रखी थी। अनुबंध सौंपने से पहले लुंबिनी में आईबीसी की परियोजना भारत अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र पर एक फिल्म दिखाई गई।
आषाढ़ पूर्णिमा का दिन वाराणसी शहर के पास वर्तमान सारनाथ में डियर पार्क, रिसिपतन मृगदया में आषाढ़ की पूर्णिमा के दिन पहले पांच तपस्वी शिष्यों (पंचवर्गीय) को ज्ञान प्राप्त करने केबाद बुद्ध की पहली शिक्षा का प्रतीक है। धम्म चक्क-पवत्तन सुत्त (पाली) या धर्म चक्र प्रवर्तन सूत्र (संस्कृत) की इस शिक्षा को धर्म चक्र के प्रवर्तन के रूपमें भी जाना जाता है और इसमें चार महान सत्य और महान आठ पथ शामिल हैं। भिक्षुओं और भिक्षुणियों केलिए वर्षा ऋतु विश्राम (वर्षा वासा) भी इस दिन से शुरू होता है, जो जुलाई से अक्टूबर तक तीन चंद्र महीने तक चलता है, जिसके दौरान वे आमतौर पर गहन ध्यान केलिए समर्पित अपने मंदिरों में एक ही स्थान पर रहते हैं। इस दिन को बौद्ध और हिंदू दोनों धर्मों में अपने गुरुओं केप्रति श्रद्धा प्रकट करने केलिए गुरु पूर्णिमा के रूपमें भी मनाया जाता है।