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नई दिल्ली। भारत में 243 मिलियन यानी 24.3 करोड़ किशोर रहते हैं, जो देश की कुल आबादी का एक चौथाई हिस्सा हैं। पिछले दो दशक के दौरान देश में विकास की तेज रफ्तार से लाखों लोग गरीबी से बाहर निकले हैं। विकास और सरकारी योजनाओं से ही देश के किशोरों का स्वास्थ्य और विकास बेहतर हुआ है। हालांकि अभी भी लड़कियों के लिए काफी मुश्किलें बाकी हैं, उन्हें लैंगिक आधार पर शिक्षा और पोषण में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, कम उम्र में शादी भी उनके सामने एक बड़ी चुनौती है। सामाजिक तौर पर बहिष्कृत और जनजातीय समुदाय में तो यह भेदभाव कुछ ज्यादा ही होता है। यूनिसेफ ने 2011 में दुनिया भर के बच्चों की स्थिति पर रिपोर्ट 'किशोरावस्था: अवसर की उम्र' जारी करते हुए कहा है कि 10 से 19 साल के 1.2 अरब किशोरों पर निवेश करने से गरीबी और असमानता का यह कुचक्र जरूर मिट सकेगा।
स्थलीय स्थिति और सर्वेक्षण के आधार पर जारी इस रिपोर्ट में दावा है कि बीते दो दशक के दौरान दुनिया भर में भारी निवेश के चलते 10 साल की उम्र तक के बच्चों को काफी फायदा पहुंचा है। वैश्विक स्तर पर दुनिया भर में पांच साल से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर में 33 फीसदी की गिरावट हुई है। इससे साफ है कि कई युवाओं के जीवन को बचाया जा रहा है। दुनिया के अधिकांश हिस्सों में प्राथमिक स्कूल जाने के मामले में लड़कियां लड़कों की बराबरी कर रही हैं। लाखों बच्चों को अब स्वच्छ पेय जल और नियमित टीकाकरण, जरूरी दवाईयां भी उपलब्ध हैं।
किशोरों को प्रभावित करने वाले क्षेत्रों में शिक्षा के मामले में थोड़ा ही फायदा देखने को मिला है। सात करोड़ किशोर स्कूलों से बाहर हैं। माध्यमिक शिक्षा के लिहाज से दुनिया भर में लड़कों के मुकाबले लड़कियां काफी पीछे हैं। शिक्षा के बिना किशोर अपनी जानकारी और कौशल नहीं बढ़ा सकते हैं, जिसे हासिल करके वे अपने जीवन के दूसरे दशक में शोषण, भेदभाव और हिंसा से बच सकते हैं। उदाहरण के लिए ब्राजील में 1998 से 2008 के दौरान शिशु मृत्युदर में कमी लाकर एक साल से कम उम्र के 26 हज़ार बच्चों को बचाया गया, लेकिन इसी दौरान 15 से 19 साल के 81 हज़ार ब्राजीली किशोरों की हत्या भी हुई, जिसका एक कारण शिक्षा का अभाव है। यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथनी लेक के मुताबिक 'किशोरावस्था आधारबिंदू है जहां से हम बचपन के मिले फायदों का लाभ उठा सकते हैं या फिर शिक्षा के अभाव में उन लाभों को गंवा सकते हैं। हमें किशोरावस्था में पहुंच रहे बच्चों खासकर किशोर लड़कियों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है और शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य मापदंडों पर निवेश करके हम उनके जीवन को बेहतर बना सकते हैं।'
किशोरावस्था जीवन का गंभीर औऱ महत्वपूर्ण दौर होता है। जीवन के दूसरे दशक में गरीबी और असमानता का बोध कुछ ज्यादा ही होता है। युवा लोग जो गरीब हैं या फिर हाशिए पर हैं, किशोरावस्था में अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए होंगे। ऐसे लोगों का शोषण और अपमान भी ज्यादा होता है। लड़कियों को घरेलू मजदूरी और बाल विवाह का सामना करना होता है। चीन को छोड़कर विकासशील देशों में किसी गरीब परिवार की लड़की की 18 साल की उम्र से पहले शादी होने की संभावना किसी अमीर परिवार की लड़की से तीन गुना ज्यादा होती है। जिन लड़कियों की कम उम्र में शादी हो जाती है, उन्हें कम उम्र में ही बच्चे को जन्म देना होता है, जिससे मातृ मृत्यु दर के बढ़ने के अलावा बच्चे के कुपोषित होने की आशंका बनी रहती है। लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को घरेलू और यौन हिंसा का ज्यादा सामना करना होता है, जिससे उन्हें एचआईवी संक्रमण की आशंका भी ज्यादा होती है।
किशोरों की बड़ी आबादी विकासशील देशों में रहती है, जो करीब 88 प्रतिशत है। उनमें कई को काफी चुनौती का सामना करना पड़ता है। अतीत के मुकाबले आज के किशोर कहीं ज्यादा स्वस्थ हैं, लेकिन साथ में स्वास्थ्य संबंधी ख़तरा मसलन, दुर्घटना का शिकार होना, खाने-पीने में गड़बड़ियां, मादक पदार्थों का सेवन और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी मौजूद हैं। आकलन के मुताबिक प्रत्येक पांच में से एक किशोर मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहारगत समस्याओं की चपेट में है। रिपोर्ट के अनुसार सन् 2009 में करीब 81 मिलियन यानी 8.1 करोड़ युवाओं को नौकरी से निकाला गया। युवाओं में बेरोजगारी हर देश देश के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। तेजी से बढ़ते तकनीकी श्रम बाज़ार में जिस कुशलता की ज़रूरत है, वह ज्यादातर युवाओं के पास नहीं है। इससे युवा प्रतिभा का नुकसान तो होता ही है, साथ ही उस समुदाय के लिए भी अवसर खत्म होते हैं जिसमें वे रहते हैं। दुनिया के कई देशों में किशोरों की आबादी को जनसांख्यिकी तौर पर बेहतर संसाधन माना जा सकता है, लेकिन इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। किशोरों की शिक्षा औऱ प्रशिक्षण पर निवेश करके कोई भी देश अपने यहां बड़ा मानव संसाधन तैयार कर सकता है जिससे देश की आर्थिक विकास दर बढ़ेगी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि किशोरों को आज और आने वाले कल में कई वैश्विक चुनौतियों को सामना करना पड़ेगा। इनमें मौजूदा वक्त में दुनिया का अनिश्चित आर्थिक दृष्टिकोण, पर्यावरण संकट, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण क्षरण, अंधाधुंध शहरीकरण और पलायन, समाज में बुजुर्ग लोगों की बढ़ती संख्या, स्वास्थ्य सुविधाओं पर बढ़ता खर्च, और तेजी से बढ़ते मानवजनित संकट शामिल हैं। किशोर इन चुनौतियों का सामना बेहतर ढ़ंग से कर पाएं, इसके लिए कुछ प्रमुख क्षेत्रों में निवेश जरूरी हैं। किशोरों की स्थिति को समझने के लिए आंकड़ों के संग्रह को बेहतर बनाना होगा और उनके अधिकारों की आपूर्ति करनी होगी। उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण पर निवेश करना होगा ताकि वे खुद को गरीबी से निकाल सकें औऱ देश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे सकें। युवाओं की भागीदारी बढ़ाने के मौके मुहैया कराने होंगे। उन्हें अपनी राय जाहिर करने के लिए राष्ट्रीय युवा परिषद, युवा मंच, सामुदायिक सेवा पहल, ऑनलाइन सक्रियता और अन्य विकल्पों की तलाश करनी होगी। किशोरों की अधिकारों की रक्षा के लिए कानून, नीतियों और कार्य़क्रमों का प्रचार किया जाना चाहिए। बुनियादी सेवाओं में आ रही अड़चनों को भी दूर करना होगा। गरीबी औऱ असमानता के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए बाल संवेदनशील कार्यक्रमों को लागू करना होगा ताकि किशोरों को असमय ही व्यस्कता का भार नहीं उठाना पड़े।
एंथनी लेक कहते हैं कि दुनिया भर के लाखों लोग हमारी विस्तृत कार्ययोजना का इंतजार कर रहे हैं। हमें युवाओं को वह साधन मुहैया कराने होंगे जिससे वे जीवन को बेहतर बना सकें और आर्थिक तौर पर सक्षम नागरिक के तौर पर तैयार हो सकें, ताकि वे नागरिक जीवन के साथ साथ अपने समुदाय में सक्रिय योगदान कर सकें।