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यूरोपीय संघ की बांग्लादेश में भयंकर भूल!

जमात-ए-इस्लामी व यूरोपीय संघ की बैठक ने आग में घी डाला

बांग्लादेश में इस्लामी राज्य की कल्पना यूरोपीय मूल्यों के खिलाफ

Thursday 17 August 2023 02:01:30 PM

शाश्वत तिवारी

शाश्वत तिवारी

european union meeting with jamaat-e-islami

बांग्लादेश के चुनावी माहौल में यूरोपीय संघ प्रतिनिधिमंडल और बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी की हाल ही में हुई बैठक यूरोपीय मूल्यों पर तमाम सवाल खड़े कर रही है और बांग्लादेश में जल्द होने वाले चुनाव के संदर्भ में ये बैठक आक्रोश का एक गंभीर कारण बन गई है। बांग्लादेश में इस समय जनता का तवा गर्म है, जिसपर यहां के तमाम राजनीतिक दल रोटी सेकने की जद्दोजहद में हैं। इस बैठक का संदर्भ ग्रहण करें तो कोई दो राय नहीं हैकि इसने आग में घी का काम कर दिया है। यूरोप जिसकी आधारशिला लोकतंत्र, न्याय और स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित मानी है, उसे आज अपंजीकृत राजनीतिक दल को संरक्षण देनेके रूपमें देखा जा रहा है। मौलिक अधिकारों का यूरोपीय संघ चार्टर हर व्यक्ति की गरिमा, उसकी स्वतंत्रता, लोकतंत्र, समानता और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के अधिकार को भी निर्धारित करता है। बांग्लादेश में वर्ष 1971 में खूनी मुक्ति युद्ध के दौरान बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी ने नरसंहार, अपहरण, लूट, आगजनी और महिलाओं के खिलाफ अकल्पनीय हिंसा के कृत्यों में पाकिस्तानी सेना केसाथ सहयोग किया था, जो किसी से छिपा नहीं है। अनुमान के मुताबिक इसमें लगभग 200000 से 400000 महिलाएं बलात्कार और यौन दासता का शिकार हुईं, जो इस क्रूर संघर्ष में मोहरें बनकर रह गईं।
यूरोपीय संघ के प्रतिनिधिमंडल और बांग्लादेश के ऐसे भयावह अतीत वाले संगठन केबीच बैठक अत्याचारों से पीड़ितों के जले पर नमक छिड़कना है, उनका अपमान है और यह निराशाजनक संकेत हैकि यूरोपीय संघ अपनी राजनीतिक रणनीतियों के नाम पर इन गंभीर अन्यायों को नज़रअंदाज करने को तैयार हो सकता है, जो दीर्घकाल केलिए उसकी भयंकर भूल कहलाएगी। यह बात हैरान करने वाली हैकि यूरोपीय संघ जमात-ए-इस्लामी केसाथ दोस्ती करेगा, जिसका अतीत और वर्तमान घृणित एवं चिंताजनक है। इसका सच तो यही हुआ कि बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी का चार्टर लोकतंत्र के विपरीत लोकतांत्रिक संस्थानों के उन्मूलन के माध्यम से एक इस्लामी राज्य की स्थापना की कल्पना करता है। एक राजनीतिक दल के रूपमें बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी का पंजीकरण वहां के संविधान केसाथ असंगत होने के कारण बांग्लादेश उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। जमात-ए-इस्लामी का ऐजेंडा इस्लाम के कट्टरपंथी स्वरूप का प्रचार करना, महिलाओं का अवमूल्यन करना और ज़हरीली विचारधारा का प्रचार करना है। उसके लीडर घोषणा करते हैंकि एक महिला को बच्चों का पालन-पोषण करना चाहिए, क्योंकि कामकाजी महिलाएं अपनी प्रजनन क्षमता और नारीत्व खो देती हैं, महिलाओं को फितना को रोकने केलिए विशेष रूपसे महिलाओं केसाथ ही काम करना चाहिए। जमात-ए-इस्लामी नग्न महिलाओं को हीन घोषित करके, मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा, महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर कन्वेंशन और महिलाओं के अधिकारों को कायम रखने वाली विभिन्न घोषणाओं के सिद्धांतों का उल्लंघन करके महिलाओं पर और अधिक अत्याचार करती है, जबकि इसके उलट यूरोप की आधारशिला लोकतंत्र, न्याय और स्वतंत्रता के सिद्धांतों पर आधारित है।
जमात-ए-इस्लामी के संदर्भ में परेशान करने वाले कई तथ्यों केसाथ आतंकवाद और कट्टरपंथ की पोषक बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी चिंता को और ज्यादा बढ़ा देती है। बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी और आईएसआईएस बांग्लादेश और हरकत उल जिहाद आई इस्लामी बांग्लादेश (हुजी बी) अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा घोषित विदेशी आतंकवादी संगठनों केबीच घनिष्ठ संबंधों का एक स्पष्ट प्रमाण है। आईएसआईएस बांग्लादेश का नेता मोहम्मद कमरुल हसन जमात-ए-इस्लामी का सदस्य है। इसके अलावा बांग्लादेश और ब्रिटेन से मान्यता प्राप्त आतंकवादी समूह जमात-उल-मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के भी बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी केसाथ गहरे संबंध हैं। बांग्लोदश की प्रधानमंत्री शेख हसीना सहित राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाकर 2005 में किए गए उसपर विनाशकारी बमबारी से बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के गंभीर मंसूबों का पता चलता है। ऐसी इकाई केसाथ यूरोप का जुड़ाव एक भयावह संदेश देता है। यूरोपीय संघ का इतिहास अधिनायकवादी शासन के खिलाफ लड़ाई से चिन्हित है। जमात-ए-इस्लामी केसाथ सहयोग यूरोपीय सिद्धांतों के मूल सार का खंडन करता है। महिलाओं के अधिकारों और लोकतंत्र केलिए उस कठिन संघर्ष को कमजोर करता है, जिसके लिए यूरोपीय, पुरुष और महिलाएं समान रूपसे लड़े हैं। एक ऐसी संस्था केसाथ जुड़ाव की मांग करके जो अपनी आधी आबादी का अवमूल्यन करती है, चुपचाप उनकी विचारधारा को मंजूरी दे देना है। यह कूटनीतिक सुविधा का मामला नहीं है, बल्कि सिद्धांत का मुद्दा है।
कायदा तो यह हैकि यूरोपीय संघ को लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों और लैंगिक समानता केप्रति अपनी प्रतिबद्धता बरकरार रखनी चाहिए और राजनीतिक सुविधा केलिए इन सिद्धांतों को खतरे में नहीं डालना चाहिए। भारत इनकी दोस्ती का विरोध करता है, जो सैद्धांतिक रूपसे सही है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी कहा हैकि कहीं न कहीं यूरोप को इस मानसिकता से बाहर निकलना होगाकि यूरोप की समस्याएं दुनिया की समस्याएं हैं, लेकिन दुनिया की समस्याएं यूरोप की समस्याएं नहीं हैं। बांग्लादेश जो एक राष्ट्र है और जो अपने अतीत के गंभीर घावों से उबर रहा है, एक लोकतांत्रिक और न्यायसंगत समाज के निर्माण में सभीके समर्थन का हकदार है। हमारा व्यवहार और वास्ता उन लोगों केसाथ होना चाहिए जो सभीके मौलिक अधिकारों का सम्मान करते हैं, न कि जमात-ए-इस्लामी जैसी संस्थाओं केसाथ, जिनकी विचारधारा और कृत्य हमारे मूल्यों का घोर अपमान करते हैं। लोकतंत्र और मानवाधिकारों केलिए वैश्विक संघर्ष में यूरोप की जो घोषित भूमिका है, वह बरकरार रहनी चाहिए। उनपर दृढ़ रहना चाहिए और उन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए, जिन्हें हमने वैश्विक मानवाधिकार घोषणाओं में बड़ी मेहनत से स्थापित किया है और उन ताकतों को स्पष्ट रूपसे अस्वीकार करना चाहिए, जो इन मूल्यों को कमजोर करना चाहती हैं, जबकि यह बैठक इन मूल्यों पर घोर चिंता का कारण बनती है।

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