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जजों की लेखन सहिंता से नारी को न्याय!

अभिव्यक्ति में पत्रकार भी ज्यादा शिष्ट और सचेत बनेंगे

शीर्ष कोर्ट ने की अनुचित लैंगिक शब्दावली की विदाई

Saturday 19 August 2023 01:09:21 PM

के विक्रम राव

के विक्रम राव

supreem court

अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने महिला संबंधी विषयों पर प्रयुक्त भाषा और शब्दों को सभ्य, शालीन और सुसंस्कारी बना ही दिया। अमूमन यह वैयाकरणों और भाषाविदों का क्षेत्र है। फिलहाल प्रधान न्यायाधीश धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने 16 अगस्त 2023 को एक दूरगामी न्यायिक कदम उठाया है। इसका प्रभाव भारतीय मीडिया पर तो निश्चित ही पड़ेगा, साहित्य लेखन पर भी पड़ेगा। अब से नारी के बारे में हल्का, छिछला, सतही, ओछा लेखन अवैध होगा। खासकर हम पत्रकार ज्यादा सचेत, शिष्ट और सौम्य बनेंगे, अपनी अभिव्यक्ति प्रकट करने में। उच्चतम न्यायालय में दरअसल एक पुस्तिका का विमोचन हुआ था, जिसमें अनुचित लैंगिक शब्दों की शब्दावली है। उनकी जगह वैकल्पिक शब्द तथा वाक्यांश सुझाए गए हैं।
ये शब्द सुधार लागू होने से छेड़छाड़, वेश्या और हाउसवाइफ जैसे शब्द जल्द ही कानूनी शब्दावली से बाहर हो सकते हैं। इनकी जगह यौन उत्पीड़न, यौनकर्मी और गृह स्वामिनी (होममेकर) जैसे शब्द होंगे। पुस्तिका में कहा गया हैकि मायाविनी, वेश्या या बदचलन जैसे शब्दों का उपयोग करने के बजाय महिला शब्द का उपयोग किया जाना चाहिए। इसमें देह व्यापार और वेश्या जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर भी रोक लगाई गई है। इनके स्थान पर यौन कर्मी शब्द का इस्तेमाल किया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने भूतपूर्व के प्रधान न्यायाधीश स्वर्गीय जगदीश शरण वर्मा की समिति के आदेशों की श्रृंखला में यह एक बढ़िया कड़ी जोड़ दी है। जस्टिस जगदीश शरण वर्मा ने 23 जनवरी 2013 को अपनी रपट में कहा थाकि महिला पर अत्याचार के अपराधी पर तुरंत और कड़ी कार्रवाई की जाए। इसीके बाद निर्भया कांड में फांसी की सजा दी गई थी।
भारत का उच्चतम न्यायालय यूं भी पीड़ित महिला अर्थात यौनकर्मियों के विषय में सदैव सहानुभूति से निर्देश देता रहा है। मसलन पीड़ित नारियों को आधार कार्ड जारी करना, जिन्हें न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति बीआर गवाई के कारण 1 मार्च 2022 को यह सुविधा दी गई। उच्चतम न्यायालय ने 10 फरवरी 2009 को वेश्यावृत्ति को वैध बनाने का बेहतर विकल्प बताया था। तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा थाकि दंडात्मक कार्यवाई से वेश्यावृत्ति पर पाबंदी लगाना अगर व्यवहारिक तौर पर संभव नहीं हो तो क्या वह वेश्यावृत्ति को वैध बना सकता है? न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी और न्यायमूर्ति एके पटनायक की पीठ ने सालिसीटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम से कहाकि जब आप कानून से पाबंदी लगाने में सक्षम नहीं हैं तो आप इसे वैध क्यों नहीं बना देते? फिर जनवरी 16 2010 में शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से कहाकि वह बाल वेश्यावृत्ति रोके। कोर्ट ने कहाकि इसके लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएं और सेक्स टूरिज्म पर कड़ाई से रोक लगाई जाए, बच्चों की तस्करी और उन्हें वेश्यावृत्ति में धकेलने का यह एक प्रमुख कारण है।
कोविड के दौर में तो यौनकर्मियों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई थी। तबभी सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप किया। भारत सरकार ने 10 मार्च 2022 को आदेश दिया कि यौनकर्मियों को राशन उपलब्ध कराया जाए। न्यायालय ने कहाकि देश के प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकार प्रदत्त हैं, चाहे उसका पेशा कुछ भी हो, सरकार देश के नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं देने के लिए कर्तव्यबद्ध है। उच्चतम न्यायालय ने पिछले वर्ष 22 मई को स्पष्ट आदेश दिया थाकि यौनकर्मियों को एक व्यवसाय की मान्यता दी जाती है। यह बड़ा ऐतिहासिक फैसला था। अदालत ने 19 मई 2022 को यह माना थाकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत यौनकर्मियों सहित सभीको सम्मान और जीवन के अधिकार की गारंटी दी गई है। इस प्रकार यौनकर्मियों को कानूनी रूपसे परेशान और गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
महिला विषयक विवरणों में शब्द पर न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने एक बड़ा उम्दा उदाहरण दिया। वे बोलेकि 1908 में रचित सिविल प्रोसीजर कोड में शब्द था-Pauper, जिसके मायने हैं-कंगाल या दरिद्र। उसे हटाकर अब शब्द Indigent कर दिया गया है जिसका अर्थ है-निर्धन अथवा अकिंचन। इसी प्रकार वेश्या केलिए यौनकर्मी रखा गया है, क्योंकि जो शारीरिक और मानसिक श्रम करता है, वही श्रमिक कहलाता है, उनका व्यवसाय भी रोजी कहलाएगा, पेशा अथवा धंधा नहीं। जिन महिला विधिवेत्ताओं ने इस नई पुस्तिका की रचना में अपना योगदान किया है, वे सभी लब्ध प्रतिष्ठित महिला नेत्री हैं। कोलकता हाईकोर्ट की जज न्यायमूर्ति मौसमी भट्टाचार्य, पटना, हैदराबाद और दिल्ली हाईकोर्ट में रह चुकी हैं। कॉपीराइट कानून की निष्णात हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से शिक्षित हैं।
मद्रास हाईकोर्ट की जज रही प्रभा श्रीदेवन तमिल साहित्यकार भी हैं। बौद्धिक संपदा कानून की ज्ञाता हैं। उनका ऐतिहासिक न्यायिक निर्णय नोवर्टिस ग्लिवेक मुकदमे में आया था। ग्लिवेक एक कैंसर रोधी दवा है। इसका उपयोग क्रोनिक माइलॉयड ल्यूकेमिया (सीएमएल), सफेद रक्त कोशिकाओं के कैंसर में किया जाता है। जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट की प्रथम महिला मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल ने तो इतिहास रचा था, जब उन्होंने टाइम्स आफ इंडिया पर मुकदमा किया था, क्योंकि उसने लिखा थाकि जज गीता मित्तल फैसले देने में बड़ी देर करती हैं। टाइम्स आफ इंडिया ने इसपर उनसे माफी मांगी थी, जिससे उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से नवाजा गया था। न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह दिल्ली हाईकोर्ट की जज हैं। कई विधान सभाई कार्यों में उनकी राय विशेष मानी गई। इन जजों के साथ रहीं अकादमिक निष्णात प्रोफेसर झूमा सेन मानवाधिकारों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य कर चुकी हैं। उनका विधि आयोग तथा राष्ट्रीय महिला आयोग में बड़ा योगदान है। अतः इन विधि विदुषियों के कारण ही एक गलत भाषायी परिपाटी टूटी है। सम्यक शब्दावली बनी है। राष्ट्र का उन्हें आभार। (के विक्रम राव देश के जाने-माने पत्रकार हैं, स्तंभकार हैं। यह आलेख उनकी फेसबुक वॉलपोस्ट से साभार)।

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