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Tuesday 26 September 2023 04:47:15 PM
नई दिल्ली। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने 'वसुधैव कुटुंबकम' और जी-20 का आदर्श वाक्य 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य' की प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनुरूप समृद्धि, सुरक्षा और समावेशिता से चिन्हित भविष्य सुनिश्चित करने केलिए अपनी पूरी क्षमता का दोहन कर भारत-प्रशांत क्षेत्र की जटिलताओं से निपटने केलिए सामूहिक ज्ञान और ठोस प्रयासों का आह्वान किया है। रक्षामंत्री आज नई दिल्ली में 13वें हिंद-प्रशांत सेना प्रमुखों के सम्मेलन में उद्घाटन भाषण दे रहे थे। इस मौके पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे, 35 देशों की सेनाओं के प्रमुख और प्रतिनिधि भी मौजूद थे। रक्षामंत्री ने कहाकि हिंद-प्रशांत अब केवल समुद्र निर्माण नहीं है, बल्कि एक पूर्ण भू-रणनीतिक रचना है, यह क्षेत्र सीमा विवादों और समुद्री डकैती सहित सुरक्षा चुनौतियों जैसी जटिलताओं का सामना कर रहा है। उन्होंने अमेरिकी लेखक और वक्ता स्टीफ़न आर कोवे के एक सैद्धांतिक मॉडल के माध्यम से अपना दृष्टिकोण समझाया, जो दो सर्कलों-'सर्कल ऑफ़ कंसर्न' और 'सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस' पर आधारित है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने सर्कल ऑफ़ कंसर्न उन सभी चीजों को शामिल करता है, जिनकी व्यक्ति परवाह करता है, जिनमें ऐसी चीजें भी शामिल हैं, जिन्हें नियंत्रित किया जा सकता है और वे चीजें जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता है, इसमें वैश्विक घटनाओं, आर्थिक स्थितियों, अन्य लोगों की राय, मौसम और जीवन के कई अन्य पहलुओं जैसे बाहरी कारकों और मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस में वे चीजें शामिल हैं, जिनपर किसी का सीधा नियंत्रण होता है या कुछ हदतक प्रभाव डाला जा सकता है, इसमें आपके दृष्टिकोण, व्यवहार, निर्णय, रिश्ते और कार्य शामिल हो सकते हैं। इस मॉडल को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में लागू करते हुए रक्षामंत्री ने कहाकि ऐसे उदाहरण हो सकते हैं, जब विभिन्न राष्ट्रों के सर्कल ऑफ़ कंसर्न एकही समय पर होते हैं। उन्होंने कहाकि किसीभी देश के विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों से परे ऊंचे समुद्रों से होकर गुजरने वाले अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार मार्ग प्रासंगिक उदाहरण हैं, इससे या तो राष्ट्रों केबीच संघर्ष हो सकता है या वे पारस्परिक रूपसे जुड़ाव के नियमों को तय करके सहअस्तित्व का निर्णय ले सकते हैं, इन सर्किलों की अवधारणा रणनीतिक सोच और प्राथमिकता के महत्व को रेखांकित करती है।
राजनाथ सिंह ने कहाकि राज्यों को यह समझना चाहिएकि वैश्विक मुद्दों में कई हितधारक शामिल हैं और कोईभी देश इन चुनौतियों का समाधान अकेले नहीं कर सकता। उन्होंने व्यापक अंतर्राष्ट्रीय समुदाय केसाथ जुड़ने और एकही समय पर होनेवाले 'सर्कल ऑफ़ कंसर्न' के भीतर आम चिंताओं से निपटने केलिए कूटनीति, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और संधियों के माध्यम से सहयोगात्मक रूपसे काम करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने समुद्री कानून पर संयुक्तराष्ट्र सम्मेलन 1982 को ऐसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते का एक अच्छा उदाहरण करार दिया, जो समुद्री गतिविधियों केलिए कानूनी ढांचा स्थापित करता है और विभिन्न देशों के एकही समय पर होनेवाले सर्कल ऑफ़ कंसर्न से उत्पन्न मुद्दों का समाधान करता है। रक्षामंत्री का मत थाकि राज्यों को वैश्विक मंच पर राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा देने केलिए अपने सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस की पहचान करनी चाहिए और उसका विस्तार करना चाहिए। उन्होंने कहाकि इसमें साझेदारी बनाना, क्षेत्रीय संगठनों में भाग लेना और रणनीतिक रूपसे राजनयिक, आर्थिक या सैन्य उपकरणों को नियोजित करना शामिल हो सकता है।
रक्षामंत्री ने कहाकि यह सम्मेलन एक अभ्यास है, जहां हम सभी अपने सर्कल ऑफ़ कंसर्न में सामंजस्य बिठाते हुए अपने सर्कल ऑफ़ इन्फ्लुएंस का विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। राजनाथ सिंह ने आईपीएसीसी, हिंद-प्रशांत सेनाओं के प्रबंधन सेमिनार और सीनियर एनलिस्टेड लीडर्स फोरम को क्षेत्र में भूमि बलों की सबसे बड़ी विचार-मंथन घटनाओं में से एक करार दिया। उन्होंने कहाकि ये आयोजन एक साझा दृष्टिकोण केप्रति सामान्य दृष्टिकोण बनाने और सभी केलिए सहयोगात्मक सुरक्षा की भावना में साझेदारी बनाने और मजबूत करने का एक अनूठा अवसर प्रदान करते हैं। रक्षामंत्री ने साझा सुरक्षा और समृद्धि की खोज में स्वतंत्र, खुले, समावेशी और नियम आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र केलिए भारत के रुख को दोहराया। उन्होंने 'नेबरहुड फर्स्ट' को प्राचीनकाल से भारत की संस्कृति की आधारशिला के रूपमें परिभाषित किया। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूरदर्शिता को दोहराते हुए कहाकि इस क्षेत्र केप्रति भारत का दृष्टिकोण उसकी एक्ट ईस्ट नीति से परिभाषित है, हिंद-प्रशांत में हमारा जुड़ाव पांच एस पर आधारित है-सम्मान, संवाद, सहयोग शांति और समृद्धि।
राजनाथ सिंह ने कहाकि मित्र देशों केसाथ मजबूत सैन्य साझेदारी बनाने की दिशा में भारत के प्रयास न केवल राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की प्रतिबद्धता को रेखांकित करते हैं, बल्कि सभी के सामने आने वाली वैश्विक चुनौतियों का भी समाधान करते हैं। सबसे गंभीर वैश्विक चुनौतियों में से एक जलवायु परिवर्तन के बारेमें उन्होंने कहाकि भारतीय सशस्त्र बल अपने अटूट समर्पण और दक्षता केसाथ आपदा स्थितियों में पहले प्रतिक्रियाकर्ता हैं और मानवीय सहायता और आपदा राहत प्रयासों में योगदान करते हैं। रक्षामंत्री ने सुझाव दियाकि तीन दिवसीय कार्यक्रम में एचएडीआर संचालन के दौरान पारस्परिकता बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा की जाए। उन्होंने कहाकि मौसम खराब होने की घटनाएं और प्राकृतिक आपदाएं अपवाद होने के बजाय सामान्य नई बात बन गई हैं और हमारे क्षेत्र की बड़ी चुनौतियां हैं। उन्होंने कहाकि यह हमारी जिम्मेदारी हैकि हिंद-प्रशांत के छोटे द्वीप देशों की जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताओं को वह महत्व दिया जाए, जिसके वे हकदार हैं, क्योंकि उन्हें जलवायु परिवर्तन का खामियाजा अस्तित्व के संकट के रूपमें भुगतना पड़ता है, जलवायु परिवर्तन से उनकी आर्थिक सुरक्षा को भी खतरा है।
रक्षामंत्री ने कहाकि हमारे सभी साझेदार देशों की मजबूरियों और दृष्टिकोणों को समझने के साथ-साथ विशेषज्ञता और संसाधनों को साझा करने की आवश्यकता है। राजनाथ सिंह ने कहाकि हालांकि एक बड़े समूह में सर्वसम्मत कार्य योजना तक पहुंचना एक कठिन काम है, दृढ़ संकल्प और सहानुभूति केसाथ यह असंभव नहीं है। उन्होंने हालही में संपन्न जी-20 शिखर सम्मेलन का जिक्र किया और कहाकि देशों के समूह ने सभी विकासात्मक और भू-राजनीतिक मुद्दों पर सर्वसम्मति केसाथ नई दिल्ली नेताओं की घोषणा को अपनाया, जिससे यह ऐतिहासिक और अग्रणी बन गया। भारतीय और अमेरिकी सेना 25 से 27 सितंबर 2023 तक नई दिल्ली में 35 देशों की सेनाओं के प्रमुखों और प्रतिनिधियों के तीन दिवसीय सम्मेलन 13वें आईपीएसीसी, 47वें आईपीएएमएस और 9वें एसईएलएफ की सह-मेजबानी कर रही है। इस मंच का मुख्य विषय है-'टूगैदर फॉर पीस: सस्टेनिंग पीस एंड स्टेबिलीटी इन द इंडो-पैसेफिक रीजन'।यह सम्मेलन मुख्य रूपसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र के सेना प्रमुखों और थलसेना के वरिष्ठ स्तर के नेताओं को विचारों का आदान-प्रदान करने और सुरक्षा और सम सामयिक मुद्दों पर विचार करने का एक अवसर प्रदान करेगा। मंच का मुख्य प्रयास तटीय साझेदारों केबीच आपसी समझ, संवाद और मित्रता के माध्यम से भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना होगा।