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असमंजस में फंस गए हैं नीतीश कुमार

लालू यादव केवल तेजस्वी की ताजपोशी के लिए अधीर

इंडी अलायंस के 'चेहरे' पर कहीं कोई 'खेला' न हो जाए?

Saturday 23 December 2023 05:41:38 PM

​दिनेश शर्मा

​दिनेश शर्मा

nitish kumar (file photo)

नई दिल्ली/ पटना। इंडी अलायंस के सूत्रधार नीतीश कुमार को उसके संयोजक पद के झुनझुने से खुश और चुप कर देने की कोशिश की जा रही है, जिसे राजनीतिक बोलचाल की भाषा में 'मुंशीजी' कहा जा सकता है यानी 'कोठी कुठले छूना नहीं बाकी सब घर तेरा!' इंडी अलायंस की अबतक की प्रगति तो ऐसी ही दिख रही है, जिसमें नीतीश कुमार की राहें और भी धुंधली नज़र आ रही हैं। कहने वाले कहते हैंकि कहीं ऐसा न हो कि इंडी अलायंस अंतर्विरोध से अपने मुकाम तक पहुंचने से पहले ही दम तोड़ दे। नीतीश कुमार उस जिद्दी बालक की तरह हैं, जो आकर्षक खिलौना देखकर पलट जाते हैं। उनके राजनीतिक जीवन में स्थिरता और विश्वसनीयता कभी नहीं देखी गई, मगर यह उनका परम सौभाग्य माना जाता हैकि विपरीत स्थितियों में भी उनके लिए भाग्य का छींका टूट जाया करता है। एनडीए से अलग हो जाने केबाद और कांग्रेस आरजेडी के साथ सरकार बनाने से लेकर इंडी अलायंस के सूत्रधार बनने तक तो सबकुछ ठीक था, मगर उसके बाद इंडी अलायंस में उनकी भूमिका सिमट गई है और यदि इंडी अलायंस केलिए सरकार बनाने का अवसर आ गया तो यह भी सच हैकि नीतीश कुमार देखते ही रह जाएंगे। इंडी अलायंस के नेता बनने की होड़ और भाजपा के तेजी से बढ़ते जनाधार पर नज़र रखने वालों का यहां तक दावा हैकि सबसे पहले तो लालू यादव ही नहीं चाहते हैंकि नीतीश कुमार इंडी अलायंस का प्रधानमंत्री का चेहरा बनें।
इंडी अलायंस बिहार मुख्यमंत्री की कुर्सी और प्रधानमंत्री पद के राजनीतिक झंझावात में उलझता जा रहा है। लालू यादव ने एक योजना के तहत नीतीश कुमार को बिना सुरक्षा कवच के शेर की मांद में उतार दिया है, मगर भविष्य का कुछ भरोसा नहीं। यही कारण है नीतीश कुमार आशंकित नज़र आ रहे हैंकि ऐसा न हो जाए कि माया मिली ना राम। इंडी अलायंस का भी अभीतक ना कहीं डंडा है ना झंडा है ना एजेंडा है ना दफ्तर और ना कोई चपरासी है। लोकसभा चुनाव सिरपर है और इंडी अलायंस के नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अपने प्रधानमंत्री का चेहरा भी तय नहीं कर पाए हैं, इंडी अलायंस का सूत्रधार चेहरे की प्रत्याशा में सामने खड़ा है। नीतीश युग समाप्ति की ओर ही बढ़ता दिख रहा है, मगर यह अलग बात हैकि पुरुष के भाग्य को देवता नहीं जान पाए मनुष्य की तो बात क्या है। कोई माने या न माने नीतीश कुमार ऐसे जातिगत राजनीतिज्ञ और मुख्यमंत्री बनते आ रहे हैं, जो बिहार की राजनीति में सर्वदा दूसरों की बैसाखियों पर ही राज करते आ रहे हैं। वह अपने राजनीतिक दल अकेले जेडीयू के बूते पर कभीभी बिहार के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए। उनको सबसे ज्यादा भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से राजयोग प्राप्त हुआ, तथापि उन्होंने हमेशा नैतिक मूल्यों को तार-तारकर मुख्यमंत्री की कुर्सी या केंद्र में मंत्री पद पाने केलिए जहां देखा तहां पल्टी मारी है।
नीतीश कुमार ने बिहार की राजनीति में विघटनकारी जातिवादी और राजनीतिक व्यापार करने वालों से कभी परहेज नहीं किया है, बल्कि कुर्सी केलिए उनके सामने सदैव आत्मसमर्पण किया है, यही कारण हैकि कभी शिक्षा प्रबुद्धता संस्कृति और सामाजिक जीवन से समृद्धशाली बिहार इन तीन दशकों में अराजक प्रशासन और अपराधिक राजनीति सामाजिक जीवन का पर्याय बन गया है। कांग्रेस के लाक्षागृह को समझे बिना नीतीश कुमार इंडी अलायंस के संयोजक बनाने के संकेत से बहुत प्रफुल्लित लगते हैं, मगर राजनीति में इस पद का वजूद यही हैकि कोठी कुठले छूना नहीं बाकी सब घर तेरा! सच तो यह लगता हैकि नीतीश कुमार इंडी अलायंस के संयोजक के रूपमें देश के प्रधानमंत्री बनने की उच्च महत्वाकांक्षा का शिकार हो चुके हैं। उन्हें बीच-बीच में संयोजक पद का आइना दिखाया जा रहा है, जो किसी मुंशी पद जैसा है, जिसे वे अपने लिए प्रधानमंत्री बनने का रास्ता समझ रहे हैं। वे यहभी समझने लगे हैंकि उनके साथ कहीं खेला तो नहीं हो रहा है। वस्तुत: नीतीश कुमार के एनडीए छोड़ने और बिहार में आरजेडी कांग्रेस एवं कुछ अन्य केसाथ सरकार बनाने केबाद भ्रष्टाचार में बिहार के सजायाफ्ता, अपराध एवं जातिवादी कुनबापरस्ती के विषैले राजनेता लालू यादव ने अपने पुत्र तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने केलिए नीतीश कुमार को इंडी अलायंस का देश का प्रधानमंत्री चेहरा बनवाने का सब्जबाग़ दिखाया है, यह क्षणभंगुर है, जिसमें नीतीश कुमार फंस चुके हैं।
लालू यादव की रणनीतिक कोशिश हैकि नीतीश कुमार को जल्द से जल्द इंडी अलायंस अपना चेहरा संयोजक घोषित कर दे ताकि नीतीश कुमार उनके पुत्र तेजस्वी यादव केलिए बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दें। नीतीश कुमार को यह गलतफहमी हैकि वे ही इंडी अलायंस के सर्वेसर्वा हैं, मगर नरेंद्र मोदी और भाजपा के सामने इंडी अलायंस कितना टिक पाएगा या नीतीश कुमार का जेडीयू बिहार में लोकसभा चुनाव जीत भी पाएगा, इसमें सभी को भारी संशय है। सच तो यह माना जा रहा हैकि नीतीश कुमार अब न इधर के हैं और न उधर के। भाजपा नेतृत्व स्पष्ट कर चुका हैकि उनके लिए भाजपा गठबंधन के दरवाजे बंद हो चुके हैं, लेकिन राजनीति में सब चलता है। कांग्रेस और आरजेडी ने नीतीश कुमार का मन समझाने केलिए उन्हें इंडी अलायंस के संयोजक पद का झुनझुना दिखाया हुआ है, जिसमें यह दूरतक गारंटी नहीं हैकि अगर इंडी अलायंस की सरकार बनती है तो नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाया जाएगा। कांग्रेस और आरजेडी की यह भी कोशिश हैकि लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में जदयू के सहयोग से तेजस्वी यादव की सरकार बन जाए, जिसमें उनके वो मनसूबे पूरे हो जाएं, जो वे नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते पूरे नहीं कर पा रहे हैं। कुछ हदतक यह सत्य लगता हैकि नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते लालू यादव और तेजस्वी यादव का सुखद भविष्य नहीं है और अपनी मनमर्जी नहीं चला पा रहे हैं। हां, तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने पर लालू कुनबे और कांग्रेस का मनमर्जी का राज हो जाएगा, जिसमें ये दोनों अपने राजनीतिक और भ्रष्टाचार से धन कमाने के उद्देश्य पूरे कर लेंगे, फिर नीतीश कुमार का जो हस्र हो।
कांग्रेस और आरजेडी की यह भी कोशिश लगती हैकि जेडीयू से मिलकर लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीत ली जाएं, लेकिन इसमें कई पेंच फंसे हैं। बिहार में इस समय कांग्रेस, आरजेडी और जदयू केलिए भी उतना अनुकूल राजनीतिक माहौल नहीं दिखता है। ये तीनों दल एक जगह आ भी जाएं तो आपस में सीट बंटवारा बड़ा मसला है। सवाल ये भी हैकि कितनी जनता इनके साथ जाएगी। नरेंद्र मोदी के चेहरे केसाथ एनडीए बिहार में इन तीनों दलों पर भारी नहीं, बल्कि बहुत भारी पड़ता दिख रहा है, मगर लालू यादव को इससे कोई मतलब नहीं हैकि देश में प्रधानमंत्री कौन होगा, उनकी रणनीतियां केवल तेजस्वी यादव को जल्द से जल्द और एकबार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखने की हैं और इसके लिए पिता-पुत्र बेताब हैं, इसीलिए नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का सब्जबाग़ दिखाकर उन्हें तेजस्वी यादव केलिए बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ देने को मनाया जा रहा है और हो सकता हैकि प्रधानमंत्री के सपने देख रहे नीतीश कुमार इसके लिए तैयार भी हो जाएं। बिहार में यह बात हर जगह चर्चा में हैकि क्या जदयू के सभी विधायक इसके लिए तैयार हैं, क्योंकि वे लालू यादव के कुनबे की राजनीतिक अराजकता और भ्रष्टाचार के खिलाफ चुनकर आए थे। देखना होगा कि जब देश में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद का प्रचंड चेहरा सामने है तो इंडी अलायंस अकेले बिहार में क्या चल पाएगा? यहां यह भी समझा जा रहा हैकि लालू यादव को केवल तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाने से मतलब है, जल्द से जल्द और वो भी चाहे जैसे हो और कांग्रेस राहुल गांधी को प्रधानमंत्री देखना चाहती है, नीतीश कुमार को नहीं।
लालू यादव भूल रहे हैंकि बिहार के राजनीतिक घटनाक्रम पर एनडीए और केंद्र सरकार की पूरी नज़र है, जिससे तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री बनना इतना भी आसान नहीं माना जा रहा है। राजनीति में कोई किसी का सदैव दुश्मन या दोस्त नहीं होता है। यही ऐसा क्षेत्र है, जिसमें जोड़तोड़ की सारी संभावना बनी रहती हैं। तेजस्वी यादव की बिहार का मुख्यमंत्री बनने की मुहिम नीतीश कुमार के इस्तीफे के बिना सफल नहीं हो सकती, इसीलिए लालू यादव और तेजस्वी यादव या कांग्रेस के सपने पूरे होंगे, इनपर बड़ा प्रश्न चिन्ह है। नीतीश कुमार के बारेमें कहा जाता हैकि वे ईमानदार राजनेता हैं, लेकिन वे आरजेडी केसाथ अपना सुशासन जारी नहीं रख पा रहे हैं, जिससे बिहार में फिर से राजनीतिक और प्रशासनिक अराजकता व्याप्त है। नीतीश कुमार बड़े द्वंद्व में लगते हैंकि वे लालू यादव की तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाने की रणनीति पर चलें या इंडी अलायंस में अपना राजनीतिक भविष्य सुनिश्चित करें? या इन दोनों से अपना पीछा छुड़ाएं। मौजूदा स्थितियों में इंडी अलायंस का कोई भी नेता नीतीश कुमार को इंडी अलायंस का चेहरा बनाने या मानने को तैयार नहीं लगता है।

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