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देश में 1 जुलाई से नई आपराधिक न्याय प्रणाली

'आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन में भारत का प्रगतिशील मार्ग'

केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधि कार्य विभाग का सम्मेलन

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Monday 22 April 2024 05:59:29 PM

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नई दिल्ली। केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय के विधि कार्य विभाग ने 'आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रशासन में भारत का प्रगतिशील मार्ग' विषय पर डॉ अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर जनपथ नई दिल्ली में एक दिवसीय सम्मेलन का आयोजन किया। यह सम्मेलन तीन नए आपराधिक कानून अर्थात भारतीय न्याय संहिता-2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता-2023 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम-2023 की पृष्ठभूमि में आयोजित किया गया था, जिन्हें 1 जुलाई 2024 से लागू कर दिया जाएगा। सम्मलेन में मुख्य अतिथि भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ डीवाई चंद्रचूड़ ने मुख्य भाषण देते हुए कहाकि नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता डिजिटल युग में अपराधों से निपटने केलिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है। उन्होंने कहाकि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता यहभी निर्धारित करती हैकि आपराधिक मुकद्मे तीन साल में पूरे होने चाहिएं और फैसले आरक्षित होने के 45 दिन के भीतर सुनाए जाने चाहिएं, इससे बड़े पैमाने पर लंबित मामलों को निपटाने और तेजीसे न्याय दिलाने में मदद मिलेगी।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डॉ डीवाई चंद्रचूड़ ने खुशी जताईकि वर्तमान आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए नई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 530 सभी मुकद्मों, जांच और अदालती प्रक्रिया को इलेक्ट्रॉनिक मोड में आयोजित करने की सुविधा देती है। उन्होंने विशेष रूपसे अदालती प्रक्रिया के डिजिटलीकरण और डिजिटल साक्ष्य के संदर्भ में डिजिटल युग में गोपनीयता की रक्षा के महत्व पर भी लोगों का ध्यान आकर्षित किया। सीजेआई ने कहाकि तीनों आपराधिक कानून में ऐसे प्रावधान हैं, जो हमारे समय के अनुरूप हैं, लेकिन इन कानूनों से पूरी तरह से लाभ प्राप्त करने के संदर्भ में सभी हितधारकों केलिए पर्याप्त अवसंरचना निर्माण की आवश्यकता है। उन्होंने सभी केलिए कुशल मुकद्मा प्रबंधन हेतु तकनीकी रूपसे सुसज्जित न्यायालय प्रणाली बनाने केलिए डिजिटल कोर्ट अवसंरचना के निर्माण पर भी जोर दिया। सीजेआई ने निष्कर्ष के तौरपर कहाकि कानून और उनका कार्यांवयन एक निरंतर विकसित होने वाला क्षेत्र है, किसीभी कानून या उसके कार्यांवयन के तरीके की कोई अंतिम सीमा नहीं है, हालांकि हमें समय की जरूरतों के अनुरूप सकारात्मक बदलावों को अपनाने केलिए तैयार रहना चाहिए।
कानून एवं न्याय मंत्रालय में विधि कार्य विभाग के सचिव डॉ राजीव मणि ने तीनों नए आपराधिक कानूनों के अधिनियमन की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डाला और बतायाकि ये क़ानून किस प्रकार अंग्रेजों की बनाई गई कानूनी संरचना और रूपरेखा, जिन्हें कानून का शासन स्थापित करने के दिखावटी आधार पर भारत में ब्रिटिश शासन को कायम रखने केलिए लागू किया गया था से बाहर आते हैं। उन्होंने कहाकि मौजूदा कानूनों को जिनकी उत्पत्ति औपनिवेशिक युग में हुई थी, सामने प्रस्तुत करने और राज्य नागरिक संबंध को औपनिवेशिक पूर्वाग्रहों और प्रथाओं के आधार पर नहीं, बल्कि सभी केलिए न्याय तक पहुंच के सिद्धांतों पर परिभाषित करने की आवश्यकता है। डॉ राजीव मणि ने कहाकि देश में नई आपराधिक न्याय प्रणाली को नागरिक केंद्रित बनाने के क्रम में इसमें आमूलचूल परिवर्तन करने केलिए ये नए कानून बनाए गए हैं। कानून और न्याय राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अर्जुनराम मेघवाल ने आपराधिक न्याय प्रणाली में बदलाव की आवश्यकता पर बल दिया, जिसे शुरू में औपनिवेशिक शासकों के परिप्रेक्ष्य से लागू किया गया था और इसमें भारतीय मूलभाव और लोकाचार का अभाव था। विधि कार्य विभाग की अपर सचिव डॉ अंजू राठी राणा ने सम्मेलन के उद्देश्यों को रेखांकित किया और कहाकि ये नए औपनिवेशिक कानूनी विरासत के बंधनों से मुक्ति के प्रतीक हैं।
भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि, भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, कानून और न्याय मंत्रालय के न्याय विभाग के सचिव एसकेजी रहाटे भी मुख्य वक्ताओं में थे। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने परिवर्तन के प्रति इच्छा और प्रतिबद्धता के महत्व पर जोर दिया, जो गतिशील कानूनी प्रणाली के निर्माण केलिए आवश्यक है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने परिवर्तन की ऐतिहासिक आवश्यकता, ऐसे परिवर्तनों की सराहना करने और पेश करने केलिए दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत बतलाई। एसकेजी रहाटे ने कहाकि नए आपराधिक कानूनों का प्रभावी कार्यांवयन सुनिश्चित करने केलिए ई-कोर्ट पर आधारित एकीकृत न्याय प्रणाली के निर्माण, एआई आधारित तकनीक को अपनाने आदि की आवश्यकता है। सम्मेलन के सत्रों में नए युग के अपराधों पर कानून के प्रभाव, न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को प्रभावित करने वाले प्रक्रियात्मक बदलावों और कानूनी प्रक्रिया में साक्ष्य स्वीकार्यता की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार-विमर्श किया गया। पहले तकनीकी सत्र में भारतीय न्याय संहिता 2023 के कार्यांवयन का आकलन करने और भविष्य की जरूरतों का समाधान करने केलिए तुलनात्मक दृष्टिकोण अपनाने पर गहन चर्चा हुई। इसकी अध्यक्षता दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने की। दूसरे तकनीकी सत्र में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 के प्रक्रियात्मक परिवर्तनों के प्रभाव, न्यायिक और पुलिस अधिकारी कैसे उनसे निपट सकते हैं तथा न्यायपालिका और कानून प्रवर्तन एजेंसियों के कामकाज पर इसके व्यावहारिक प्रभाव पर चर्चा की गई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा ने इस सत्र की अध्यक्षता की।
तकनीकी सत्र में भारतीय साक्ष्य अधिनियम 2023 के मुख्य पहलुओं पर चर्चा की गई जैसे-इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल दस्तावेजों/ साक्ष्यों की पहचान करना, इलेक्ट्रॉनिक सम्मन की सुविधा देना आदि। दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीडी सिंह ने इस सत्र की अध्यक्षता की। सम्मेलन में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा, न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल, दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायाधीश न्यायमूर्ति रेखा पल्ली, दिल्ली उच्च न्यायालय के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा और दिल्ली पुलिस की विशेष आयुक्त (प्रशिक्षण) छाया शर्मा भी उपस्थित थीं। न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने नए आपराधिक कानूनों के सफल कार्यांवयन केलिए संस्थागत व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। न्यायमूर्ति संजय करोल ने कहाकि प्रौद्योगिकी और उसके नागरिक केंद्रित दृष्टिकोण पर बीएनएस का विशेष जोर प्रभावी और समय पर न्याय सुनिश्चित करेगा। न्यायमूर्ति रेखा पल्ली ने कहाकि नए अधिनियम स्पष्ट परिभाषाएं प्रदान करते हैं, पहुंच सुनिश्चित करते हैं और लैंगिक समानता को बढ़ावा देते हैं। एएसजी चेतन शर्मा ने कहाकि नए कानून औपनिवेशिक विरासत का त्याग करते हुए धर्म और भारतीय मूल्यों पर आधारित न्याय प्रणाली की दिशा में आगे बढ़ते हैं। दिल्ली पुलिस की विशेष आयुक्त (प्रशिक्षण) छाया शर्मा ने नए कानूनों की परिवर्तनकारी क्षमता और पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षित करने की पहल को रेखांकित किया। उन्होंने किसीभी तलाशी और जब्ती के दौरान अनिवार्य वीडियोग्राफी तथा संगठित और असंगठित अपराध केबीच अंतर करने से जुड़े कानून के प्रावधानों का स्वागत किया। विधि कार्य विभाग की अपर सचिव डॉ अंजू राठी राणा के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ समापन सत्र की समाप्ति हुई। इस अवसर पर विभिन्न उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश, आईटीएटी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य, अधिवक्ता, शिक्षाविद, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के प्रतिनिधि, पुलिस अधिकारी, लोक अभियोजक, जिला न्यायाधीश और कानून के छात्र भी उपस्थित थे।

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