स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम
Thursday 2 May 2024 04:33:40 PM
नई दिल्ली। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के संरक्षण और अभिलेखागार प्रभाग ने अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के उपलक्ष्य में 'भारत के लोग और स्थान-एक पूर्वव्यापी' शीर्षक से एक प्रदर्शनी आयोजित की। प्रदर्शनी का उद्घाटन आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी और प्रतिष्ठित लिथोग्राफी एवं प्रिंटमेकिंग कलाकार दत्तात्रेय आप्टे ने किया, साथही कार्ल एरिक मुलर के कार्यों को प्रदर्शित करता हुआ एक कैटलॉग भी जारी किया। प्रदर्शनी में आईजीएनसीए अभिलेखागार से कार्ल एरिक मुलर के लिथोग्राफ को प्रदर्शित किया जाएगा। लिथोग्राफी एवं प्रिंटमेकिंग कलाकार दत्तात्रेय आप्टे ने इस अवसर पर अपनी कलात्मक रचनाओं के माध्यम से कार्ल एरिक मुलर केसाथ गहरे जुड़ाव की भावना व्यक्त की। उन्होंने बतायाकि कैसे कार्ल एरिक मुलर के लिथोग्राफ लोगों और उनके दैनिक जीवन के गहन अवलोकन के प्रतिबिंब हैं, जो उनके युग के समाज की एक मार्मिक झलक पेश करते हैं, उनका काम, उनके समय के समाज केलिए एक दर्पण के रूपमें काम करते हुए अभिलेखीय मूल्य रखता है और अपने युग के सार को समाहित करते हुए अपनी कला के माध्यम से भावनाओं का विशद प्रतिनिधित्व करता है। कार्ल एरिक मुलर की कृतियां 1970 के दशक में रोजमर्रा की जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाती हैं, जिनमें मजदूर, परिवहन श्रमिक, कारखाने के कर्मचारी और अपने प्राकृतिक वातावरण में मछुआरे शामिल हैं।
लिथोग्राफी कलाकार दत्तात्रेय आप्टे ने कहाकि समाजवाद से प्रभावित कार्ल एरिक मुलर ने अपने समय की चुनौतियों को गहराई से देखा व भोगा और उसे उन्होंने अपनी कला के माध्यम से चित्रित किया। दत्तात्रेय आप्टे ने व्यक्तिगत अनुभवों को शक्तिशाली कलात्मक अभिव्यक्तियों में अनुवाद करने की कलाकार की क्षमता को रेखांकित किया। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने लिथोग्राफ की विशिष्टता, दुर्लभता और सार तत्व को व्यक्त किया, इस बात पर जोर दियाकि वे सामान्य जीवन के सार को कैसे समाहित करते हैं। यह दिखाते हुएकि कार्ल एरिक मुलर अपने लिथोग्राफ के माध्यम से इस गहन शिक्षण को कैसे संप्रेषित करते हैं, उन्होंने दोहरायाकि सभी अभिव्यक्तियों को प्रचुर संसाधनों की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने सांस्कृतिक कलाकृतियों के भंडार के रूपमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के महत्व पर जोर दिया और इस प्रदर्शनी में स्पष्ट सूक्ष्मता केसाथ इसे क्यूरेट करने के महत्व पर बल दिया। उन्होंने इस तरह की प्रासंगिक प्रदर्शनी को क्यूरेट करने में उनके प्रयासों केलिए संरक्षण और अभिलेखागार टीम की सराहना की और सभी को सोशल मीडिया के माध्यम से इसके बारेमें जानकारी फैलाने केलिए प्रोत्साहित किया। डॉ सच्चिदानंद जोशी ने सभी आयुवर्ग के लोगों विशेषकर युवाओं केलिए प्रेरणा की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए इस क्षेत्र में और अधिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल देते हुए अपनी बात समाप्त की।
लिथोग्राफी प्रदर्शनी में उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों में कलानिधि डिवीजन के प्रमुख और डीन (प्रशासन) रमेश चंद्र गौड़, संस्कृति फाउंडेशन के ट्रस्टी वरुण जैन और आईजीएनसीए के पुरालेखपाल डॉ कुमार संजय झा शामिल थे। प्रोफेसर रमेश चंद्र गौड़ ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस की बधाई देते हुए इस तरह की व्यावहारिक प्रदर्शनी के आयोजन केलिए संरक्षण और अभिलेखागार प्रभाग की टीम की सराहना की। उन्होंने कला और संस्कृति को समर्पित 45 से अधिक संग्रह वाले आईजीएनसीए के सांस्कृतिक अभिलेखागार के अपार महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहाकि इस तरह की प्रदर्शनियां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अभिलेखागार को जनता केलिए सुलभ बनाने उल्लेखनीय प्रयास के रूपमें कार्य करती हैं। कार्ल एरिक मुलर के कार्यों के बारेमें उन्होंने अपने युग के ऐतिहासिक आख्यान के रूपमें उनकी भूमिका पर बल देते हुए कहाकि ये यथार्थ का एक वास्तविक चित्रण प्रस्तुत करती हैं, जो पक्षपाती ऐतिहासिक लेखनों के विपरीत है। डॉ कुमार संजय झा ने संरक्षण और अभिलेखागार प्रभाग केसाथ अंतर्राष्ट्रीय श्रम दिवस को चिह्नित करते हुए बतायाकि कार्ल एरिक मुलर के 20 मूल लिथोग्राफ के प्रदर्शन को पर्यटक दृष्टिकोण, मंदिरों और विरासत, चित्रांकन और गांव के त्योहारों जैसे विषयों में वर्गीकृत किया गया है। उन्होंने कहाकि कार्ल एरिक मुलर का भारत केसाथ गहरा संबंध था, जो बंगाल स्कूल और शांतिनिकेतन से प्रभावित था। कार्ल एरिक मुलर हाले स्कूल से जुड़े एक प्रमुख जर्मन कलाकार और विश्वस्तर पर अपनी 'समाजवादी यथार्थवाद' शैली केलिए जाने जाते हैं। डॉ कुमार संजय झा ने केके हेब्बार और ललिता लाजमी जैसे भारतीय कलाकारों केसाथ एरिक मुलर की मेल-जोल काभी उल्लेख किया, उनके साथ मिलकर उन्होंने पोर्ट्रेट बनाने केलिए सहयोग किया, साथही उनकी पुस्तक 'मीन इंडियन' में इकतीस लिथोग्राफ को प्रदर्शित किया गया।