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सुप्रीमकोर्ट में 'शाहबानो' फिर जिंदा हो गई है?

फैसले से सपा कांग्रेस टीएमसी और पर्सनल लॉ बोर्ड में सन्नाटा

राजीव सरकार की तरह मोदी सरकार नहीं उलटेगी फैसला!

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 11 July 2024 07:27:19 PM

supreem court

नई दिल्ली। हिंदुस्तान की मुस्लिम राजनीति को उलट पलट देने वाली ‘शाहबानो’ जिंदा हो गई है। कांग्रेस की राजीव गांधी सरकार ने मुस्लिम वोटों की खातिर उसे सन 1985 में जिंदा ही दफन कर दिया था। इस बार नया मामला तेलंगाना के अब्दुल समद और उसकी तलाकशुदा पत्नी का है। संक्षेप यह हैकि पारिवारिक कोर्ट ने अब्दुल समद को बीस हजार रुपए प्रतिमाह गुजारा भत्ता देनेको कहा था, लेकिन अब्दुल समद ने पारिवारिक कोर्ट के फैसले को तेलंगाना हाईकोर्ट में चुनौती दे दी। तेलंगाना हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ते के फैसले को बरकरार रखा, लेकिन गुजारा भत्ते की रकम घटाकर दस हजार रुपए प्रतिमाह कर दी। अब्दुल समद इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीमकोर्ट चला गया, जहां सुप्रीमकोर्ट ने फैसला दे दियाकि तलाकशुदा मुस्लिम ग़ैरमुस्लिम महिलाएं सीआरपीसी की धारा 125 के अंतर्गत पति से गुजारा भत्ता मांग सकती हैं और गुजारा भत्ता कोई दान नहीं है, बल्कि यह महिला का हक है, जो इस धारा के दायरे में आती हैं, इसलिए ऐसी सभी महिलाओं को यह गुजारा भत्ता देना होगा। इस मामले की सुनवाई में सुप्रीमकोर्ट के सामने यह भी प्रश्न आया थाकि सुप्रीमकोर्ट के शाहबानो फैसले को संविधान संशोधन के जरिए संसद में पलटने के बाद राजीव गांधी सरकार ने 1986 में जो मुस्लिम महिला तलाक संरक्षण अधिनियम बनाया था, उसका क्या होगा? सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि उससे सीआरपीसी की धारा 125 में दिएगए तलाकशुदा महिला के अधिकार खत्म नहीं होते हैं, इसलिए पर्सनल लॉ के अनुसार विवाह करने वाली मुस्लिम महिला के पास इन दोनों क़ानूनों में गुजारा भत्ता प्राप्त करने का अधिकार सुरक्षित है।
शाहबानो गुजारा भत्ता केस भारत में मुस्लिम महिलाओं के मामलों को गंभीर राजनीतिक विवाद को जन्म देने केलिये कुख्यात है। इसको अक्सर राजनैतिक लाभ केलिए अल्पसंख्यक वोटबैंक के तुष्टिकरण के प्रमुख उदाहरण के रूपमें प्रस्तुत किया जाता है। शाहबानो के शौहर ने टेलीग्राम के जरिए तलाक दिया था, जिसे सुप्रीमकोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया था और ऐसा करने पर अपने फैसले में शौहर को तीन वर्ष के कारावास और शाहबानो को गुजारा भत्ता देने का प्रावधान भी कर दिया था। मुस्लिम पारिवारिक कानून के अनुसार शौहर पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ़ तलाक दे सकता है। शाहबानो एक 62 वर्षीय मुसलमान महिला और पांच बच्चों की मां थी, जिसे 1978 में उसके शौहर ने तालाक दे दिया था। नए तलाक मामले में सुप्रीमकोर्ट ने तलाकशुदा मुस्लिम महिला के अधिकार और भी ज्यादा स्पष्ट कर दिए हैं, जिन्हें लेकर अभीतक मुस्लिम उलेमा और इस्लामिक सामाजिक मामलों के जानकार मुंह देखकर अपनी सुविधा मर्जी के अनुसार व्याख्याएं तय करते रहे हैं। सुप्रीमकोर्ट ने अपराध दंड संहिता की धारा 125 में निर्णय लिया जो हर किसी पर लागू होता है चाहे वो किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो। भारत के मुसलमानों के अनुसार सुप्रीमकोर्ट का यह निर्णय उनके जातीय मामलों पर अनाधिकार हस्तक्षेप है और इसपर फिरसे मुस्लिम राजनीति गरमा गई है। सुप्रीमकोर्ट के फैसले से समाजवादी पार्टी, कांग्रेस, टीएमसी और ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड में सन्नाटा पसर गया है, क्योंकि इन दोनों राजनीतिक दलों में मुसलमानों को इससे राहत देने दिलाने में कोई भी सक्षम नहीं है और राजीव गांधी सरकार की तरह नरेंद्र मोदी सरकार इस फैसले को संसद में कानून संशोधन कर पलटने वाली नहीं है।
सुप्रीमकोर्ट ने तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में सुप्रीमकोर्ट के गुजारा भत्ते पर शाहबानो के फैसले को संसद में संविधान संशोधन कर नया क़ानून बनाने के बेहद विवादित कानून को बड़ा झटका दिया है। सुप्रीमकोर्ट के नए फैसले से मुस्लिम समाज का एक वर्ग खुश है, जबकि दूसरा वर्ग बेहद नाराज है, लेकिन नाराज वर्ग के सामने इस नए क़ानून को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। वह जमाना चला गया, जब मुस्लिम समुदाय के आक्रोश के सामने झुककर राजीव गांधी सरकार ने संसद से सुप्रीमकोर्ट का फैसला पलटवा दिया था। सुप्रीमकोर्ट ने कहा हैकि सीआरपीसी की धारा 125 देश के सभी धर्मों की महिलाओं पर लागू होती है अर्थात यह एक धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है। इस फैसले से हिंदू समाज को कोई दिक्क्त नहीं है, उसे ये कानून स्वीकार है, लेकिन मुस्लिम समाज के उलेमा और राजनीतिक लोग जिस प्रकार इस फैसले के विरुद्ध प्रतिक्रिया दे रहे हैं, उनसे वह देश में अलग-थलग होते दिखाई दे रहे हैं। हालही में हुए लोकसभा चुनाव में जो मुस्लिम तुष्टिकरण और मुसलमानों का जो परिदृश्य सामने आया वह हिंदूवादी राजनीति और देश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को सूट कर रहा है। सुप्रीमकोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की इस फैसले पर देशभर में प्रशंसा हो रही है। मुस्लिम महिला अधिनियम-1986 की धारा 3 में मेहर, दहेज और संपत्ति की वापसी से संबंधित प्रावधान हैं, जबकि माना जा रहा हैकि यह नया फैसला किसी भी मुस्लिम महिला केलिए ज्यादा फायदेमंद है। देखना हैकि यह फैसला भारतीय मुस्लिम राजनीति को किस दिशा में ले जाता है। इतना तो तय हैकि भारतीय मुस्लिम महिलाओं में इसे लेकर बहुत खुशी होगी और इस बात की ज्यादा खुशी होगीकि मोदी सरकार इसे पलटने वाली नहीं है और वह मुस्लिम महिलाओं का ही पक्ष लेगी, आखिर मोदी सरकार ने ही तीन तलाक को खत्म करने का फैसला किया है।

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