स्वतंत्र आवाज़
word map

'भारतीय राजनीति विस्फोटक और चिंताजनक'

उपराष्ट्रपति ने महाराष्ट्र में विधानमंडल में गंभीर चिंता व्यक्त की

'संसद में कुछ सदस्यों का आचरण दर्दनाक और नैतिक क्षरण'

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Friday 12 July 2024 12:37:52 PM

vice president addressed the members of both houses of maharashtra legislature

मुंबई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने चिंता व्यक्त की हैकि विधायिकाओं में बहस, संवाद, विचार-विमर्श और चर्चा में व्यवधान, संसद का कामकाज रोककर राजनीति को हथियार बनाना भारतीय राजनीति केलिए गंभीर परिणाम देने वाला है। जगदीप धनखड़ महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने अपनी चिंता जारी रखते हुए कहाकि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सबकुछ ठीक नहीं है और यह बहुत दबाव में काम कर रही है, सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को ‘दोनों तरफ से सुविधाजनक पंचिंग बैग’ बनाने की प्रवृत्ति गहरी चिंता का विषय है। उपराष्ट्रपति ने इस प्रवृत्ति को अनुचित बताते हुए कहाकि जब हम कुर्सी संभालेंगे तो हमें न्यायसंगत और निष्पक्ष होना होगा। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि लोकतंत्र के मंदिर को कभी भी अपवित्र नहीं किया जाना चाहिए कहाकि आसन का सम्मान सदैव होना चाहिए, इसे अक्षुण रखने केलिए संसद और विधानसभाओं में वरिष्ठ सदस्य को आगे आना होगा।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने विधानमंडलों में लोकतांत्रिक मूल्यों और संसदीय परंपराओं का कड़ाई से पालन कराने की आवश्यकता पर भी बल दिया। उन्होंने कहाकि हाल के संसद सत्र में जिस तरह का आचरण देखा गया है वह वास्तव में दर्दनाक है, क्योंकि यह हमारे विधायी प्रवचन में महत्वपूर्ण नैतिक क्षरण को प्रदर्शित करता है। जगदीप धनखड़ ने संसद और राज्य विधानमंडलों को लोकतंत्र का ध्रुव तारा बताते हुए कहाकि संसद और विधानमंडलों के सदस्य देश के प्रकाश स्तंभ हैं और उन्हें देश के सामने अनुकरणीय आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहाकि यह स्पष्ट हैकि वर्तमान में हमारी संसद और विधानमंडलों के कामकाज में सबकुछ ठीक नहीं है, लोकतंत्र के ये मंदिर रणनीतिक व्यवधानों और अशांति का दंश झेल रहे हैं, पार्टियों के बीच बातचीत समाप्त होती जा रही है और बातचीत का स्तर भी दिन पर दिन गिरता जा रहा है। उन्होंने कहाकि सौहार्द और मेल-मिलाप को टकरावपूर्ण और प्रतिकूल रुखसे प्रतिस्थापित किया जा रहा है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि देश में लोकतांत्रिक राजनीति एक नई गिरावट देख रही है और तनाव तथा खिंचाव का माहौल व्याप्त है। उन्होंने ऐसे विस्फोटक और चिंताजनक परिदृश्य पर सभी स्तरों पर और विशेष रूपसे राजनीतिक दलों को आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता पर बल दिया। उपराष्ट्रपति ने कहाकि बुद्धि, हास्य, व्यंग्य और कटाक्ष, जो कभी विधानमंडलों में प्रवचन का अमृत हुआ करते थे आज वह हमसे दूर होते जा रहे हैं, अब हम उसके बिल्कुल उलट नकारात्मक टकराव और प्रतिकूल स्थिति देखते हैं। उपराष्ट्रपति ने आग्रह कियाकि राजनीतिक दल अपने सदस्यों में अनुशासन पैदा करें और उन सदस्यों को सम्मानित करें, जिनका राजनीतिक प्रदर्शन और विचार उत्कृष्ट रहा है, उन लोगों को नहीं जो भीड़ में शामिल होकर आसन के समक्ष आकर नारेबाजी करते हैं या कर रहे हैं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह बात भी रहस्योद्घाटित और साझा कीकि अक्सर अनेक सदस्य उनसे उनके कक्ष में मिलते हैं और उन्हें बताते हैंकि सदन की कार्यवाही को बाधित करने केलिए उन्हें अपने राजनीतिक दल से आदेश मिलता है। उन्होंने सवाल कियाकि सदन को बाधित करने का आदेश कैसे दिया जा सकता है?
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि राजनीतिक दलों के नेताओं को सोचना समझना चाहिए कि ऐसा आचरण करना उनके लिए मर्यादाहीन और स्वयं उनके लिए ख़तरनाक है। जगदीप धनखड़ ने कहाकि मर्यादा और अनुशासन लोकतंत्र का दिल और आत्मा हैं। उन्होंने कहाकि सांसद बहस करने वाले समाज का हिस्सा नहीं हैं, उन्हें ब्राउनी पॉइंट अर्जित करने की आवश्यकता नहीं है, उन्हें तो लोकतंत्र की शक्ति और भव्यता में योगदान देना होगा। उन्होंने कहाकि नैतिकता प्राचीनकाल से भारत में सार्वजनिक जीवन की पहचान रही है, नैतिकता और सदाचार मानव व्यवहार का अमृत और सार है और ये संसदीय लोकतंत्र केलिए सर्वोत्कृष्ट है। उन्होंने कहाकि लोकतांत्रिक मूल्य नियमित पोषण की मांग करते हैं, ये तभी खिलते हैं जब चारों ओर सहयोग हो और उच्च नैतिक मानक हों। शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का कड़ाई से पालन करने का आह्वान करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहाकि राष्ट्र तभी प्रगति करता है जब उसके तीन अंग-विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका अपने-अपने क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं। उन्होंने आगाह कियाकि एक संस्था की दूसरी संस्था के क्षेत्रमें घुसपैठ संभावित रूपसे परेशानी खड़ी कर सकती है। यह रेखांकित करते हुएकि कानून विधायिका और संसद का विशेष क्षेत्र है उपराष्ट्रपति ने कहाकि विधायिका संवैधानिक रूपसे राज्य के अन्य अंगों द्वारा अपने क्षेत्र में होने वाले उल्लंघनों का सर्वसम्मति से समाधान खोजने केलिए बाध्य है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने लोकतंत्र केलिए सद्भाव को जरूरी बताते हुए कहाकि हमारे लोकतंत्र के इन स्तंभों के शीर्ष पर मौजूद लोगों केबीच बातचीत की एक संरचित व्यवस्था के विकास की आवश्यकता है। उन्होंने कहाकि सदन में बहस में भाग न लेने का कोई बहाना नहीं हो सकता है। उपराष्ट्रपति ने उस परिदृश्य को अस्वीकार कर दिया, जिसमें एक सदस्य एक बिंदु पर बहस में भाग नहीं लेता है और दूसरी ओर वह अपनी गैर भागीदारी से पैसा कमाने की कोशिश करता है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यह विश्वास व्यक्त कियाकि भारत वर्ष 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की राह पर है, इस मैराथन मार्च में सबसे महत्वपूर्ण चालक राज्य और केंद्र स्तर पर सांसद हैं और उन्हें अच्छे उदाहरण केसाथ अपने क्षेत्र का नेतृत्व करना चाहिए।

हिन्दी या अंग्रेजी [भाषा बदलने के लिए प्रेस F12]