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Monday 16 September 2024 05:21:41 PM
मुंबई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सदन में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की विदेशों में जाकर देश और सरकार, संविधान एवं आरक्षण के खिलाफ झूंठी बयानबाज़ी पर गहरी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा हैकि कांग्रेस की जिस मानसिकता के कारण बाबासाहब डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर को भारत रत्न नहीं मिल सका और लगभग 10 वर्ष तक मंडल आयोग की सिफारिशें भी लागू नहीं की गईं, उसी मानसिकता से राहुल गांधी विदेशी धरती पर जाकर देश में आरक्षण समाप्त करने की अफवाहें फैला रहे हैं। जगदीप धनखड़ ने और भी कुछ नेताओं द्वारा संविधान की धज्जियां उड़ाने की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहाकि संविधान का किसी किताब की तरह दिखावा नहीं किया जा सकता, संविधान को पढ़ना चाहिए, संविधान को समझना चाहिए, संविधान को महज किताब की तरह प्रस्तुत करने और उसका प्रदर्शन करने को कोईभी संविधान केप्रति समर्पित आस्था रखने वाला व्यक्ति स्वीकार नहीं करेगा। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने मुंबई में एलफिंस्टन टेक्निकल हाईस्कूल एंड जूनियर कॉलेज में संविधान मंदिर के उद्घाटन कार्यक्रम में ये बातें कहीं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि संविधान में देशवासियों को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं, वहीं उनके मौलिक कर्तव्य भी शामिल हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य हैं-संविधान का पालन करें, राष्ट्रध्वज तथा राष्ट्रगान का सम्मान करें, स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों का पालन करें और भारत की संप्रभुता तथा अखंडता की रक्षा करें। उन्होंने कहाकि यह विडंबना हैकि देश के कुछ नेताओं की विदेश यात्राओं का एकमात्र उद्देश्य इन कर्तव्यों की शर्मनाक उपेक्षा करते हुए भारतीय संविधान और संवैधानिक रूपसे पात्रों को प्रदत्त आरक्षण की मूल भावना को सार्वजनिक रूपसे तार-तार करना है। उन्होंने कहाकि यह भी चिंता का विषय है, चिंतन का विषय है और गहन सोच-विचार का विषय हैकि कांग्रेस आरक्षण विरोधी उसी मानसिकता के पैटर्न को आगे बढ़ा रही है और संवैधानिक पद पर बैठा एक नेता विदेश में कहता हैकि आरक्षण समाप्त कर देना चाहिए? जगदीप धनखड़ ने प्रश्न कियाकि उस समय देश की सबसे बड़ी नागरिक उपाधि भारत रत्न, बाबासाहेब डॉ भीमराव रामजी अंबेडकर को क्यों नहीं दी गई, जो उन्हें 31 मार्च 1990 को दी गई, उन्हें यह सम्मान पहले क्यों नहीं दिया गया? बाबासाहेब तो तभी से भारतीय संविधान के निर्माता के रूपमें प्रसिद्ध हैं, उनकी परिकल्पना मंडल आयोग की रिपोर्ट है, जिसे पेश होने के बावजूद अगले दस वर्ष तक भी लागू नहीं किया गया, उस दशक में देश में दो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी हुए।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आरक्षण विरोधी मानसिकता पर ध्यान आकर्षित करते हुए कहाकि पंडित जवाहरलाल नेहरू देशके पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने कहा थाकि मुझे किसीभी रूपमें आरक्षण पसंद नहीं है, खासकर नौकरियों में आरक्षण। जगदीप धनखड़ ने आरक्षण समाप्त करने की बात करने वालों और इसे योग्यता के विरुद्ध मानने वालों की आलोचना की। उन्होंने आश्वस्त कियाकि आरक्षण संविधान की अंतरात्मा है, आरक्षण संविधान में सकारात्मकता केसाथ है, सामाजिक समानता लाने और असमानताएं कम करने में यह बहुत मायने रखता है, क्योंकि आरक्षण सकारात्मक कोशिश है, यह नकारात्मक नहीं है, आरक्षण किसी को अवसर से वंचित नहीं करता है, आरक्षण उन लोगों का हाथ थामता है, जो समाज के स्तंभ और ताकत हैं। ‘यहां भी बांग्लादेश हो सकता है’ जैसे बयानों की तुलना अराजकतावादी नारों से करते हुए जगदीप धनखड़ ने युवाओं से लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों पर सीधे हमले का प्रतिकार करने का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने डॉ बीआर अंबेडकर की कही बात को उद्धृत कियाकि भारत ने एकबार पहलेभी अपनेही कुछ लोगों की बेवफाई और विश्वासघात के कारण अपनी स्वतंत्रता खो दी थी। उपराष्ट्रपति ने प्रश्न कियाकि क्या इतिहास खुदको दोहराएगा? क्या भारतीय, देश को अपने पंथ से ऊपर रखेंगे या पंथ को देश से ऊपर रखेंगे? उन्होंने कहाकि लेकिन इतना तो तय हैकि अगर देश की राजनीतिक पार्टियां धर्म को देश से ऊपर रखेंगी तो हमारी आजादी फिर दूसरीबार खतरे में पड़ जाएगी और शायद हमेशा केलिए खत्म हो जाएगी।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आपातकाल को स्वतंत्र भारत के इतिहास में सबसे काला दौर बताया। उन्होंने दावा कियाकि 25 जून 1975 आजादी केबाद हमारे लोकतंत्र का सबसे काला दौर था, उसदिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नागरिकों और उनके अधिकारों के खिलाफ एक तूफान खड़ा कर दिया था, 21 महीने देश ने भयंकर उत्पीड़न सहा, हजारों नेताओं को जेल में डाल दिया गया और कानून के शासन की पूरी तरह से अवहेलना की गई। यह एक प्रतिशोधी तानाशाही थी और आतंक की कहानी सामने आई। उन्होंने कहाकि उस समय को कभी नहीं भूला जा सकता। उन्होंने कहाकि इसी बात को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2015 में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की थीकि हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाएगा। उन्होंने कहाकि हम संविधान दिवस इसलिए मनाते हैं, ताकि खुद को याद दिला सकेंकि हमारा संविधान कैसे बना, यह हमारे अधिकारों को कैसे स्थापित करता है, यह हमें कैसे सशक्त बनाता है और यह कैसे एक ऐसी व्यवस्था बनाता है, जिसमें एक साधारण पृष्ठभूमि का व्यक्ति प्रधानमंत्री बन सकता है, एक किसान का बेटा उपराष्ट्रपति बन सकता है और एक बड़ी क्षमता तथा शिष्टता वाली आदिवासी महिला, जिनका जीवन कई दुश्वारियों और जमीनी हकीकतों से गुजरा है, वह भी राष्ट्रपति बन सकती हैं।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि 25 जून को संविधान हत्या दिवस के रूपमें मनाया जाने लगा है, यह हमें तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की तानाशाही मानसिकता की याद दिलाता है, यह दिवस हर उस व्यक्ति को श्रद्धांजलि देनेका दिन है, जिसने आपातकाल की ज्यादतियों के कष्ट झेले हैं, यह भारतीय इतिहास का अबतक का सबसे काला दौर था। जगदीप धनखड़ ने राज्य के विभिन्न अंगों केबीच सत्ता के पृथक्करण की आवश्यकता और सभी अंगों को अपनी सीमाओं के भीतर काम करने की आवश्यकता पर विचार करते हुए भड़काऊ बहस से बचने केलिए न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को सर्वाधिक उचित प्लेटफॉर्म बताया, जिनका एकही उद्देश्य है, संविधान की मूल भावना की सफलता सुनिश्चित करना, आम लोगों को सभी अधिकारों की गारंटी देना और भारत को समृद्ध करने तथा फलने-फूलने में मदद करना। जगदीप धनखड़ ने कहाकि लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक आदर्शों को पोषित करने और विकसित करने केलिए राज्य के सभी अंगों को मिलकर काम करने की जरूरत है। जगदीप धनखड़ ने कहाकि हमारी संस्थाएं चाहे वह चुनाव आयोग हो या फिर जांच एजेंसियां कठिन परिस्थितियों में अपना कर्तव्य निभाती हैं, हमें अपने संस्थानों के बारेमें बेहद सचेत रहना होगा, वे मजबूत हैं, वे स्वतंत्र रूपसे काम कररहे हैं, उनपर निगरानी रखी जाती है, वे कानून के शासन के तहत काम करते हैं। उन्होंने कहाकि हमारे संस्थान एक राजनीतिक बहस या नैरेटिव का केंद्र बिंदु बन जाते हैं, जिसे पूरी तरह से टाला जा सकता है।
उपराष्ट्रपति ने देश में विपक्ष के हालात पर चिंता और चिंतन करते हुए कहाकि हम कहां पहुंच गए हैं, इसके बारे में बोलने में भी शर्म आती है। उन्होंने कहाकि यह दुखद हैकि कुछ नेताओं ने कोलकाता में एक महिला डॉक्टर से जुड़ी भयावह और बर्बर घटना को लक्षणात्मक रुग्णता के रूपमें वर्णित किया है, यह किस तरह का वर्णन है? क्या हम अपने संविधान के इस तरह के अपमान को अनदेखा या बर्दाश्त कर सकते हैं? उपराष्ट्रपति ने युवाओं से इस तरह की भावनाओं और सोच को अस्वीकार करने का आह्वान किया और कहाकि ऐसे लोग हमारी मातृभूमि भारत को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस अवसर पर महाराष्ट्र के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले, महाराष्ट्र सरकार के कौशल, रोजगार, उद्यमिता एवं नवाचार विभाग के मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा, महाराष्ट्र सरकार के कौशल, रोजगार, उद्यमिता एवं नवाचार विभाग के सचिव गणेश पाटिल, राजनेता और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।