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Monday 7 October 2024 01:31:55 PM
नई दिल्ली। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि भारत के भीतर और बाहर की शत्रु शक्तियों का एकाग्र होना चिंताजनक है, इसी प्रकार राष्ट्रविरोधी आख्यान भी। उन्होंने कहाकि राष्ट्रीय मनोदशा को प्रभावित करने केलिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि इन हानिकारक ताकतों को बेअसर किया जा सके। उपराष्ट्रपति डॉ कर्ण सिंह के सार्वजनिक जीवन में 75 वर्ष पूरे होने पर उनके सम्मान समारोह की अध्यक्षता कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने कहाकि जम्मू कश्मीर के अलावा राजस्थान में शेखावाटी और मेवाड़ के ऐतिहासिक क्षेत्र एक अलग ही दुनिया की तरह महसूस होते थे, इतनी बड़ी दूरियों को तय करने केलिए खासकर मेरी किशोरावस्था में जब यात्रा और संचार के तेज़ साधन नहीं थे, तब फिरभी एक नाम उस घोर फासले को पार करने में कामयाब रहा, एक ऐसा नाम जिसे मैं अक्सर प्रशंसा केसाथ सुनता था और वह था जम्मू कश्मीर की अध्यक्षता करनेवाले एक जोशीले युवा राजकुमार का नाम-डॉ कर्ण सिंह। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि वर्षों बाद सांसद, केंद्रीय मंत्री, डब्ल्यूबी राज्यपाल और अब उपराष्ट्रपति रहते हुए उन्हें डॉ कर्ण सिंह के अनुभवों से लाभ उठाने का सौभाग्य मिला है। उन्होंने कहाकि कई अवसरों पर उनके साथ जुड़कर उनका गहन ज्ञान और अमूल्य मार्गदर्शन मिला है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि डॉ कर्ण सिंह के बारेमें उन्हें बोलने का सौभाग्य उनके 90वें जन्मदिन पर मिला था और सार्वजनिक सेवा में उनकी यात्रा उसी दिन शुरू हुई, जिस दिन उनका जन्म हुआ था।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि डॉ कर्ण सिंह के योगदान को केवल 75 वर्ष की उनकी विरासत की व्यापकता को सीमित करना होगा। उन्होंने कहाकि फ़्रांस में जन्मे डॉ कर्ण सिंह को आलंकारिक रूपसे आग से बपतिस्मा दिया गया था, इतिहास में जिसकी गवाही और भाग लेने का दावा बहुत कम लोग कर सकते हैं, 16 साल की उम्र तक वह देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण में जम्मू कश्मीर के भारत में विलयपत्र पर हस्ताक्षर करने के गवाह बने, उन्होंने सिर्फ निरीक्षण नहीं किया, उन्होंने उस ऐतिहासिक दस्तावेज़ की नींव को मजबूत किया, 18 साल की उम्र में उन्होंने रीजेंट की भूमिका निभाई, जो एक महत्वपूर्ण अवसर था। जगदीप धनखड़ ने बतायाकि मैं केवल 20 जून 1949 को उस दृश्य की भव्यता की कल्पना कर सकता हूं, जब वह रीजेंट के रूपमें दिल्ली से श्रीनगर पहुंचे थे, हवाई अड्डे पर शेख अब्दुल्ला और उनके मंत्रिमंडल ने उनका स्वागत किया था, उस क्षण में उन्होंने न केवल खुद का, बल्कि हमारे इतिहास के एक महत्वपूर्ण मोड़ के दौरान भारत की ताकत और संप्रभुता का प्रतिनिधित्व किया था। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि शायद इस कार्यक्रम के आयोजकों के मन में 1949 का वह महत्वपूर्ण दिन था, जब उन्होंने डॉ कर्ण सिंह की 75 वर्ष की सार्वजनिक सेवा का सम्मान करने का फैसला किया। उन्होंने कहाकि यह लगभग वही समय था, जब डॉ कर्ण सिंह ने कुलीन नेपाल की राजकुमारी यशोराज्य लक्ष्मी से विवाह करके अपने निजी जीवन में एक नया अध्याय शुरू किया, साथमें उन दोनों ने अनुग्रह और गरिमा का उदाहरण प्रस्तुत किया, जिससे वे उन सभी के प्रिय बन गए, जिन्हें उनको जानने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि मेरे कई डोगरा मित्र डॉ कर्ण सिंह के व्यक्तित्व की प्रशंसा करते हैं, उनके ज्ञान और गर्मजोशी की प्रशंसा करते हैं, जबकि यशोराज्य लक्ष्मीजी को गहरे स्नेह, प्यार और सम्मान केसाथ याद किया जाता है। उन्होंने कहाकि राष्ट्र जीवन में शायद ही कोई सकारात्मक क्षेत्र हो जिसे डॉ कर्ण सिंह ने स्पर्श न किया हो, चाहे वह संसदीय लोकतंत्र या धर्म, संस्कृति, दर्शन, कूटनीति, साहित्य, वन्य जीवन, वन्य देशाटन या पर्यावरण हो, उनका योगदान विशाल और स्थायी है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि जब भारत के पूर्व राजकुमारों और देश की एकता को मजबूत करने में उनकी भूमिका का इतिहास लिखा जाएगा तो डॉ कर्ण सिंह को निस्संदेह बहुत सम्माननीय स्थान मिलेगा। जगदीप धनखड़ ने कहाकि 1967 में शाही सुख-सुविधाओं से विशेष रूपसे जम्मू कश्मीर राज्य के संवैधानिक प्रमुख से चुनावी राजनीति में नाटकीय परिवर्तन करने का उनका निर्णय एक साहसिक और दूरदर्शी कदम था, ऐसा करते हुए उन्होंने 13 मार्च 1967 को 36 वर्ष की आयु में केंद्रीय मंत्रिमंडल के सबसे कम उम्र के सदस्य बनकर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की, यह न केवल उनके करियर में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, बल्कि देशके युवाओं के आगमन का भी संकेत था। उन्होंने कहाकि जिम्मेदारी का भार उठाने और देशके भविष्य को आकार देने केलिए तत्पर डॉ कर्ण सिंह लंबे समय से अंतर धार्मिक सद्भाव के समर्थक रहे हैं, उन्होंने कई सार्वजनिक बैठकों और सम्मेलनों में इसकी मुखपत्रता की है, जिनमें से कई अच्छी तरह से प्रलेखित हैं। उन्होंने कहाकि इन वर्षों में वह आध्यात्मिकता और दर्शन के क्षेत्रमें इतने प्रमुख व्यक्ति बन गए हैंकि जबभी महान विचारकों का उल्लेख किया जाता है तो उनका नाम स्वाभाविक रूपसे उजागर होता है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहाकि विवेकानंद की बात करें तो डॉ कर्ण सिंह याद आते हैं, अरबिंदो का उल्लेख करें तो डॉ कर्ण सिंह उनके सबसे विद्वान शिष्यों में से एक के रूपमें सामने आते हैं, उनका विशाल कार्य, जिसमें अनेक पुस्तकें शामिल हैं, उनकी बौद्धिक खोज की गहराई को दर्शाता है, उन्होंने एक सच्चे कवि-दार्शनिक के तौरपर दर्शन, आध्यात्मिकता और पर्यावरण जैसे विविध विषयों की खोज की है। उन्होंने कहाकि डॉ कर्ण सिंह का अपनी मातृभाषा डोगरी केप्रति गहरा प्रेम उनके कई पुस्तकों में स्पष्ट होता है, शायद उनकी सबसे ज्यादा सराही गई उपलब्धियों में से एक भारत के राष्ट्रीय पशु बाघ के संरक्षण में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है, यदि बाघ भारत की वन्यजीव विरासत का प्रतीक बना हुआ है और उसका अस्तित्व प्रोजेक्ट टाइगर पहल के माध्यम से सुनिश्चित किया गया है तो यह काफी हदतक डॉ कर्ण सिंह की अटूट प्रतिबद्धता के कारण है। उन्होंने कहाकि इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं हैकि विचार और कार्य दोनों में उनकी दृढ़ता और ताकत केलिए उन्हें कभी-कभी प्यार से टाइगर कहा जाता है। डॉ कर्ण सिंह की सादगी, विनम्रता और हार्दिक व्यवहार की व्यापक रूपसे प्रशंसा की जाती है, उनकी उल्लेखनीय उपलब्धियों ने लगातार व्यापक हित में काम किया है, जिससे समाज और राष्ट्र दोनों को लाभ हुआ है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि शरीर और मन पर डॉ कर्ण सिंह का प्रभुत्व असाधारण है, जो उनके गहरे आंतरिक अनुशासन को दर्शाता है, उनकी उपस्थिति में कोईभी यह महसूस किए बिना नहीं रह सकता कि ऐसी सहनशक्ति, बुद्धि और विद्वता वाला व्यक्ति राजनीतिक जीवन की जटिलताओं को आसानी से पार करने में सक्षम है।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि डॉ कर्ण सिंह उन चंद लोगों में से हैं, जिन्हें 75 वर्ष से अधिक समय तक बाहरी दृष्टिकोण के साथ राजनीति के अंदरूनी सूत्र और आंतरिक फोकस केसाथ बाहरी राजनीति का लाभ मिला, इस अर्थ में वे गणतंत्र से भी पुराने हैं। उन्होंने कहाकि मैं डॉ कर्ण सिंह और उनके जैसे बुद्धिजीवियों से देश से संबंधित मुद्दों पर प्रभाव डालने की अपील के अवसर का लाभ उठाना चाहता हूं। उन्होंने कहाकि डॉ कर्ण सिंह ने सात दशक से अधिक समय तक देशके उत्थान को देखा है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि कार्यकारी शासन, कार्यपालिका के लिए विशिष्ट है, जैसे विधायिका के लिए विधान और अदालतों के लिए फैसले। उन्होंने कहाकि न्यायपालिका या विधायिका द्वारा कार्यकारी प्राधिकार का प्रयोग लोकतंत्र केसाथ-साथ संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप नहीं है, यह स्थापित स्थिति है, क्योंकि शासन केलिए कार्यपालिका ही विधायिका और अदालतों के प्रति जवाबदेह होती है। उन्होंने कहाकि न्यायपालिका द्वारा कार्यकारी शासन, न्यायशास्त्रीय और क्षेत्राधिकारिक रूपसे संवैधानिक पवित्रता से परे है, हालांकि यह पहलू लोगों का सक्रिय ध्यान आकर्षित कर रहा है और उनकी धारणा में ऐसे कई उदाहरणों का संकेत मिल रहा है। उन्होंने कहाकि यह महत्वपूर्ण पहलू डॉ कर्ण सिंह और उनके जैसे प्रतिष्ठित लोगों, बुद्धिजीवियों और शिक्षाजगत के स्तरपर गहन चिंतन की मांग करता है, इस प्रभावशाली श्रेणी को संवैधानिक सार केप्रति सम्मान सुनिश्चित करने केलिए स्वस्थ ज्ञानवर्धक राष्ट्रीय प्रवचन को उत्प्रेरित करने केलिए प्रकाशस्तंभ के रूपमें कार्य करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहाकि यह लोकतंत्र को फलने-फूलने और संपूर्ण मानवता में संवैधानिक भावना और सार को पोषित करने में पूर्ण योगदान देगा।