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विकसित भारत सपना नहीं, हमारा लक्ष्य-धनखड़

कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव-2024 में गीता ज्ञान का प्रसार

श्रीमद्भगवद् गीता से प्रेरित शासन का पंचामृत मॉडल पेश किया

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Monday 9 December 2024 01:47:58 PM

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कुरुक्षेत्र (हरियाणा)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा हैकि विकसित भारत सपना नहीं, बल्कि एक निश्चित लक्ष्य है। उपराष्ट्रपति ने कहाकि श्रीमद्भगवद् गीता के संदेश प्रत्येक नागरिक केलिए मार्गदर्शक हैं, हमें गीता के ज्ञान को याद रखना चाहिए, जहां अर्जुन की नज़र मछली पर नहीं, बल्कि लक्ष्य पर थी। उन्होंने कहाकि हमें यह सुनिश्चित करने केलिए वही दृष्टि, ध्यान और दृढ़ संकल्प चाहिएकि भारत 2047 तक या उससे भी पहले एक विकसित राष्ट्र का दर्जा प्राप्त कर ले। उपराष्ट्रपति कुरुक्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव-2024 को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहाकि साथी और सारथी की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, भारत ने बीते एक दशक में देखा है-अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति, अविश्वसनीय संस्थागत ढांचे का निर्माण और वैश्विक स्तरपर एक अद्वितीय स्थिति और सम्मान, जो कभी अकल्पनीय था। उन्होंने कहाकि भारत की आवाज़ आज बहुत मज़बूती से गूंजती है, वह एक महाशक्ति के रूपमें उभरा है। जगदीप धनखड़ ने सभीसे गीता के सार को अपनाने और सकारात्मक सोच केसाथ राष्ट्र की प्रगति में योगदान देने का आग्रह किया।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने श्रीमद्भगवद् गीता की शिक्षाओं से प्रेरित शासन के पंचामृत मॉडल की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने पांच स्तंभों के बारेमें विस्तार से बताया और कहाकि रचनात्मक संवाद, व्यक्तिगत ईमानदारी, समर्पण, करुणा और परस्पर सम्मान शासन का ‘पंचामृत’ हैं। उन्होंने कहाकि श्रीकृष्ण और अर्जुन केबीच संवाद हमें सिखाता हैकि मतभेदों को विवाद नहीं बनना चाहिए, मतभेद स्वाभाविक हैं, क्योंकि लोग अलग-अलग सोचते हैं, यहां तककि संविधान सभा में भी मतभेद थे, लेकिन उन्होंने बहस और चर्चा के ज़रिए उन्हें सुलझाया। उन्होंने कहाकि यह एक महत्वपूर्ण संदेश है और मैं उम्मीद करता हूंकि सांसद, विधानसभा सदस्य, स्थानीय प्रतिनिधि और संस्थाएं रचनात्मक संवाद पर ध्यान केंद्रित करेंगी। जगदीप धनखड़ ने कहाकि जो लोग जिम्मेदारी के पदों पर हैं, चाहे वे प्रशासन, राजनीति या अर्थशास्त्र में हों, उन्हें उदाहरण के रूपमें नेतृत्व करना चाहिए, उनके आचरण से जनता को प्रेरणा मिलनी चाहिए, क्योंकि इसका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
उपराष्ट्रपति ने कहाकि भगवान श्रीकृष्ण सिखाते हैं-यज्ञार्थ कर्मणो यानी काम व्यक्तिगत लाभ केलिए नहीं, बल्कि व्यापक भलाई केलिए होना चाहिए। उन्होंने इसी भावना केसाथ अपील कि 2047 तक विकसित भारत का निर्माण एक महान यज्ञ है, राष्ट्र के कल्याण केलिए सबको अपनी क्षमता के अनुसार इस सामूहिक प्रयास में योगदान देना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहाकि करुणा हमारी 5000 साल पुरानी संस्कृति का सार है, कोविड-19 संकट में भारत ने स्वयं इसका सामना करते हुए भी 100 से अधिक देशों को टीके उपलब्ध कराकर अपनी करुणामयी भावना का प्रदर्शन किया। उपराष्ट्रपति ने जिक्र कियाकि चाहे समुद्र में फंसे जहाजों को बचाना हो, युद्ध केबीच छात्रों को निकालना हो या भूकंप और अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं में सहायता प्रदान करना हो, भारत हमेशा सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाला राष्ट्र है और इस करुणा को हर किसीके जीवन में जगह मिलनी चाहिए। जगदीप धनखड़ ने यहभी उल्लेख कियाकि देशके भीतर और बाहर कुछ ताकतें व्यवस्थित रूपसे भारत की अर्थव्यवस्था और संस्थानों को कमजोर करने का प्रयास कर रही हैं, उनका इरादा हमारी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करना और हमारी प्रगति के मार्ग को बाधित करना है, ऐसी ताकतों को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। गीता महोत्सव में हरियाणा के राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, स्वामी ज्ञानानंद महाराज और गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।

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