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महाकुंभ में अखाड़े सनातन धर्म के परिचायक

उत्तर प्रदेश सरकार के सूचना व जनसंपर्क विभाग ने किया साझा

अखाड़ों के भव्य जुलूस और पवित्र अनुष्ठान महाकुंभ की आत्मा

स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

Thursday 23 January 2025 02:16:46 PM

akharas represent sanatan dharma in maha kumbh

प्रयागराज। भारतीय हिंदू सनातनियों के प्राचीन ऐतिहासिक महापर्व एवं इस वर्ष माँ गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम किनारे आयोजित भव्य और दिव्य महाकुंभ में अखाड़े लंबे समय से सनातन धर्म की विभिन्न परंपराओं और संप्रदायों का प्रतिनिधित्व करते हुए आजभी इसका प्रमुख और आकर्षक केंद्र बने हुए हैं। विशेषकर 2025 में आयोजित आस्था और आध्यात्म का महाकुंभ मेला भारत के आध्यात्मिक जीवन में अखाड़ों की स्थायी प्रासंगिकता का प्रमाण है। ये अखाड़े न केवल सनातन धर्म के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को संरक्षित करते हैं, बल्कि आधुनिक संवेदनाओं को अपनाते हुए समावेशिता और समानता को भी अपनाते हैं। महाकुंभ में अखाड़े लाखों श्रद्धालुओं को प्रेरित करते हैं और उन्हें आध्यात्मिक विकास, अनुशासन और एकता का मार्ग दिखाते हैं। जैसे-जैसे भव्य जुलूस निकलते हैं और पवित्र अनुष्ठान संपन्न होते हैं, अखाड़े महाकुंभ की आत्मा बन जाते हैं और श्रद्धालुओं को ईश्वर और एक-दूसरे केसाथ गहरे आध्यात्मिक संबंधों की ओर ले जाते हैं। आइए जानें-
अखाड़ा शब्द अखंड से लिया गया है, जिसका अर्थ है अविभाज्य। ये धार्मिक आदेश, जिनकी उत्पत्ति 6वीं शताब्दी में आदिगुरु शंकराचार्य के समय से मानी जाती है, आध्यात्मिक प्रथाओं और अनुष्ठानों के संरक्षक रहे हैं, जिन्होंने कुंभ मेले को आकार दिया है। अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों और नेतृत्व संरचनाओं केसाथ अखाड़े इस आयोजन के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और दुनियाभर से लाखों भक्तों को आकर्षित करते हैं। कुंभ-महाकुंभ में अखाड़े न केवल पूजा स्थल के रूपमें कार्य करते हैं, बल्कि आध्यात्मिक शिक्षा और शारीरिक प्रशिक्षण के केंद्र के रूपमें भी कार्य करते हैं। अखाड़ा प्रणाली की स्थापना दोहरे उद्देश्यों को बढ़ावा देने केलिए की गई थी-शास्त्रों के माध्यम से आध्यात्मिक शिक्षा और युद्ध कला के माध्यम से शारीरिक रक्षा। आजभी ये अखाड़े बदलते समय केसाथ तालमेल बिठाते हुए इन सिद्धांतों को कायम रखते हैं। अखाड़े का नेतृत्व करनेवाले महामंडलेश्वर यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंकि अखाड़ों के आध्यात्मिक और संगठनात्मक दोनों पहलुओं को ठीक से बनाए रखा जाए। उनका नेतृत्व उन अनुष्ठानों और जुलूसों का केंद्र बिंदु है, जो कुंभ और महाकुंभ के अनुभव को परिभाषित करते हैं।
कुंभ और महाकुंभ में शामिल होने वाले इन 13 अखाड़ों में से शैव, वैष्णव और उदासीन संप्रदाय अपने गहन आध्यात्मिक महत्व केलिए जाने जाते हैं। ये अखाड़े कुंभ और महाकुंभ की समृद्ध विविधता में योगदान देते हैं और इनमें से प्रत्येक भक्ति, पूजा और सामुदायिक जीवन पर एक अनूठा दृष्टिकोण लेकर आता है। उदाहरण केलिए शैव अखाड़ों का नेतृत्व नागा सन्यासी करते हैं, जो भगवान शिव की पूजा करते हैं और अपनी आध्यात्मिक व युद्ध कौशल केलिए जाने जाते हैं। भाले और तलवार जैसे पारंपरिक शस्त्र रखने वाले ये नागा सन्यासी कुंभ और महाकुंभ के भव्य जुलूसों एवं अनुष्ठानों में विशेष रूपसे शाही स्नान समारोहों के दौरान एक अभिन्न भूमिका निभाते हैं। शैव अखाड़ों, विशेषकर जूना अखाड़े के नागा सन्यासी कुंभ और महाकुंभ के सबसे सम्मानित प्रतिभागियों में माने जाते हैं। अपनी कठोर तप साधना और युद्ध कला में निपुणता केलिए जानेजाने वाले नागा सन्यासी कुंभ और महाकुंभ के आध्यात्मिक योद्धाओं की विरासत को आगे बढ़ाते हैं। जूना अखाड़ा अपने बड़ी संख्या में दीक्षित नागा सन्यासियों केसाथ कुंभ और महाकुंभ में एक प्रमुख आध्यात्मिक शक्ति है, जो आध्यात्मिक ज्ञान और शारीरिक अनुशासन दोनों चाहने वाले भक्तों को आकर्षित करता है। ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण अखाड़ों में से एक श्री पंच दशनाम आवाहन अखाड़ा है, जो 1200 वर्ष से कुंभ और महाकुंभ मेले का हिस्सा है।
महंत गोपाल गिरि के नेतृत्व में इस अखाड़े ने छड़ी यात्रा की पवित्र परंपरा को कायम रखा है, जिसमें दैवीय सत्ता का प्रतीक पवित्र छड़ी को ले जाया जाता है। कुंभ और महाकुंभ में आवाहन अखाड़े का योगदान प्राचीन प्रथाओं को संरक्षित करने और आधुनिक आवश्यकताओं के अनुरूप ढलने में निहित है। इसकी निरंतर उपस्थिति सनातन धर्म की आध्यात्मिक विरासत को संरक्षित करने में अखाड़ों की शाश्वत प्रासंगिकता को रेखांकित करती है। श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा और श्री पंच दिगंबर अनी अखाड़ा सहित वैष्णव अखाड़े भी कुंभ और महाकुंभ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अखाड़े भगवान विष्णु की पूजा पर ध्यान केंद्रित करते हैं, विशेष रूपसे भगवान हनुमान के रूपमें उनके अवतार पर। भगवान हनुमान की छवि वाले धर्म ध्वजा (धार्मिक ध्वज) को लहराना भक्तों पर दैवीय संरक्षण और आशीर्वाद का प्रतीक है, जो इस आयोजन के आध्यात्मिक माहौल को और भी बढ़ा देता है। महाकुंभ आध्यात्मिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है, क्योंकि पहलीबार 1000 से अधिक महिलाओं के महाकुंभ में भाग लेने वाले प्रमुख अखाड़ों में दीक्षित होने की उम्मीद है, जिनमें से कई पहले ही सन्यास में दीक्षित हो चुकी हैं, इनमें संस्कृत में पीएचडी उम्मीदवार राधेनंद भारती जैसी महिलाएं भी शामिल हैं।
अखाड़ों में महिलाओं को शामिल करना आध्यात्मिक जीवन में उनकी भूमिका की बढ़ती मान्यता को दर्शाता है, कुछ अखाड़ों ने तो महिला भिक्षुओं केलिए अलग स्थान भी बनाए हैं। कुंभ में सबसे बड़े और प्रभावशाली अखाड़ों में से एक श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा है, इसने 200 से अधिक महिलाओं को सन्यास की दीक्षा दी है और यह संख्या और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है। इसके अलावा जूना अखाड़े ने हाल हीमें अपनी महिला सन्यासियों के संगठन का नाम बदलकर संन्यासिनी श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा कर दिया है, जिससे इसे आध्यात्मिक समुदाय के भीतर एक आधिकारिक और सम्मानित पहचान मिल गई है। लैंगिक समानता को अपनाने केलिए ये अखाड़े न केवल अपनी आंतरिक संरचनाओं को नया स्वरूप दे रहे हैं, बल्कि महिलाओं को भारत के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ताने-बाने में सक्रिय रूपसे योगदान देने केलिए सशक्त भी बना रहे हैं। महा निर्वाणी अखाड़ा सबसे धनी और प्रभावशाली अखाड़ों में से एक है और यह लैंगिक सशक्तिकरण के मामले में भी अग्रणी है। महिलाओं केलिए महामंडलेश्वर का पद स्थापित करने वाले पहले अखाड़े के रूपमें यह आध्यात्मिक क्षेत्रमें लैंगिक समानता को अगले स्तरपर ले जा रहा है।
साध्वी गीता भारती और संतोष पुरी जैसी महिला महामंडलेश्वरों की भागीदारी अखाड़े की इस प्रतिबद्धता को और उजागर करती हैकि महिलाओं को आध्यात्मिक समुदाय का नेतृत्व और मार्गदर्शन करने केलिए समान अवसर दिए जाएं। महा निर्वाणी अखाड़ा लैंगिक समानता के अलावा पर्यावरण संरक्षण पर भी जोर देता है, जो सामाजिक और आध्यात्मिक जिम्मेदारी केप्रति अखाड़े की व्यापक प्रतिबद्धता को दर्शाता है। स्थिरता पर यह ध्यान आध्यात्मिक एकता के प्रतीक के रूपमें कुंभ और महाकुंभ की भूमिका के अनुरूप है, जहां पर्यावरण चेतना को आयोजन के अनुष्ठानों और गतिविधियों में तेजीसे एकीकृत किया जा रहा है। कुंभ और महाकुंभ में एक और महत्वपूर्ण विकास किन्नर अखाड़ों की बढ़ती उपस्थिति है। कुंभ और महाकुंभ एक समावेशी स्थान है, जो पारंपरिक रूपसे समाज में हाशिए पर रह रहे किन्नर समुदाय का स्वागत करता है। पहलीबार किन्नर अखाड़ा महाकुंभ में भाग ले रहा है, जो आयोजन और समुदाय दोनों केलिए एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह अखाड़ा समानता और सम्मान के सिद्धांतों का प्रतीक है, जो किन्नर समुदाय को सनातन धर्म के अन्य संप्रदायों केसाथ आध्यात्मिक अभ्यास में संलग्न होने केलिए एक मंच प्रदान करता है। गौरतलब हैकि सूचना एवं जनसंपर्क विभाग उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से यह महत्वपूर्ण जानकारी साझा की गई है।

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