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नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती के विश्वासपात्रों में भयानक दरार सामने आने के बाद उनका राजनीतिक औरनिष्ठा का संकट और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज नहीं तो कल, यह होना हीथा। यह बात तो शुरू से कहीजाती रही है कि मायावती एक न एक दिन अपने विश्वासपात्रों के नाम पर इर्द-गिर्द घेरा डाले घुसपैठियों से ही गच्चा खाएंगी औरयह कोई कम गंभीर मामला नहीं है कि मायावती के परम नजदीकी के रूप में विख्यात बाबू सिंह कुशवाहा ने मायावतीके ही अत्यंत विश्वासपात्र कहे जाने वाले राज्य के कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह, राज्य के प्रमुख सचिव गृह कुंवर फतेह बहादुरसिंह और राज्य मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी से अपनी जान को ख़तराबताया है। बाबू सिंह कुशवाहा ने मायावती को बाकायदा पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंनेयह आरोप लगाया है। आरोपित लोग, मायावती के उन खास रणनीतिकारों में हैं जो मायावती के आर्थिक मामलों से लेकर राजनीतिक और निजी मामलों तक मेंसीधा दखल रखते हैं, इसलिए मायावतीके सामने यह कोई मामूली संकट नहीं है, यदि इस मामले को किसी प्रकार दबा भी दिया जाए तो यह फिर किसी बड़े विस्फोटका रूप लेकर फिर से अवश्य सामनेआएगा।
इस घटनाक्रमपर आज जो सबसे ज्यादसक्रिय है, वह केंद्रीयजांच ब्यूरो है, जो राज्यकी राजधानी लखनऊ में तीन स्वास्थ्य अधिकारियोंडॉ विनोद आर्य, डॉ बीपी सिंहऔर डॉ वाईएस सचान की हत्याकी गंभीरता सेजांच कर रही है। इनमे डॉ वाईएस सचान की लखनऊ जेल मेंफांसी लगाकर मौत की जाँच हो रही है, इस जांच केदायरे में भी मायावती के ही खास लोगों पर शिकंजा कसा है और इनमें मायावती मंत्रिमंडल में स्वास्थ्य मंत्री रहेऔर बाद में गंभीर आरोपों के कारण मंत्रिमंडल से हटाए गए बाबू सिंह कुशवाहा मुख्यनिशाने पर हैं। माना जाता है कि बाबू सिंह कुशवाहा इस मामले में सब कुछ जानते हैं और यदिसीबीआई, कुशवाहा काकालर पकड़ती है तो उसका एक हाथ मायावती की तरफ भी बढ़ता नज़र आता है और यही इस मामले मेंदेरी की एक जड़ है, इस समय सीबीआईइसी पर काम कर रहीहै। ख़बर आई है कि सीबीआई इस घटनाक्रम से जुड़े कुछ अधिकारियों और आरोपियों का पॉलीग्राफटेस्ट कराने की तैयारी में है और ऐसा होने पर सीबीआई के हाथ और महत्वपूर्ण सुराग लगसकते हैं, जिनकी चपेटमें और भी आ सकते हैं, जिनमें मायावतीभी हो सकती हैं।
उत्तर प्रदेशमें भ्रष्टाचार को लेकर मायावती सरकार, उनके मंत्री और अनेक प्रमुख अधिकारी, राजनीतिक दलों, जांच एजंसियोंऔर मीडिया के निशाने पर हैं। स्वयं मायावती के भ्रष्टाचार के गंभीर मामलों में संलिप्त होने के आरोपों कीसुनवाई शीर्ष अदालतमें हो रही है। यही नहीं मायावती को जनसामान्य में भी एक भ्रष्टमुख्यमंत्री के रूप में देखा और माना जा रहा है। प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों का भी यही आरोप है कि उत्तर प्रदेशमें मायावती से ज्यादा भ्रष्ट मुख्यमंत्री कोई नहीं रहा। मायावती को कांग्रेस अध्यक्षसोनिया गांधी से आशा थीकि वे उनको उनके खिलाफचल रही भ्रष्टाचार की जांचों से निज़ात दिलाएंगी, लेकिन सोनिया गांधी, मायावती की केवल इतनीभर मदद कर सकीं कि उन्होंने मायावती के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने से उत्तर प्रदेश के राज्यपालको रोक दिया, नहीं तो मानिएया नहीं मानिए, उत्तर प्रदेशके राजनीतिक मानचित्र से अब तक बहुजन समाज पार्टी का सफाया हो गया होता। ऐसे ही हालातअब फिर लौट आए हैं, मायावती अपनेखिलाफ एक के बाद एक जांचों से भारी दबाव में हैं और उनके खास लोग या तो भ्रष्टाचारके आरोपों का सामना कर रहे हैं या वे अब मायावती के खिलाफ विद्रोह पर उतारू हैं।
बाबू सिंह कुशवाहा का मायावती को चिट्ठी लिखना और मायावतीके खास लोगों से अपनी जान को ख़तरा बताना यह समझने के लिए काफी है कि ऐसे हालात मेंमायावती भी सुरक्षित नहीं लगती हैं। यह मायावती की कार्यप्रणाली रही है कि उन्होंने उन लोगों को सबसे पहलेठिकाने लगाया है जो मायावती के या बहुजन समाज पार्टी के मिशन के प्रति वफादार रहे हैं।आरके चौधरी और राजबहादुर जैसे अनेक कद्दावर, संघर्षशीलदलित नेता तो बसपा के संस्थापक अध्यक्ष काशीराम के सामने ही बसपा से दूध में से मक्खी की तरह निकालकरफेंक दिए गए और काशीराम भी देखते ही रहे, मगर कुछ कर नहींपाए, अंततः वहीहुआ जो मायावती ने चाहा। मायावती की अकूत धन संपदा की चाहत नेऐसे लोगों को उनके करीब पहुंचाया जो दलाल या अपराध जगत से ताल्लुक रखते हैं, जिनकी निष्ठाएंकेवल अपने हित के प्रतिहैं और जो काम निकलते ही किसी के भीसाथ चल सकते हैं। आज इन्हीं लोगों के कारण मायावती और मायावती सरकार, कोर्ट औरकचहरी के चक्कर लगा रही है और उन्हें कोई भी राहत मिलने की गुंजाईश नहीं दिखती। रही सही कसर बाबू सिंह कुशवाहा नेपूरी कर दी है। उन्होंने मायावती को चिट्ठी लिखकर न केवल मायावती को भारी संकट मेंडाल दिया है अपितु ऐसे मौके पर बसपा में भी अस्थिरता पैदा कर दी है जब सिर पर उत्तरप्रदेश चुनाव है और उससे पहले कोर्ट ने स्थानीय निकाय चुनाव कराने का आदेश सुनाया हुआ है।
ताजा घटनाक्रम से बसपा में अब अफरा-तफरी फैलना स्वाभाविक है, क्योंकि बाबूसिंह कुशवाहा के विद्रोह के कई गंभीर मायने हैं। यदि बाबू सिंह कुशवाहा सीबीआई के गवाहबन जाते हैं, तब मायावतीके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल भरा समय होगा क्योंकि बाबू सिंह कुशवाहा को मायावती कीबहुत सारी कमजोरियों का पता है और उन्हें यह भी मालूम है कि बसपा या मायावती के पास काले धन केअसली स्रोत क्या क्या हैं। सीबीआई के लिए भी यह जरूरी हो गया है कि वह बाबू सिंह कुशवाहाकोजल्द से जल्द हासिल करे और यही नहीं वह अपने इस मजबूत गवाह की सुरक्षा भी करे जिसकेभीतर मायावती और बसपा के गंभीर से गंभीर राज छिपे हैं। बाबू सिंह कुशवाहा ने यदि अपनीहत्या की आशंका व्यक्त की है तो वह कोई गलत नहीं है, क्योंकि राजनीतिक हत्याओंका एक इतिहास है और गुप्त योजनाओं में अड़ंगा लगाने वालों या उनका पर्दाफाश करने वालों का अंजाम ऐसा हीदेखने को मिला है। बाबू सिंह कुशवाहा भी एक ऐसी ही स्थिति में पहुंच चुके हैं जिनकेकारण बसपा से जुड़ीं कई महत्वपूर्णहस्तियां बेनकाब हो सकती हैं। कैबिनेट सचिव शशांक शेखर सिंह प्रमुख सचिव गृह फतेह बहादुरसिंह और राज्य के वरिष्ठ मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ऐसे संकट से निपटने के लिए किसी भी बचाव योजना को अंजाम दे सकतेहैं, इसलिए बाबूसिंह कुशवाहा को अपनी जान की आशंका यूं ही नहीं है, कुछ न कुछतो अवश्य है ही।
इस मामले में सीबीआई अब और क्या कर रही है, यह देखना होगा। राज्य के तीन स्वास्थ्य अधिकारियोंकी हत्या से पूरा प्रदेश हिल गया था। इसके पीछे भारी भ्रष्टाचार की एक अंतहीन कहानी मानी जाती है। पहले इस मामले की जांच राज्यसरकार ने सीबीसीआईडी से करवाई और अब यह मामला केंद्रीय जांच ब्यूरो के हाथ में है।सीबीआई यह शिकायत कर चुकी है कि राज्य सरकार उसे कोई सहयोग नहीं कर रही है। सीबीआईशुरू से ही बाबू सिंह कुशवाहा पर नज़र रखे हुए है, लेकिन राज्य में राजनीतिकजटिलता के कारण इस मामले में अपेक्षित प्रगति नहीं हो पाई। सीबीआई बड़ी ही सावधानीसे इस मामले में आगे बढ़ रही है। बाबू सिंह कुशवाहा को जान से मारने की आशंका कैसेमहसूस हुई यह भी जांच का एक विषय बन गया है, चूंकि इस मामले में शीर्ष स्तर के लोगोंके नाम लिए गए हैं इसलिए मामला अबएक नाटकीय घटनाक्रम की ओर चला गया है, जिसमें आश्चर्यजनक और रोचक स्थितियां सामने होंगी, इनमें जनसामान्य के लिए सबसे ज्यादा दिलचस्पीका विषय यह होगा कि मायावती का अपने बचाव में अगला कदम क्या होगा और इसमें मायावती को क्यानुकसान उठाना पड़ सकता है।