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Tuesday 13 August 2013 09:10:53 AM
नई दिल्ली। विधि आयोग ने असाध्य रोगों से पीड़ित मरीजों की चिकित्सा (मरीज तथा डॉक्टर संरक्षण) शीर्षक से अपनी 196वीं रिपोर्ट इच्छा मृत्यु के संबंध में भेजी थी। मंत्रालय की राय, विधि तथा न्याय मंत्रालय को दी गई, जिसमें कहा गया कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय जिन कुछ कारणों से विधेयक लाने के पक्ष में नहीं है वो ये हैं-
चिकित्सक की शपथ मरीज की ऐच्छिक तथा स्वैच्छिक मृत्यु के विरूद्ध है। पीड़ा से मुक्ति दिलाने, पुनर्वास तथा असाध्य रोगों के इलाज में चिकित्सा विज्ञान की प्रगति में रूकावट पैदा होंगी। किसी व्यक्ति की किसी समय मृत्यु चाहने की इच्छा लगातार नहीं होगी और इच्छा होगी तो अवसाद की वजह से। पीड़ा की प्रवृत्ति मानसिक होती है, जो हर व्यक्ति में अलग-अलग होती है और यह बहुत कुछ पर्यावरण तथा सामाजिक कारणों पर निर्भर करती हैं। चिकित्सा विज्ञान में लगातार हो रही प्रगति ने कैंसर तथा अन्य असाध्य रोगों में होने वाली पीड़ा के प्रबंधन को संभव किया है। इसी तरह, रीढ़ की हड्डी की चोट से पीड़ित मरीज पुनर्वास के जरिए सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है और जीवन समर्थन प्रणाली की वापसी की आवश्यकता उसे नहीं होगी। मानसिक रूप से बीमार मरीज के जीवन समर्थन प्रणाली हटाने की इच्छा को मानसिक इलाज और देखभाल से ठीक किया जा सकता है। पीड़ा की मात्रा को तय करना कठिन है, क्योंकि यह सामाजिक दबाव और अन्य तौर-तरीकों पर निर्भर करता है। क्या चिकित्सक इस बात के ज्ञान और अनुभव का दावा कर सकते हैं कि बीमारी लाइलाज है और मरीज हमेशा के लिए इलाज के अयोग्य है? बिस्तर पर पड़े रहने की परिभाषा और नियमित सहायता की जरूरत चिकित्सा की दृष्टि से हमेशा संभव नहीं है। जीवन समर्थन प्रणाली को हटाने में चिकित्सक को मनोवैज्ञानिक दबाव हो सकता है।
राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री गुलाब नबी आजाद ने बताया कि दिनांक 7.3.2011 को उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में मुंबई की एक नर्स अरूणा रामचंद्र शानबाग की इच्छा मृत्यु की अपील को खारिज कर दिया था और विस्तृत दिशा निर्देश दिए थे। इसके बाद, विधि और कानून मंत्रालय के साथ विचार-विमर्श कर इच्छा मृत्यु से जुड़े विभिन्न पक्षों पर विचार हुआ और यह माना गया कि उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में व्यापक दिशा निर्देश तय किए हैं। इन दिशा निर्देशों का पालन अरूणा रामचंद्र शानबाग जैसे मामलों में कानून की तरह करना चाहिए। अभी इच्छा मृत्यु पर कोई कानून बनाने का प्रस्ताव नहीं है।