दिनेश शर्मा
लखनऊ। राष्ट्र की अनेकता में एकता की सूत्रधार बेसिक शिक्षा, कई धाराओं और धारणाओं में भटकती बेसिक शिक्षा, उत्तर प्रदेश सरकार के प्राइमरी स्कूलों में ठोकरें खाती और उपहास बनती बेसिक शिक्षा, राजनेताओं, नौकरशाहों, दलालों के भ्रष्टतंत्र से थर्राती बेसिक शिक्षा और राष्ट्रधर्म एवं राष्ट्रकर्म के लिए तरसती बेसिक शिक्षा को आज किसी बड़े सहारे की जरूरत है। वह टकटकी लगाए प्रतीक्षा कर रही है, कि कोई कर्मयोगी आए और उसके साथ मिलकर बचपन को एक जिम्मेदार एवं योग्य नागरिक बनाने की पहल करे। उसकी यह प्रतीक्षा और आशा स्वतंत्रता जैसे महा आंदोलन की है, जिसे कोई राम गोविंद चौधरी, जेपी आंदोलन की तरह चला सकता है। यह एक ऐसा कर्म है, जिसमें राजनीति से ऊपर उठकर सभी से सहयोग की अपेक्षा है, क्योंकि राम गोविंद चौधरी कोई अवतार नहीं हैं, कोई राजा नहीं हैं और कोई महापुरूष भी नहीं हैं, बल्कि एक आम नागरिक और एक असाधारण राजनेता हैं, जो संयोग से उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा और बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग के मंत्री हैं। उनका इतिहास उन्हें यह क्षमता प्रदान करता है कि वे अपनी ईमानदारी और कर्मठतापूर्ण शासन से उत्तर प्रदेश सरकार के बेसिक शिक्षा के स्कूलों से अभिभावकों एवं जनसामान्य की टूटी उम्मीदें जगा सकते हैं, तब वहां भी फिर से बेसिक शिक्षा फले-फूले और बचपन भी मुस्काए।
राम गोविंद चौधरी के व्यक्तित्व और जीवनवृत का यहां प्रमुखता से उल्लेख करना आवश्यक है और इसलिए आवश्यक है, ताकि सबके लिए यह समझना और ज्यादा आसान हो कि उनके पास जो विभाग हैं, उनका जनसामान्य के लिए राज्य की कानून व्यवस्था जैसा ही महत्व है और उनसे जो अपेक्षाएं हैं वे यूं ही नहीं हैं, बल्कि उसके खास कारण हैं और यदि उनसे ऐसी अपेक्षाएं न हों तो फिर और किनसे हों? सात बार विधायक, तीन बार उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बनने, गज़ब की संगठनात्मक क्षमता, ईमानदारी, योग्यता एवं उनके व्यक्तित्व की और भी विशेषताओं की असली परीक्षा अब शुरू हो रही है। उन्हें सिद्ध करना है कि सरकारी प्राइमरी स्कूलों में बेसिक शिक्षा का बेड़ा गर्क करने वालों और बच्चों के पुष्टाहार में ज़हर घोलने वाले ‘पौंटी चढ्ढाओं’ को कड़ी से कड़ी सजा दी गई है, यही नहीं, राम गोविंद चौधरी को यह भी सिद्ध करना है कि इन दोनों महत्वपूर्ण और अत्यंत संवेदनशील विभागों से अभिभावकों और बच्चों का उठ चुका विश्वास भी फिर से लौट आया है। राम गोविंद चौधरी से सुधार की ऐसी अपेक्षाएं कदापि नहीं होतीं, यदि उनके व्यक्तित्व की जगजाहिर विशेषताओं और उनकी सजग कार्यप्रणाली का राज-समाज में किसी को पता नहीं होता। उनके बारे में खासतौर से कहा जाता है कि अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में मंत्री तो बहुत हैं, लेकिन ‘राम गोविंद चौधरी’ बहुत ही कम हैं, इसीलिए आशा की जा रही है, कि राज्य के बेसिक शिक्षा विभाग और बाल विकास पुष्टाहार विभाग में अवश्य ही सुधार होगा, सरकार के प्राइमरी स्कूलों में बेसिक शिक्षा अपने उद्देश्यों की पटरी पर चलती होगी और पुष्टाहार से बच्चे भी मुस्कुराएंगे।
जेपी आंदोलन के संघर्षशील और युवा चेहरों में प्रमुख रहे बलिया के राम गोविंद चौधरी अपनी ईमानदारी, संगठनात्मक क्षमताओं, नेतृत्व के प्रति निष्ठा और उदारता के लिए विख्यात हैं। इन गुणों के कारण लोकनायक जयप्रकाश नारायण भी उनसे बहुत प्रभावित रहते थे। जिन्होंने देखा है, वो कहते हैं, कि जेपी उनको नाम से आवाज़ लगाकर बुलाया करते थे, इसलिए जेपी कैंप में उनका खासा महत्व था। उसी दौरान वे पहली बार विधायक भी चुने गए। राम गोविंद चौधरी, इसी प्रकार देश के पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के भी अत्यंत करीब रहे हैं और उनकी समाजवादी जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष और उसके एक मात्र विधायक भी रहे हैं। चंद्रशेखर भी राम गोविंद चौधरी की ईमानदारी, जन-समाज में उनके विश्वास, संगठनात्मक प्रभाव और सादगी के कायल थे। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी राम गोविंद चौधरी को अपना परम सहयोगी और अभिन्न सखा मानते हैं। वे मुलायम मंत्रिमंडल में दो बार कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं और अब नए समाजवादी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में भी तीसरी बार कैबिनेट मंत्री हैं। दिग्गज राजनेताओं के बीच एक साधारण नागरिक और एक असाधारण राजनेता! इन दोनों स्थितियों को राम गोविंद चौधरी ने एक साथ संभव एवं अनुकरणीय बनाया है। हिम्मत, सादगी, और त्याग के मार्ग पर चलते हुए, उन्होंने राजनीति का एक लंबा सफर तय किया है, इसलिए उनसे उम्मीदें करना लाजमी है।
समाजवादी पार्टी में अगर कुछ विवादास्पद राजनेताओं के कारण सपा नेतृत्व कभी-कभी असहज दिखाई देता है, तो राम गोविंद चौधरी जैसे समाजवादी नेता और मंत्री भी वहां हैं, जिन पर सपा नेतृत्व अत्यंत गर्व करता है और यह स्थिति समाजवादी पार्टी नेतृत्व को घेरने वाले गंभीर लोकापवादों और संकटों से सहज रखती है। उनके प्रतिद्वंदी भी कहा करते हैं, कि राम गोविंद चौधरी को एक नेता एवं एक वरिष्ठ मंत्री के रूप में जानना अलग बात है और एक राम गोविंद चौधरी को जानना दूसरी बड़ी बात है। बलियावालों के लिए राम गोविंद चौधरी का मंत्री होना उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना उनका राम गोविंद चौधरी के रूप में एक मददगार मित्र और उनके लिए सदैव आम नागरिक रहना महत्वपूर्ण है। पारदर्शी कार्यप्रणाली राम गोविंद चौधरी को दूसरे नेताओं की भीड़ से अलग करती है। उनकी कार्यप्रणाली यथार्थ पर आधारित है, वे दूसरे की समस्या को अपनी समस्या की तरह देखते हैं, इससे उन्हें लोगों का भरपूर स्नेह और सम्मान मिलता है, चाहे वे मंत्री हों या न हों। इस भौतिक युग में क्या आप मान सकते हैं, कि जिस राजनेता के पास अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए आसान एवं अनुकूल अवसर हों, उसका गांव में पैतृक आवास के अलावा, बलिया से लखनऊ तक, आज भी कहीं अपना मकान नहीं है, वह राम गोविंद चौधरी हैं, वे बलिया में भी नगरपालिका के किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहते हैं और उनके परिवार के लोग भी उनके संसाधनों में ही अपने को खुश रखते हैं।
निरक्षर से लेकर साक्षर तक सब जानते हैं, कि उत्तर प्रदेश में सरकारी प्राइमरी स्कूलों में बेसिक शिक्षा का क्या हाल है, बेसिक शिक्षा के नाम पर सरकारी स्कूलों में कितना पाखंड और अनाचार हो रहा है, सरकार के प्राइमरी स्कूलों में योग्य शिक्षक की तो अब कल्पना ही छोड़िए, अध्यापक भी नहीं हैं, जबसे सरकार ने शिक्षामित्रों का धंधा शुरू किया है, शिक्षा और भी गर्त में चली गई है, जो कुछ अध्यापक हैं भी, तो उनमें से अधिकांश ने दूसरे बेरोज़गारों को कुछ पैसा देकर उनसे अपनी जगह स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का रास्ता निकाल लिया है और खुद दूसरा व्यवसाय कर रहे हैं। बहुत से स्कूलों में अध्यापक नहीं हैं, वहां चपरासी ही बच्चों को पढ़ा रहे हैं, अर्थात जुगाड़ से सरकारी प्राइमरी स्कूल चल रहे हैं। सोचिए! अभिभावक अपने ‘भविष्य’ को शिक्षा प्रदान कराने के लिए किन और कैसी कठिनाईयों का सामना कर रहे हैं-कोई सुनने वाला नहीं है। राज्य सरकार के प्राथमिक शिक्षा प्रबंधन की शर्मनाक विफलताओं के कारण उसके नीति-नियंता एवं उसके सबसे निकटस्थ शिक्षा अधिकारी और पर्यवेक्षण के लिए बैठे जिलाधिकारी भी माने जाते हैं, जिन्होंने कभी भी उसे राष्ट्रीयकर्म और राष्ट्रधर्म की तरह नहीं लिया है, जबकि विशालकाय निर्माण परियोजनाओं के समान इसके बजट को जरूर उड़ाया जा रहा है। इसके बजट से बेसिक शिक्षा तो नहीं पल रही, अलबत्ता उसके नाम पर दलालों, राजनेताओं, नौकरशाहों और ठेकेदारों के भ्रष्टतंत्र जरुर समृद्धशाली हो रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राइमरी स्कूलों में बेसिक शिक्षा की घोर उपेक्षा होती आ रही है। शिक्षा के नाम पर निजी, कान्वेंट मिशनरी स्कूलों का वर्चस्व हो गया है, जो शिक्षा को उद्योग बनाकर अपने-अपने एजेंडे चला रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार के प्राइमरी स्कूल एक आदर्श शिक्षा मॉडल का स्थान लेने में विफल हैं, जबकि अन्य राज्यों में वहां की सरकारों ने अपने प्राइमरी स्कूलों पर काफी ध्यान दिया है। अभिभावकों में यह धारणा स्थापित हो चुकी है, कि उनका बच्चा अगर मिशनरी या कान्वेंट स्कूल में बेसिक शिक्षा ग्रहण करेगा तो ही आगे बढ़ सकेगा, वहां उसे न केवल अच्छी शिक्षा मिलेगी, अपितु अच्छे परिवारों के बच्चों में उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। सरकार के प्राइमरी स्कूलों से पढ़कर निकले लोग, महापुरूष, प्रचंड शासनकर्ता और पथ प्रदर्शक कहलाए, मगर आज अभिभावक उन सरकारी स्कूलों में प्राइमरी शिक्षा के लिए अपने बच्चों को भेजना नहीं चाहते। सरकारी प्राइमरी स्कूलों में वही बच्चे जा रहे हैं, जिनके पास संसाधान नही हैं, ग़रीब हैं। सरकार के बेसिक शिक्षा प्रबंधन की विफलता का यह ज्वलंत प्रमाण है, कि भारत सरकार को देश में प्राइमरी शिक्षा को और ज्यादा प्रभावशाली बनाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान चलाना पड़ा, मगर यह अभियान भी प्राइमरी शिक्षा को नहीं, बल्कि भ्रष्ट तंत्र को पाल रहा है। यह अत्यंत निराशाजनक और दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है, जिसका सामना बेसिक शिक्षा मंत्री राम गोविंद चौधरी को करना है।
बेसिक शिक्षा देश या समाज की प्रधान रीढ़ मानी जाती है। राज्य के बेसिक शिक्षा विभाग एवं बेसिक शिक्षा को पटरी पर लाने की जो भी कोशिशें हो रही हैं, उनकी सफलता में शिक्षा अधिकारियों, शिक्षकों, कर्मचारियों के रचनात्मक सहयोग की बहुत ही आवश्यकता है, जिसकी स्थिति आज निराशाजनक है। हालांकि सरकार के बहुत से प्राइमरी बेसिक स्कूल गुणवत्तायुक्त प्रारंभिक शिक्षा प्रदान करने में किसी से कम नहीं रहे हैं, मगर अब स्थिति यह है, कि सरकार के प्राइमरी स्कूलों से अभिभावकों का विश्वास उठा हुआ है। अभिभावक तो चाहते हैं, कि राज्य के सरकारी स्कूलों में बेसिक शिक्षा का ऐसा माहौल विकसित हो, जिसमें अभिभावकों में अपने बच्चों को इन स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने के प्रति उत्सुकता पैदा हो, क्योंकि ये स्कूल सही मायनों में समाज एवं समाजवाद की एक आधारशिला माने जाते हैं, जिन पर आज भ्रष्टाचार, अकर्मण्यता और उपेक्षा का साया है, यहीं से चरित्र एवं व्यक्तित्व निर्माण की शुरूआत होती है, यदि ये स्कूल ईमानदारी से बच्चों को शिक्षा का समान अवसर और बुनियादी सुविधाएं दे पाते हैं, तो यहां के बच्चे अवश्य ही अपने संस्कारों, राष्ट्रवाद, समाजवाद, नैतिक और व्यक्तित्व की शिक्षा से और ज्यादा समृद्ध हो सकेंगे।
उत्तर प्रदेश में लगभग सभी जगहों पर बाल पुष्टाहार विभाग की स्थिति भी इतनी ही भयानक है। इस विभाग पर ग़रीब बच्चों और बालिकाओं के प्रारंभिक विकास की जिम्मेदारी है, लेकिन आज इन बच्चों को दिया जाने वाला पुष्टाहार, बिस्कुट और पंजीरी बाजार पहुंच गई है। बच्चों में कुपोषण दूर करने और उन्हें शिक्षा को प्रेरित करने के लिए, उन्हें दी जाने वाली खाद्य सामग्रियों को ठेकेदार, बेशर्मी से मुनाफा कमा कर ठिकाने लगा रहे हैं, बच्चों को वितरित किए जाने वाले अनाज को सड़ा कर शराब और बीयर बना दी जाती है। बच्चों का कुपोषण दूर करने के लिए दिया जाने वाला पुष्टाहार तो पशुओं के चारे से भी बदतर स्थिति में पहुंच गया है। ग्राम प्रधान से लेकर शासन तक को मालूम है कि अब बच्चों का पुष्टाहार पशु आहार में बिकता है और पंजीरी दुकानों पर बिकती है और बिस्किट पालतु कुत्ते खा रहे हैं। यह बेसिक शिक्षा और बाल पुष्टाहार का असहनीय और भयानक सच है, जो एक स्वतंत्रता दिलाने जैसी लड़ाई है, जिसका मुकाबला राम गोविंद चौधरी को करना है। राम गोविंद चौधरी के सामने एक सुखद स्थिति ये है, कि उनके मुख्यमंत्री अखिलेश यादव युवा हैं और जन सरोकारों से जुड़े विषयों पर वह कुछ करना चाहते हैं, इन दोनों विभागों के महत्व को वह भी समझते हैं। उन्होंने उन्हें जो विभाग दिए हैं, उसके पीछे उनका यह सोच हो सकता है, कि राम गोविंद चौधरी की यहां ज्यादा जरूरत है। पुष्टाहार विभाग उन्हें दूसरी बार मिला है, जबकि बेसिक शिक्षा विभाग से उनका पहली बार सामना हो रहा है। अब देखना है, कि राम गोविंद चौधरी अपनी ईमानदारी, कर्मठता और कार्यप्रणाली की कैसी छाप छोड़ते हैं।