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नई दिल्ली। लोकसभा और राज्यसभा में बच्चों की सुरक्षा के लिए पारित यौन अपराध अधिनियम 2012, जो 18 वर्ष से कम उम्र का है, बच्चे के रूप में परिभाषित किया गया है, उसे यौन उत्पीड़न, यौनाचार और अश्लीलता से सुरक्षा प्रदान करता है, को संसद में पारित कर दिया गया है। बच्चों से संबंधित अपराध, स्पष्ट रूप से कानून में पहली बार परिभाषित किये गये हैं, इस अधिनियम के अंतर्गत कठोर दंड का प्रावधान है, जो कि अपराध की गंभीरता के अनुरूप वर्गीकृत है। विभिन्न अवधि के लिए साधारण से लेकर सश्रम कारावास तक की सजा हो सकती है, इसमें जुर्माने का भी प्रावधान है, जोकि अदालत में तय होगा। इस कानून का एक कमजोर पक्ष यह है कि इसमें मीडिया को भी पाबंद किया गया है, जिसमें अदालत की अनुमति के बिना बच्चे की पहचान का खुलासा करने पर उसे भी सज़ा का सामना करना पड़ेगा। इसमें जिस प्रकार मीडिया को प्रतिबंधित किया गया है, उससे इस कानून पर विपरीत और खराब असर पड़ सकता है, इसका दुरूपयोग भी हो सकता है।
बच्चों की सुरक्षा के लिए यौन अपराध अधिनियम 2012 का प्रारूप, बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण से बचाने और कानूनी प्रावधानों को मजबूती प्रदान करने के लिए तैयार किया गया है। बच्चों के प्रति यौन अपराधों के मुद्दे को उल्लेखित करने के लिए पहली बार एक विशेष कानून पारित किया गया। वर्तमान समय में यौन अपराध भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत शामिल किये जाते हैं। अभी तक आईपीसी के तहत बच्चों के खिलाफ सभी यौन अपराधों से निपटने का प्रावधान नहीं था और विशेषकर व्यस्क और पीड़ित बालक में भेद नहीं किया जाता था। एक अपराध 'संगीन' तब माना जाता है, जब वह किसी विश्वस्त व्यक्ति ने या बच्चों के प्राधिकारी जैसे सुरक्षा बल के सदस्य, पुलिस अधिकारी, सरकारी कर्मचारी आदि ने किया हो।
नए यौन अपराध अधिनियम के अंतर्गत अपराध के लिए ये दंड शामिल हैं-भेदनीय यौन आक्रमण (धारा 3)-कम से कम सात साल तक का कारावास, जो कि आजीवन कारावास तक का हो सकता है, और (धारा 4) के अनुसार जुर्माना। संगीन भेदनीय यौन आक्रमण (धारा 5)-कम से कम दस साल तक का कारावास जो कि आजीवन कारावास तक हो सकता है और (धारा 6) के अनुसार जुर्माना। लैंगिक आक्रमण (धारा 7)-कम से कम तीन साल तक का कारावास जो कि पांच साल तक का हो सकता है और (धारा 8) के अनुसार जुर्माना। संगीन लैंगिक आक्रमण (धारा 9)-कम से कम पांच वर्ष तक का कारावास जो कि सात साल तक का हो सकता है और (धारा 10) के अनुसार जुर्माना। बाल यौन उत्पीड़न (धारा 11)-तीन साल तक का कारावास और (धारा 12) के अनुसार जुर्माना। अश्लील प्रयोजनों के लिए बालक का प्रयोग (धारा 13)-पांच साल तक का कारावास और जुर्माना और अपराध घोषित होने के बाद सात साल का कारावास और (धारा 14 (1)) के अनुसार जुर्माना।
इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष अदालत की स्थापना का प्रावधान है, जिसमें कि न्यायिक प्रक्रिया के हर चरण में बच्चे के हित को सर्वोपरि महत्व दिया जाएगा। अधिनियम में रिपोर्टिंग, गवाहों की रिकार्डिंग, अपराधों की जांच और परीक्षण में बच्चे के अनुकूल प्रक्रियाओं को शामिल किया गया है, इनमें शामिल है-बच्चे के निवास पर या अपनी पसंद की जगह पर बच्चे के बयान की रिकॉर्डिंग, विशेषकर एक महिला पुलिस अधिकारी द्वारा जो कि उप निरीक्षक के पद से नीचे न हो। बच्चे को किसी भी कारणवश रात में पुलिस स्टेशन में नहीं रखा जाएगा। बच्चे के बयान की रिकॉर्डिंग के समय पुलिस अधिकारी वर्दी में नहीं होगा। बच्चे के बयान को उसकी मौखिक भाषा के अनुरूप दर्ज किया जाएगा। एक दुभाषिया या अनुवादक की सहायता और बच्चे की जरूरत के अनुसार एक विशेषज्ञ की मदद ली जा सकेगी। एक अक्षम बच्चे के सिलसिले में विशेष शिक्षक या परिचित व्यक्ति की सहायता ली जा सकेगी। बच्चे की चिकित्सा परीक्षा माता पिता या किसी अन्य व्यक्ति, जिस पर बच्चा विश्वास करता हो, उसकी उपस्थिति में ही की जाएगी। अगर पीड़ित एक बालिका हो, तब एक महिला डॉक्टर चिकित्सा परीक्षा आयोजित करेगी। सुनवाई के दौरान बच्चे को नियमित अंतराल-विश्राम दिया जाएगा। बालक को बार-बार गवाही देने के लिए नहीं कहा जाएगा। कोई आक्रामक पूछताछ या बच्चे के चरित्र का हनन नहीं होगा। मामलों की सुनवाई कैमरों की निगरानी में होगी।
इस अधिनियम में अपराध के लिए उकसाने पर भी दंड का प्रावधान है, जो कि अपराध करने पर मिलता है। इन अपराधों में बच्चों को यौन प्रयोजनों के लिए तस्करी करना भी शामिल है। भेदनीय यौन उत्पीड़न और संगीन भेदनीय उत्पीड़न, आक्रामक भेदनीय यौन उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न और आक्रामक यौन उत्पीड़न जैसे जघन्य अपराधों के लिए साक्ष्य जुटाने की जिम्मेदारी अभियुक्त पर स्थानांतरित की गई है। इस बात का प्रावधान बच्चे की नाजुकता और मासूमियत को ध्यान में रखकर किया गया है। साथ ही साथ कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए, झूठी शिकायत करने या गलत इरादे से दी गई झूठी जानकारी के लिए भी सजा का प्रावधान है। ऐसी सज़ा जानकारी हासिल करने के कारण अपेक्षाकृत (यानी छह महीने तक ) रखी गई है। यदि एक बच्चे के खिलाफ झूठी शिकायत की जाती है, तो सजा अधिक (यानी एक वर्ष तक) होगी। अधिनियम के अनुसार अपराध करने का इरादा भी, चाहे वो किसी भी कारण से असफल हुआ हो, भी दंडनीय है। अधिनियम के तहत अपराध करने का प्रयास दंडनीय है, इसमें अपराध करने पर मिलने वाली सजा की आधी सजा मिलेगी।
मीडिया को विशेष अदालत की अनुमति के बिना बच्चे की पहचान का खुलासा करने से वर्जित किया गया है। मीडिया द्वारा इस प्रावधान का उल्लंघन के लिए सजा छह महीने से एक साल की हो सकती है। अधिनियम में मुकद्मे के शीघ्र निपटान के लिए परीक्षण हेतु बच्चे का साक्ष्य 30 दिनों की अवधि के भीतर दर्ज करने का प्रावधान है। इसके अलावा, विशेष अदालत को एक वर्ष की अवधि के भीतर जहां तक संभव हो, परीक्षण पूरा करना होगा। बच्चे के राहत और पुनर्वास हेतु, जैसे ही विशेष किशोर पुलिस इकाई (एसजेपीयू) या स्थानीय पुलिस में शिकायत दर्ज की जाएगी, तब बच्चे को सुरक्षा और देखभाल, जैसे कि उन्हें आश्रय गृह या नजदीकी अस्पताल में 24 घंटे के भीतर दाखिल कराने के लिए व्यवस्था की जाती है, करनी होगी। बच्चे के पुनर्वास हेतु, विशेष किशोर पुलिस इकाई (एसजेपीयू) या स्थानीय पुलिस को मामले की जानकारी बाल कल्याण समिति को शिकायत दर्ज करने के 24 घंटे के भीतर देनी होगी।
इस अधिनियम के तहत केंद्र और राज्य सरकारों को संचार माध्यम जैसे टेलीविजन, रेडियो और प्रिंट मीडिया के द्वारा नियमित अंतराल पर आम जनता, बच्चों और उनके माता-पिता व संरक्षको में जागरूकता पैदा करने की जिम्मेदारी तय की है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एससीपीसीआरएस) को नामित अधिनियम के कार्यान्वयन पर नजर रखने का अधिकार दिया गया है।